उत्तराखंड विस चुनाव : 2017 या कांटे का संग्राम !
उत्तराखंड के चुनावी महाभारत में पहले के तीन चुनाव में नेक टू नेक फाइट
- कांग्रेस और भाजपा का ग्राफ बढ़ने के साथ ही बसपा और छोटे दलों की हालत ग्राफ
हल्द्वानी । 21 साल के सफर में उत्तराखंड विस का पांचवा चुनाव देख रहा है। 2017 को छोडक़र पिछले तीन विस चुनावों में कांग्रेस और भाजपा में नेक टू नेक फाइट देखने को मिलती रही है। 2002 में तो कांग्रेस ने भाजपा से केवल 1.1 फीसदी वोट ज्यादा बटोरे और सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े तक पहुंच गई।
इसके विपरीत 2007 में भाजपा केवल 2.31 फीसद वोट ज्यादा लायी और कांग्रेस से तेरह सीटों का इजाफा किया। चुनाव नतीजों के आकड़े इस बात की भी तस्दीक कर रहे हैं कि उत्तराखंड में सत्ता के खिलाफ एक से दो फीसदी भी वोट स्विंग हुए तो सरकार बनाने का गणित हाथ से फिसल जाएगा।
चुनावी गणित की इसी अबूझ पहेली ने भाजपा और कांग्रेस को डरा दिया है। यही कारण है कि प्रत्याशी चयन में दोनों दल शाम, दाम,दंड भेद के फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं।2017 के विस चुनाव में भाजपा मोदी के रथ पर सवार थीं। तब कांग्रेस की इतिहास की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।
इस चुनाव में कांग्रेस को छोडक़र सभी गैर भाजपाई राष्ट्रीय और क्षत्रीय दलों का सूपड़ा साफ हो गया था। तब भाजपा को 46.51 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को मत प्रतिशत के हिसाब से तो ज्यादा नुकसान नहीं हुआ लेकिन केवल ग्यारह सीट ही रह गई। एक तरह से भाजपा ने कांग्रेस से करीब डेढ़ फीसद और शेष अन्य दलों का सारा वोट बैंक अपने कब्जे में लेकर प्रचंड बहुमत हासिल किया।
तब भाजपा को 57 सीटों में जीत हासिल हुई। बसपा तो पूरी तरह से बिखर कर रह गई। यूकेडी का भी बुरा हाल हो गया। पहली बार इस दल को एक सीट भी नसीब नहीं हुई। इससे कांग्रेस अभी भी डरी सहमी है और प्रत्याशी चयन में कई सीटों पर भारी चूक कर चुकी है।
राज्य गठन के पहले विस चुनाव 202 में कांग्रेस को भाजपा से केवल 1.1 फीसद वोट ही ज्यादा मिले थे। सीटों के लिहाज से तब कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए जरुरी 36 सीट मिल गई थीं। इसके अलावा बसपा 11.2 वोटों के साथ उत्तराखंड की सबसे बड़ी तीसरी पार्टी बन गई थीं। बसपा को सात सीटे मिली थीं।
यही नहीं विभाजन के बावजूद यूकेडी ने चार सीट हासिल कर 6.36 फीसदी वोट भी हासिल किए थे। तब केवल 1.1 फीसद सत्ता विरोधी लहर ने भाजपा को केवल 19 सीटों पर समेट दिया था। यह हार भाजपा के अब तक के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी हार रही है। राज्य का गठन भाजपा ने ही किया और पहले चुनाव में भाजपा ही सत्ता से दूर हो गई। यानि सत्ता विरोधी लहर ने भाजपा के अच्छे कामों पर भी पानी फेर दिया।
2007 के विस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के साथ हिसाब बराबर किया। इसके बावजूद भाजपा सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े से दो कदम पीछे रह गई। यद्यपि भाजपा को कांग्रेस से 2.31 फीसद वोट ज्यादा मिले, लेकिन सीटों के अंकगणित में कांग्रेस 21 सीट लाने में सफल रही और भाजपा केवल 34 सीट ही ला सकी। इस बार बसपा ने अब तक के चुनावी इतिहास का सबसे प्रभावपूर्ण प्रदर्शन किया। तब बसपा को आठ सीट मिली।
यूकेडी भी तीन सीट लाने में सफल रही और यूकेडी और तीन निर्दलियों के समर्थन से भाजपा ने सरकार बना ली। इसके बाद 2012 के विस चुनाव में इन दोनों राज्य सरकारों के कामकाज का हिसाब किताब हुआ और इतिहास की सबसे ज्यादा रोमांचक जंग देखने को मिली। इसकी छाप चुनाव नतीजों में भी दिखी।
तब कांग्रेस को भाजपा के केवल 0.65 फीसद वोट ज्यादा मिले और 32 सीटों पर कब्जा किया। जबकि भाजपा 31 सीट लाने में सफल रही। इस चुनाव में बसपा लुढक़ कर तीन पर पहुंच गई। इसके विपरीत तीन निर्दलीय जितने में सफल रहे। इसमें दो कांग्रेस के बागी चुनाव जीत गए थे।
पिछले चुनाव यानि 2017 में बसपा का भी सफाया हो गया। एक कांग्रेस बागी तो एक यूकेकेडी बागी को एक सीट मिल पायी। भाजपा ने कांग्रेस को अब तक के चुनाव की सबसे बुरी हार से सामना कराया ही नहीं प्रचंड बहुमत के साथ 56 सीट हासिल कर ली। इस बार सत्ता के खिलाफ 13.02 फीसदी वोट स्विंग होते हुए दिखे और खुद कांग्रेस के विस चुनाव कंमाडर एक कुमाऊं तो एक गढ़वाल सीट से चुनाव हार गए। शायद इससे सबक लेकर कांग्रेस और भाजपा टिकट जारी करने में ज्यादा मंथन कर रही हैं। यही नहीं कांग्रेस सीएम के दावेदार हरीश रावत अपने लिए सुरक्षित ठौर खोजने की जुगत में हैं।
इस बार के चुनाव नतीजों ने बसपा और यूकेडी की संगठनात्मक शक्ति और चुनाव रणनीति की अकुशलता का भी पुख्ता प्रमाण पेश किया था। अब 2022 के चुनावी रण में कांग्रेस को प्रचंड सत्ता विरोधी रझान की दरकार है तो भाजपा किसी तरह से संग्राम को 2012 के ईद गिर्द समेटने की कोशिश कर रही है। इससे ही आया राम गया राम की चल पड़ी है और जनता तमाशबीन बनी है।
पिछले चार विस चुनावों में प्रमुख दलों का मिले वोट प्रतिशत में
वर्ष भाजपा कांग्रेस बसपा
2002 25.81 26.91 11.20
2007 31.90 29.59 11.76
2012 33.38 34.03 12.28
2017 46.51 33.49 07.04