देहरादून। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद अब नये मुख्यमंत्री की तलाश शुरू हो गई है। इस क्रम में मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे सतपाल महाराज का नाम चल रहा है।
वहीं मुख्यमंत्री की दौड़ में डा धन सिंह रावत का भी नाम चल रहा है। लेकिन जिस तरह से उत्तराखंड में राजनीतिक उठा पटक शुरू हो गया है ऐसी स्थिति में भाजपा हाईकमान पश्चिम बंगाल का फार्मूला अर्थात ममता माडल को अपनाते हुए फिर से पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाने के लिए ‘ममता मॉडल’ को भाजपा हाईकमान अपना सकता है। इससे पुष्कर सिंह धामी की दोबारा ताजपोशी की राह आसान हो सकती है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम जारी हो गया है। जिसमें बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिला है। इसके साथ ही बीजेपी रिकॉर्ड तोड़ते हुए लगातार दूसरी बार राज्य में सरकार बनाने जा रही है, लेकिन एक अहम उलटफेर में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंंह धामी चुनाव हार गए हैं। धामी को हार का सामना तब करना पड़ा है, जब वह विपरीत परिस्थितियों में चुनाव से कुछ समय पहले ही वह मुख्यमंत्री बनाए गए थे और उनके नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी को राज्य में स्पष्ट बहुमत मिला है। ऐसे में पुष्कर सिंंह धामी को हार के बाद भी मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग संगठन स्तर पर होने लगी है। इसके बाद राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि बदलाव के लिए जाने वाले नरेंद्र मोदी उत्तराखंड में ‘ममता मॉडल’ अपना सकते हैं।इससे पुष्कर सिंंह धामी की दोबारा मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी संभव हो सकती है। हालांकि पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद बीजेपी में मुख्यमंत्री के चेहरे की तलाश शुरू हो गई है। इसमें कुछ नेताओं के नामों पर राजनीतिक हलको में चर्चा शुरू हो गई है।
क्या है ‘ममता मॉडल’, धामी के लिए क्यों है जरूरी
देश की राजनीति में मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी ‘ममता मॉडल’ बेहद ही नया है जो 2021 में अस्तित्व में आया है। असल में 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में टीएमसी को तो बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम से चुनाव हार गईं। ऐसे में ममता बनर्जी बंगाल की हीरो साबित होने के बाद भी जीरो बनी रहीं। हालांकि हार के बाद भी उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जिसके बाद उन्होंने उपचुनाव में जीत दर्ज की और मौजूदा समय में मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं।
उत्तराखंड चुनाव में पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद पार्टी संगठन में दबी जुबान ‘ममता मॉडल’ को अपनाने की मांग उठने लगी है। इसके पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं, उसके अनुसार उत्तराखंड में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत दिलाने में पुष्कर सिंह धामी की भूमिका भी अहम रही है। ऐसे में उन्हें ईनाम देते हुए ‘ममता मॉडल’ अपनाने की मांग पार्टी संगठन में दबी जुबान की जा रही है।
धामी की गैर मौजूदगी में अनिल बलूनी और अजय भट्ट प्रबल दावेदार
बीजेपी अगर पुष्कर सिंंह धामी की दोबारा ताजपोशी के लिए ‘ममता मॉडल’ नहीं अपनाती है, तो धामी की गैरमौजूदगी में अनिल बलूनी और अजय भट्ट मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार के तौर पर देखे जा रहे हैं। मौजूदा समय में दोनों ही केंद्र की राजनीति में सक्रिय हैं और दोनों पर केंद्रीय नेतृत्व को भरोसा है।अनिल बलूनी की बात करें तो राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को अमित शाह और नरेंद्र मोदी का सबसे करीबी माना जाता है। मौजूदा समय में वह बीजेपी के नेशनल मीडिया इंजार्च हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी को लेकर उनके पक्ष में कई बात जाती हैं। इसमें उनकी तरफ से कुमाऊं और गढ़वाल की राजनीति में सफल संतुलन स्थापित करना सबसे अहम है। वह मूलत: गढ़वाल के कोटद्वार मंडल से हैं, लेकिन उनकी परवरिश कुमाऊं के हल्द्वानी में हुई है।
