इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने मालरोड पर चलाई स्केटिंग

मसूरी से दिल्ली स्केटिंग रेस की 47वीं सालगिरह लता मंगेशकर को समर्पित की

मसूरी। इतिहास कार व स्केटर गोपाल भारद्वाज ने मसूरी से दिल्ली रोलर स्केट पर जाने के 47 वर्ष पूरे होने पर मालरोड पर 72 साल की उम्र में स्केटिंग चलाई और इस उपलब्धि को महान गायिका भारत रत्न लता मंगेशकर को समर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि मसूरी शहर अंग्रेजों ने बसाया है। स्केंटिंग यूरोपियन खेल है और मसूरी में 1890 में एशिया का सबसे बड़ा स्केटिंग हॉल बनाया था। इससे पहले कोलकाता में बनाया था,जिसे मिलर ने बनाया था। यह उनका प्रसिद्ध खेल हुआ करता था।

हमने एक बार सोचा कि क्यों न दिल्ली तक स्केटस से जाया जाय। युवा थे जोश था व कुछ अलग करने की ललक थी और दिल्ली तक जाने का निर्णय लिया। यह मानव का नेचर है कि कुछ करना चाहिए। उस समय हमने यह नहीं सोचा था कि यह इवेंट बड़ी बनेगी।
उन्होंने बताया कि पांच युवक दिल्ली जाने को तैयार हो गये, जिसमें मैं, मेरे दोस्त गुरुदर्शन सिंह, सांगारा सिंह, आनंद वरण मिश्रा, गुरुचरण सिंह होरा थे। तब रोटरेक्ट क्लब ने स्पोंसर किया।

मसूरी से यह अभियान हमने 14 फरवरी 1975 वैलेटाइन डे के दिन शुरू किया और हमारे स्केटर अशोक पाल सिह व उनकी बहन बीना सिंह बनी जो कि चार साल तक लगातार भारत के नेशनल चैंपियन थे उन्हें रोलर स्केटिंग फैडरेशन ऑफ इंडिया ने उन्हें मैनेजर भी बनाया। वह पूरे रास्ते में हमारे पीछे गाड़ी से गये ताकि कोई गाड़ी न पकड़े व पूरे रास्ते फॉलो किया।

लोगों को नहीं था पता क्या है स्केटिंग रेस

उन्होंने बताया कि मसूरी में स्केटिंग रेस का खेल तब कोई नहीं जानता था, केवल जो पर्यटक मसूरी आते थे उन्हें ही पता था। इस मिशन के तहत जब देहरादून से आगे रुड़की की ओर निकले तो रास्ते में कई लोग टोंट मारते थे, क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि यह स्केटिंग क्या होती है। गांव वाले कहते थे ये बच्चे इतने सुंदर है इनके पैर खराब हो गये, ट्रक वाले रोक कर पूछते थे यह क्या है।

एशिया की पहली रेस थी

उन्होने बताया कि जब दिल्ली में प्रवेश किया तो दिल्ली बार्डर में स्केटिंग फैडरेशन ने जोरदार स्वागत किया और दिल्ली पुलिस ने हमारा पूरा सहयोग किया। इस मिशन में रोमांच रहा व नया अनुभव मिला। उन्होंने कहा कि आज समय बदल गया अब मोबाइल आने के बाद इंडोर गेम अधिक हो गये बच्चे मोबाइल में खेलने लगे हैं। उन्होंने कहा कि इस खेल में सरकार का अधिक दखल नहीं रहा। उन्होंने बताया कि 320 किमी रोड रेस एशिया की पहली रेस थी उसके बाद किसी ने नहीं किया। यूरोप के देशों अमेरिका या जापान में किसी ने किया होगा। उसके बाद जम्मू से श्रीनगर गये मसूरी से अमृतसर गये।

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