त्रासदी को उजागर करती कश्मीर फाइल्स

काली कुमार

नयी दिल्ली । ‘कश्मीर फाइल्स’ 90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं के विरुद्ध इस्लामी जिहाद के नाम पर पैदा किए गए विध्वंस और आतंक की वह कहानी है‚ जिसके कारण उन्हें अपने ही देश में अपने घर-बार छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।

इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि इतनी बड़ी त्रासदी के बावजूद वोट बैंक के लालच में बिकाऊ मीडिया एवं सेकुलर दलों ने इस विषय पर कबूतर की तरह आंखें बंद रखने में ही अपनी भलाई समझी।

राष्ट्रवादी मीडिया एवं भारत हितैषियों ने डॉक्यूमेंट्री पुस्तकों और कुछ फिल्मों के माध्यम से इसे चर्चा में लाने का प्रयास किया, लेकिन संपूर्ण भारत में कांग्रेस प्रभावित मीडिया, पत्रकारों साहित्यकारो और प्रशासकों ने इसे चर्चा से बाहर रखने का हरसंभव प्रयास किया।

सेकुलरवाद की विकृत व्याख्या से ग्रसित अब्दुल्ला‚ महबूबा, कांग्रेस‚कम्युनिस्ट और केजरीवाल के कुत्सित प्रयासों के बावजूद फिल्म के पक्ष में भावनात्मक आवेग बढता ही जा रहा है।

पिछले तीन दशकों से हिंदुत्व‚ भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्र के रूप में भारत की महान गौरव परंपरा आदि को लेकर संघ परिवार और दूसरे संगठनों ने जो जन अभियान चलाया उससे वह भाव जागृत हुआ है,परिणामस्वरूप मुख्यधारा की मीडिया में अनेक पत्रकार मुखर होकर राष्ट्रीयता का सही पक्ष सामने रख रहे है।

भारतीयों में भी अपनी संस्कृति–धर्म–पूर्वजों–इतिहास– राष्ट्र–समाज की वस्तुस्थिति को लेकर गौरवबोध पैदा हो रहा है। इस समय कश्मीर फाइल्स से एक छोटा अध्याय सामने आया है‚ जिसने उम्मीद जगाई है कि आगे अफगानिस्तान, पाक, बांग्लादेश से लेकर संपूर्ण भारत में इस्लामिक बर्बर हमले और भारतीय सभ्यता–संस्कृति को कुचलने का जो अपराध हुआ‚ हमारे धर्मस्थलों‚ को जिस तरह रौंदा गया वह तो सब सामने आएगा ही, साथ ही उनके विरुद्ध लगातार हुए संघर्ष, त्याग बलिदान तथा व्यवहारों से भारतीय जनमानस ने जो मानक स्थापित किये धर्म संस्कृति राष्ट्र समाज की रक्षा के लिए जो वेदनाऐं सही उस सत्य को छुपाने का घिनौना पाप कांग्रेस/वामपंथियो ने किया ये सच भी सामने आ जाएगा।

‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद, चरखे से आजादी फाइल्स, शास्त्री की हत्या फाइल्स,आपातकाल फाइल्स, राजधानी में सिखों का नरसंहार फाइल्स, अयोध्या आंदोलन फाइल्स जैसी न जाने कितनी फाइलों की मांग शुरू हो जाएगी।

भारत विरोधी/सेकुलर वर्ग इस बदलाव की आंच से झुलसकर छाती पीटते रहेंगे और बदलाव की आंधी उनकी राजनीतिक वेदना की परवाह किये बिना द्रुत गति से आगे बढती रहेगी।

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