केंद्रीय नेतृत्व ने इन प्रदेशों में खास तौर पर उत्तरप्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन, 2024 में होने वाले महासमर यानी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रख कर किया है। ये बात योगी के 52 सदस्यीय जंबो मंत्रिमंडल के सदस्यों की चयन प्रक्रिया पर एक नजर डालने से भी साफ हो जाती है…
धर्मपाल धनखड़
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से चार में वापसी के बाद भाजपा ने सरकारों का गठन कर लिया है। पार्टी को स्पष्ट बहुमत के बावजूद मुख्यमंत्रियों को शपथ दिलवाने में 15 दिन का समय लगा। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तरप्रदेश समेत चारों राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए पुराने चेहरों पर ही विश्वास जताया है। योगी आदित्यनाथ ने लगातार दूसरी बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करके एक नया रिकार्ड बनाया है।
मुख्यमंत्रियों के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने कई दिन तक मंथन किया। इन पांच राज्यों के चुनाव को राजनीतिक प्रेक्षक 2024 में होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल मान रहे थे। कहा भी जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तरप्रदेश से होकर गुजरता है।
इसीलिए केंद्रीय नेतृत्व ने इन प्रदेशों में खास तौर पर उत्तरप्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन, 2024 में होने वाले महासमर यानी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रख कर किया है। ये बात योगी के 52 सदस्यीय जंबो मंत्रिमंडल के सदस्यों की चयन प्रक्रिया पर एक नजर डालने से भी साफ हो जाती है।
योगी कैबिनेट में पूर्व से पश्चिम तक जातीय समीकरणों में संतुलन साधने के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया है। भाजपा में पिछड़े वर्गों का चेहरा माने जाने वाले केशव प्रसाद मौर्य को सीराथू सीट से चुनाव हारने के बावजूद उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
इसी प्रकार बृजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाकर ब्राह्मण समुदाय को साधने की कोशिश की है। यहां तक कि भाजपा ने चुनाव में मुस्लिम समुदाय को एक भी टिकट नहीं दिया था, लेकिन कैबिनेट में एक मुस्लिम को भी शामिल किया है।
योगी कैबिनेट में अनुभवी नेताओं के साथ नये चेहरों को भी स्थान दिया गया है। इसके अलावा कार्यकुशलता को भी विशेष ध्यान में रखा गया है। इसी कारण 22 पुराने मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इनमें कई योगी जी के खास नजदीकी रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नेताओं का मानना है कि यूपी में भाजपा की जीत में केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं का बड़ा हाथ रहा है। केंद्र की योजनाओं के सही क्रियान्वयन और उनका लाभ आम आदमी तक पहुंचाने में अधिकारियों का बड़ा योगदान होता है।
अफसरशाही को संदेश देने के लिए ही मोदी जी के खास माने जाने वाले दो पूर्व अधिकारियों को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। इनमें एक पूर्व अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा तो वहीं हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री के चाहने पर भी मुख्यमंत्री योगी ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था।
साफ है कि इस बार मंत्रिमंडल के गठन में योगी की बजाय केंद्रीय नेतृत्व की ज्यादा चली है। केंद्रीय नेतृत्व ने मंत्रिमंडल का गठन, 2024 के आम चुनाव के लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल करने के नजरिये से किया है। इसमें योगी आदित्यनाथ की इच्छा की उपेक्षा भी हुई है।
योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनाये जाने का सीधा सा मतलब है कि केंद्रीय नेतृत्व ने भी उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता का लोहा मान लिया है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि योगी आदित्यनाथ ने कानून-व्यवस्था में प्रदेश की जनता का विश्वास बहाल किया है। वे अपराध माफियाओं में कानून का खौफ पैदा करने में सफल रहे हैं।
योगी संघ व भाजपा के प्रखर हिंदुत्व का मुख्य चेहरा बनकर उभरे हैं। पिछली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ही उनके समर्थकों ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया था। इस नजरिये से देखा जाये तो भाजपा विशेषकर संघ और उसके सहयोगी संगठनों के पास अब मोदी के बाद कौन? के जवाब में योगी का नाम है।
मुख्यमंत्रियों की चयन प्रक्रिया के दौरान महसूस किया गया कि नये चेहरों को मुख्यमंत्री बनाये जाने से पार्टी में अनावश्यक गुटबाजी को बढ़ावा मिल सकता है। इससे मिशन-2024 की सफलता में दिक्कतें आ सकती हैं। इसी के तहत गोवा में प्रमोद सावंत को विपरीत परिस्थितियों में पार्टी को बहुमत के करीब पहुंचाने लिए दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया।
वहीं, मणिपुर में एन वीरेन को स्पष्ट बहुमत दिलवाने के लिए एक बार फिर मौका दिया गया है। वहीं, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के खटीमा से चुनाव हारने के बावजूद दोबारा मौका दिया गया। उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर बहुत कम समय मिला था। लेकिन शुरूआत में चुनावी हवा प्रतिकूल होते भी उन्होंने पार्टी को एकजुट रखा और गुटबाजी को उभरने नहीं दिया।
एक बात पूरी तरह साफ है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह मिशन-2024 की सफलता के लिए जी-जान से जुट गयी है। इन चारों प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की पहली अग्निपरीक्षा तो आगामी लोकसभा चुनाव में ही होगी।
इसके लिए अब उन्हें जनता से किये चुनावी वादे पूरे करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। इन चुनावों में भाजपा ने जन आक्रोश को भी काफी नजदीक से देखा है। जिसके कारण कई क्षेत्रों में लोगों पार्टी प्रत्याशियों को घुसने भी नहीं दिया था। केंद्रीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं चाहते कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़े।
इसीलिए मुख्यमंत्रियों के चयन और मंत्रिमंडल के गठन के लिए इतनी लंबी कवायद करनी पड़ी।उत्तरप्रदेश समेत सभी राज्यों में नवगठित सरकारों के सामने विकास, बेरोजगारी, शिक्षा, चिकित्सा और मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने जैसे जन मुद्दे चुनौती बनकर खड़े हैं। अब नवगठित सरकारों का पहला लक्ष्य इनके समाधान की दिशा में कारगर कदम उठाना होना चाहिए।
वहीं, भाजपा को लोकसभा चुनाव से पहले 11 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी खुद को बेहतर साबित करना होगा। इनमें गुजरात और हिमाचल में इसी साल के अंत में चुनाव होने हैं। जबकि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम समेत नौ प्रदेशों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।