नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा नदी में हो रहे खनन के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की भूमिका को अहम मानते हुए सरकार से जवाब पेश करने को कहा है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने हरिद्वार की मातृ सदन की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किये। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि गंगा नदी में रायवाला से भोपुरा तक कई जगह खनन कार्य किया जा रहा है। मशीनों से खनन कार्य किया जा रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों की ओर से दी गयी रिपोर्ट में गंगा नदी में खनन को पर्यावरण के खिलाफ माना गया है। साथ ही राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की ओर से भी फरवरी 2022 में गंगा में खनन कार्य को प्रतिबंधित किया गया है। दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा गया कि केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से गंगा नदी में खनन के लिये पर्यावरण अनुमति दी गयी है।
भोपुर, श्यामपुर, बिशनपुर में कुछ जगहों में खनन कार्य किया जा रहा है। प्रदेश के वन निगम द्वारा खनन कार्य किया जा रहा है। वन अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट में भी गंगा नदी में खनन की अनुमति दी गयी है।
अदालत ने सुनवाई के बीच में हालांकि संकेत दिया कि इस प्रकरण को उच्च न्यायालय की बजाय राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के समक्ष चुनौती दिया जाना चाहिए। अंत में अदालत ने सरकार से जुड़े सभी पक्षकारों से सात दिन में शपथ पत्र पेश करने को कहा है। साथ ही सुनवाई के लिये 16 मार्च की तिथि मुकर्रर की गयी है।