हल्द्वानी । जमरानी बांध परियोजना को लेकर ढोल पीट रही भाजपा के लिए बुरी खबर है। सिंचाई विभाग के जमरानी परियोजना खंड के लोक सूचना अधिकारी का दावा है कि अभी भी केंद्र के कई विभागों-प्राधिकरणों से जमरानी बांध निर्माण की एनओसी नहीं मिली है। बांध निर्माण के लिए बजट के लिए किसी भी वित्तीय संस्था से एमओयू नहीं किया गया है।
जमरानी परियोजना की जद में आने वाले गांवों के विस्थापन का मामला भी अधर में लटका हुआ है। शासन स्तर पर पुनर्वास नीति का निर्धारण होने के बाद ही विस्थापन की कार्यवाही शुरू होगी।
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यह जानकारी गौलापार निवासी आरटीआई एवं सामाजिक कार्यकर्ता रवि शंकर जोशी को सूचना अधिकार से मिली है। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा को साझा की है। उन्होंने बताया कि हल्द्वानी एवं तराई भाबर की पेयजल व सिंचाई के समाधान के लिए जमरानी बांध का सफर अभी काफी लंबा है। पांच साल में भाजपा सरकार इसमें कोई सार्थक कदम नहीं बढ़ा सकी है।
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उन्होंने बताया कि वर्ष 1975 में जमरानी बांध का प्रस्ताव आया था। इसकी निर्माण की अनुमानित लागत 62 करोड़ थी। 80 के दशक में इस परियोजना का प्रारंभ काठगोदाम में बैराज के निर्माण से हुआ। इसमें लगभग 40 किमी लंबी नहरों का भी निर्माण किया गया। कई मशीन मंगवाई गई, भूगर्भीय निगरानी के लिए कई लैब का निर्माण किया गया।
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सिंचाई विभाग के अंतर्गत जमरानी परियोजना का अलग से एक निर्माण शाखा बनाई गई। इसमें 1 जोन, 1 सर्किल तथा 5 डिवीजन थे। करोड़ रुपये खर्च करने के बाद इस पूरी परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
इस परियोजना की डीपीआर के अनुसार अनुमानित लागत 2700 करोड़ पहुंच गई है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लगभग हर चुनावों में जमरानी बांध परियोजना को पूरा करने का वादा कर आम जनमानस को एक दिव्य-स्वरुप दिखाया जाता रहा है।
परन्तु दृृृढ़ व इमानदार राजनैतिक इच्छशक्ति के आभाव में यह महज एक चुनावी घोषणा बनकर ही रह गई।
यदि तत्काल इस परियोजना पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो इसके दूरगामी नतीजे भयावह होंगे। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में जमरानी बांध के निर्माण के संबंध में एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय नैनीताल के डाली थी।
नवंबर 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति शरद शर्मा की संयुक्त खंडपीठ में केंद्र व राज्य सरकारों को छह माह में सभी औपचारिकताएं पूर्ण कर तीन साल में बांध निर्माण का आदेश जारी किया था।
न्यायालय के आदेशानुसार कार्यवाही न होने पर नवंबर 2019 में याचिकाकर्ता रवि शंकर जोशी द्वारा अवमानना याचिका डाली गई थी। जिस पर उच्च न्यायालय ने उप्र एवं उत्तराखंड के मुख्य सचिव को अवमानना नोटिस जारी कर जबाब मांगा गया था।
जमरानी परियोजना के अंतर्गत प्रभावित होने वाले तिलवाड़ा, गनराड़, मुरकुड़िया, उड़वा, पनियाबोर, पस्तोला के गांववासियों का विस्थापन के मुद्दे पर अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। प्रशासन और गांववालों की कई दौर की बातचीत के बाद भी कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल पाया है।
सरकार की ओर से पहले गांववालों को किच्छा के प्राग फार्म में भूमि का प्रस्ताव दिया गया था, परन्तु बाद में उसे पीछे हटते हुए सरकार ने केवल मुआवजे की धनराशि का प्रस्ताव दिया है। गांववालों की सहमति नहीं हैं।
प्राग-फार्म में जमीन देने के अपने ही प्रस्ताव पर सरकार क्यों पीछे हट गई, इसका संतोषजनक जबाब किसी पास नहीं है। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में भी जमरानी बांध एक बढ़ा राजनीतिक मुद्दा है। खुद हल्द्वानी दौरे पर पीएम ने इस मुद्दे को छूने का प्रयास किया।