अबकी बार धामी पर सारा दारोमदार, त्रिकोणीय मुकाबले ने ले लिया आकार

हल्द्वानी। 2017 की विस चुनाव में कुमाऊं की नौ विस सीटों में हार जीत का फासला काफी कम था। इन सीटों में चुनाव प्रचार के दूसरे चरण में जबरदस्त चुनावी घमासान दिख रहा है। इसमें सीएम पुष्कर सिंह धामी अपने दो मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ बुरी तरह से घिरने लगे हैं।

लोहाघाट, गंगोलीहाट, में तो एकतरफा संघर्ष की तस्सीर ने भाजपा शिविर में हलचल पैदा कर दी है। जागेश्वर से इस बार भी कांग्रेस नेता गोविंद सिंह कुंजवाल को भाजपा ने उनके ही इलाके में घेर कर रख दिया है।

इसबार भी इन सीटों में बेहद रोमांचक मुकाबला दिख रहा है।ब लोहाघाट में 148 और जागेश्वर में 399 मतों से हार जीत तय हुई थीं। खटीमा में पुष्कर सिंह धामी केवल 2,709 मतों से जीत पाए थे।

भाजपा ने उत्तराखंड में चौथी विस चुनाव प्रचंड मोदी लहर के बीच लड़ा था। तब सोमेश्वर में रेखा आर्या हारते हारते जीत गई थीं। यहां कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र बारोकोटी 710 वोटों से पीछे रह गए थे। इसी तरह से गंगोलीहाट में कांग्रेस प्रत्याशी नारायण राम आर्या केवल 805 वोट से सीट गंवा बैठे,भाजपा से मीना गंगोला ने जीत हासिल कर ली।

इसी तरह से लोहाघाट में भाजपा प्रत्याशी पूरन फत्र्याल बहुत ही भाग्यशाली रहे थे, उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी खुशाल सिंह अधिकारी केवल 148 वोट से हराया था।

यह कुमाऊं में अब तक की सबसे कम हार जीत का आंकड़ा है। जागेश्वर में तत्कालीन विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल हारते हारते बच गए। वे अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सुभाष पांडे (भाजपा) से आगे रहे।

डीडीहाट में इस बार काबीना मंत्री बिशन सिंह चुफाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। उनको लगातार छह बार विस चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाना है। यह रिकार्ड भाजपा बागी किशन भंडारी के प्रति पैदा हुई सहानुभूति लहर पर बहुत कुछ निर्भर करने जा रही है।

चुफाल राज्य गठन से पहले 1998 में अविभाजित यूपी के विधायक थे, वे तब से अब तक एक भी चुनाव नहीं हारे हैं। 2017 में चुफाल केवल 2,368 मतों से जीत हासिल की थीं। तब भंडारी दूसरे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस तीसरे पायदान पर चली गई थीं।

इस बार भी डीडीहाट में रोमांचक त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। इसी चुनाव में तत्कालीन काबीना मंत्री प्रकाश पंत अपने प्रतिद्वंदी मयूख महर से केवल 2,684 मतों से जीत पाए थे। तब पूरे राज्य में प्रचंड मोदी लहर चल रही थीं। पंत के असमय मौत के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी चंद्रा पंत कांग्रेस के एकदम नए चेहरे अंजु लुंठी से कांटे के मुकाबले में जीत पायी थी। इस बार मैदान में फिर मयूख महर हैं, मयूख को विकास करने वाला विधायक माना जाता है।

इस बार उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश का ध्यान नेपाल और यूपी सरहद की विस खटीमा में लगी है। यहां से सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव लड़ रहे हैं। 217 में धामी का कांग्रेस प्रत्याशी भुवन चंद्र कापड़ी के साथ बहुत ही नजदीकी संघर्ष हुआ था।

तब भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी तारणहार थे, उन्होंने धामी को जिताने के लिए कई जनसभाएं की थीं। इस बार खुद धामी स्टार प्रचारक हैं और उनका मुकाबला फिर भुवन चंद्र कापड़ी के साथ हैं। आप के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एसएस कलेर यहां से मैदान में उतरे हैं, उन्होंने धामी को त्रिकोणीय संघर्ष में खड़ा कर दिया है।

नेपाल सरहद पर शारदा का जल काफी शांत है, लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं की धडक़न अभी से मतगणना के दिन की तरह से दिखने लगी है। सल्ट विस में इस बार कांग्रेस के पहलवान रणजीत सिंह रावत मैदान में हैं।

पिछले विस चुनाव में सुरेंद्र जीना ने कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली को 2,904 मतों से हराया था। पिछले साल सुरेंद्र की असमय मौत हो गई और उप चुनाव में उनके भाई महेश जीना ने पंचोली से नजदीकी जीत हासिल की थीं। इस बार महेश और रणजीत में तू पांत पांत में डाल डाल की लोकोक्ति चरितार्थ हो रही है।

पिछले विस चुनाव में कुमाऊं में सबसे बड़ा उलटफेर किच्छा सीट में देखने को मिला था। यहां कांग्रेस के ही दिग्गजों की मूर्खता पूर्ण कार्यों से तत्कालीन सीएम हरीश रावत को भाजपा प्रत्याशी राजेश शुक्ला ने बेहद नजदीकी मुकाबले में हरा दिया था। यहां हार जीत का अंतर केवल 2,127 रहा।

इस बार रावत लालकुआं विस चुनाव से मैदान में हैं और हवा अपने पक्ष में करने का जतन कर रहे हैं। इस बार कांग्रेस कार्यकर्ता भावी सीएम के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में भाजपा के नए प्रत्याशी डा. मोहन सिंह बिष्ट का मुकाबला कर रहे हैं। खुद रावत रणनीति बना और क्रियान्वित भी कर रहे हैं।

किच्छा में कांग्रेस ने रुद्रपुर में दो बार हार का समाना करने वाले तिलकराज बेहड़ को भेजा है। अब बेहड़ और शुक्ला में रोमाचंक मुकाबला चल रहा है।

यहां जातिगत समीकरण के साथ ही शाम, दाम,दंड, भेद के सभी फार्मूले एक साथ काम रहे हैं। भाजपा ने भी बेहड़ को घेरने की कोशिश की हैं,लेकिन यहां विधायक और सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान से मुश्किलें बढ़ रही हैं।

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