थमा नामांकन का दौर अब डोर टू डोर प्रचार पर जोर

चुनावी बिसात पर सज चुकी सियासत की मोहरें, पर डगर पनघट की मुश्किल

  • एक तरफ कोरोना का साया वहीं इंद्रदेव की नाराजगी बढ़ा सकती मुश्किलें
  • वायरस का संक्रमण बढ़ा तो निर्वाचन आयोग और बढ़ा सकता पाबंदी
  • डिजिटल प्लेटफार्म व डोर टू डोर कैंपेन ही मतदाताओं तक पहुंचने का रास्ता
देहरादून । उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन का दौर थम गया है। चुनावी बिसात पर सियासत की मोहरें सज चुकी हैं। सियासी दंगल में चलने वाले शह-मात के इस खेल में सफर मुसीबतों का बाकी है।
यूं कहा जा सकता है कि नेताजी मुश्किल है डगर पनघट की! जी हां, राज्य की 7 विस सीटों पर ताल ठोक चुके विभिन्न राजनीतिक दलों व निर्दलीय प्रत्याशियों की चुनाव जीतकर विधानसभा की दहलीज तक पहुंचने का सपना साकार होने की सियासी राह में एक नहीं बल्कि तमाम मुश्किलें खड़ी हैं। मुसीबतों की इस कतार में एक तरफ ‘कोरोना का साया’ है तो दूसरी तरफ ‘इंद्रदेव’ की नाराजगी भी। सियासत में भाग्य आजमा रहे प्रत्याशियों को ही नहीं बल्कि निर्वाचन आयोग की टीमों को भी इससे दो-चार होना पड़ सकता है।
मतदान के लिए अब बीस दिन से कम का समय बचा है, ऐसे में हर रोज बदल रहे मौसम के तेवर जंग-ए-चुनावी मैदान में खड़े प्रत्याशियों की आफत बढ़ा रहा है। पर्वतीय जनपदों में हर अंतराल बाद हो रही बारिश व बर्फबारी से प्रत्याशियों  के कदम ठिठके हुए हैं।
मैदानी क्षेत्रों में भी ठिठुरन का पहरा बना हुआ है। पल-पल मौसम का मिजाज इस कदर बदल रहा है कि नामांकन के बाद प्रत्याशियों को डोर टू डोर जनसंपर्क करने के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इतना जरूर कि नामांकन के अंतिम दिन शुक्रवार मौसम का मिजाज सुधरा रहा।
उधर, कोरोना संक्रमण के चलते निर्वाचन आयोग ने चुनाव रैलियों, जनसभा आदि पर 31 जनवरी तक पाबंदी लगाई हुई है। ऐसे में नेताजी दल-बल के साथ सियासी मैदान में कूदने के बजाय अपने समर्थकों संग बंद कमरे में चुनावी वैतरणी पार करने की रणनीति पर मंथन कर रहे हैं।
अथवा घर-घर पहुंचकर मतदाताओं के सामने नतमस्तक हो रही हैं। डिजिटल प्लेटफार्म का भी भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। लेकिन सियासत की इन पथरीली राहों पर आने वाले दिनों में मुश्किलें और बढ़ सकती है।
कुल मिलाकर आगामी 14 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले सियासी जंग में उतरे प्रत्याशियों के सामने कई चुनौतियां आने वाली हैं। मौसम विज्ञानियों का पूर्वानुमान व बीते सालों का रिकार्ड भी इस बात की तस्दीक देता है कि आने वाले दिनों में प्रत्याशियों के चुनावी चाल पर सर्दी की मार भारी पड़ सकती है।
बीते वर्षों में भी फरवरी में मौसम ने करवट बदली थी और पहाड़ में जमकर बर्फबारी हुई। ऐसे में कोरोना संक्रमण का ग्राफ ऐसे ही उछलता रहा तो निर्वाचन आयोग रैली, जनसभा आदि पर पाबंदी और भी आगे बढ़ा सकता है। इन परिस्थितियों में प्रत्याशियों के सामने डिजिटल प्लेटफार्म एवं डोर टू डोर चहलकदमी कर मतदाताओं तक पहुंचने का ही रास्ता बाकी बचता है।

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