भराड़ीसैंण में बने विधानसभा भवन में सन्नाटा पसरा

भराड़ीसैंण को भी नई सरकार का इंतजार

गोपेश्वर। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो गया है। भराड़ीसैंण विधानसभा परिसर भी नई सरकार और नए माननीयों की राह ताक रहा है। नई सरकार और नए माननीयों पर ही भराड़ीसैंण का भविष्य निर्भर करेगा।
दरअसल गैरसैंण के भराड़ीसैंण में बने विधानसभा भवन में मौजूदा दौर में सन्नाटा है। हालांकि राज्य सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर लिया है, किंतु अब तक यहां कोई सरकारी तामझाम नहीं है। इस कारण साल भर में होने वाले गिने चुने दिनों के विधान सभा सत्र के बाद भराड़ीसैंण विधानसभा परिसर सन्नाटे की चादर ओढ़ लेता है। 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव का मतदान हो गया है व 10 मार्च को परिणाम आ जाएंगे। इसके बाद ही भराड़ीसैंण का सन्नाटा कुछ हद तक टूट पाएगा। वैसे भी विधानसभा चुनाव में गैरसैंण स्थाई राजधानी का मसला नेपथ्य में पड़ा रहा। राज्य बनने के बाद गैरसैंण स्थाई राजधानी का मसला वैसे हर बार चुनावी चर्चा में रहता है। वर्ष 2002 से 2017 तक के विधानसभा चुनाव में गैरसैंण राजधानी का मसला सियासी फिजाओं में रहा। यह मसला बीरेंद्रनाथ दीक्षित आयोग के हवाले रहने से सिस्टम को बहाना मिलता रहा।

2007 के विधानसभा चुनाव में भी गैरसैंण मसला फिर चर्चा में रहा। 2012 में गैरसैंण राजधानी मसले पर सियासत गर्म रही। तीन नवम्बर 2012 को गैरसैंण में पहली कैबिनेट बैठक के आयोजन से गैरसैंण के दिन फिरने की उम्मीदें जगने लगी। 2012 में ही कैबिनेट ने गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद विधानसभा भवन निर्माण की कवायद शुरू हुई।

इस बीच अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए गैरसैंण विकास परिषद का गठन कर दिया गया। 9 से 11 जून 2014 तक तंबुओं में गैरसैंण मैदान में विधानसभा सत्र चला। सत्र संचालित करने की कवायद अब तक जारी है। गत मार्च 2020 को गैरसैंण विधानसभा सत्र में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा कर दी।

ग्रीष्मकालीन राजधानी भी अस्तित्व में आ गई किंतु गैरसैंण स्थाई राजधानी का मसला नेपथ्य में चला गया। मौजूदा चुनाव में उम्मीद थी कि गैरसैंण के सवाल पर इस बार मुद्दा जोर पकड़ेगा किंतु कोरोना काल में जन सभाओं पर रोक से यह मामला नेपथ्य में रहा। गैरसैंण पर राज्य गठन से पूर्व ही सियासत शुरू हो गई थी।

30 वर्ष पूर्व उक्रांद ने गैरसैंण को चंद्रनगर नाम देकर राजधानी की घोषणा की। हालांकि आंदोलन के दौर में गैरसैंण स्थाई राजधानी को जन स्वीकार्यता मिली। कौशिक समिति ने भी गैरसैंण स्थाई राजधानी पर मुहर लगाई किंतु मामला आज भी स्थाई तथा ग्रीष्मकालीन राजधानी में झूल रहा है। पिछले साल एक से 8 मार्च तक भराड़ीसैंण में बजट सत्र चला। भराड़ीसैंण में ही सियासत ने ऐसा पलटा मारा कि त्रिवेंद्र सरकार की भराड़ीसैंण से ही विदाई कर दी गई।

हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वतंत्रता दिवस तथा राज्य स्थापना दिवस पर झंडा फहराने भराड़ीसैंण पहुंचे किंतु शीतकाल में अंतिम विधानसभा सत्र भराड़ीसैंण में आयोजित नहीं हो पाया। अब जबकि विधानसभा चुनाव का मतदान निपट गया है तो 10 मार्च को निकलने वाले परिणामों पर सबकी नजरें टिकी हैं। मौजूदा समय में भराड़ीसैंण विधान सभा परिसर में भी पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है।

नई सरकार के गठन के बाद ही भराड़ीसैंण में हलचल बढ़ेगी। ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद सरकारी तामझाम तैनात न होने के कारण भराड़ीसैंण विधानसभा सत्र माननीयों के लिए तक पिकनिक स्पॉट अथवा टूरिज्म रिजॉर्ट ही बना है। भराड़ीसैंण विधानसभा परिसर अब नई सरकार और नए माननीयों की ओर टकटकी लगाए बैठा है।

नई सरकार और नए माननीय भराड़ीसैंण के अस्तित्व को बचाने के लिए किस तरह के कदमों के साथ आगे आते हैं, इस पर ही गैरसैंण अथवा भराड़ीसैंण का भविष्य निर्भर करेगा। फिलहाल ग्रीष्मकालीन राजधानी में बना ढांचा महज शो पीस ही बना है।

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