वह लंबे समय में केंद्र में रहते हुए सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से कुमाऊं और गढ़वाल को लाभान्वित करने में सफल हुए हैं।वहीं अजय भट्ट की बात करें तो वह 2017 में भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे।उस दौरान बीजेपी ने उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा था। इसमें बीजेपी को जीत मिली थी, लेकिन अजय भट्ट खुद रानीखेत से चुनाव हार गए थे। हालांकि इसके बाद वह 2019 में नैनीताल सीट से जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे और मौजूदा मोदी सरकार में रक्षा राज्य मंत्री हैं।
रमेश पोखरियाल निशंक भी दौड़ में शामिल
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के संभावित चेहरों के तौर पर रमेश पोखरियाल निशंक का नाम भी सामने आना लगा है। उत्तराखंड की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले रमेश पोखरियाल नतीजे आने से पहले ही सक्रिय दिखाई दे रहे थे। परिणाम जारी होने से पहले जब बीजेपी महासचिव कैलाश विजय वर्गीय उत्तराखंड दौरे पर आए थे, तो उस दौरान उन्होंने निशंक के साथ गर्मजोशी से मुलाकात की थी।निशंक को आर एस एस का करीबी भी माना जाता है, तो वहीं वह लंबे समय तक मोदी कैबिनेट में भी काम कर चुके हैं। बीते साल ही उन्होंने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। मौजूदा समय में वह उत्तराखंड के सबसे अनुभवी राजनेता हैं।
सतपाल महाराज और मदन कौशिक के नाम पर होने लगी चर्चा
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री के तौर पर सतपाल महाराज और मदन कौशिक के नाम की भी चर्चा में है।सतपाल महाराज को भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह का सबसे करीबी माना जाता है।साथ ही वह मौजूदा समय में चुनाव जीत कर आने वाले सबसे अनुभवी नेता हैं। हालांकि उनका पूर्व कांग्रेसी होना, उनकी ताजपोशी में सबसे बड़ी रुकावट है. वह 2014 तक कांग्रेस में हुआ करते थे।
वहीं मौजूदा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का नाम भी संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर सामने आने लगा है। मदन कौशिक के नेतृत्व में ही बीजेपी ने इस बार जीत दर्ज की है।उन्हें आर एस एस का करीबी माना जाता है। हालांकि एक पहाड़ी राज्य में मैदानी मूल का होना उनकी ताजपोशी में सबसे बड़ी रुकावट है, लेकिन 2021 में बीजेपी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाते हुए उनकी स्वीकार्यता को उत्तराखंड की राजनीति में बढ़ाया है।
ऋतू खंडूरी और धन सिंह रावत हैंं युवा चेहरे
मुख्यमंत्री के संभावित नामों के तौर पर रितु खंडूरी और धन सिंह रावत का नाम भी सामने आ रहा है। दोनों ने ही इस बार दूसरी बार जीत दर्ज की है। इससे 2021 में भी दोनों का नाम संभावित मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल था। ऋतू खंडूरी की बात करें तो वह पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी की बेटी हैं। साथ ही वह कुछ समय में ही बीजेपी का बड़ा महिला चेहरा बन कर उभरी हैं। इस चुनाव के एक्जिट पोल में जिस तरीके से कहा जा रहा है कि बीजेपी की जीत में महिला मतदाताओं की भूमिका अहम रही है और महिलाओं ने बीजेपी के पक्ष में बंपर मतदान किया है।उसमें रितु खंडूरी की दावेदारी मजबूत हुई है।वहीं धन सिंह रावत की बात करें तो उन्हें भी आर एस एस का करीबी माना जाता है। वह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बेहद ही करीबी माने जाते हैं।