- अपनों से ही लगने लगा है झटका, शेर सिंह गड़ि के बगावती तेवर
- सत्ता विरोधी लहर को थामने भाजपा का नया प्रयोग
- बलवंत सिंह भौर्याल को राजनीतिक वनवास
देहरादून। 2012 को छोडक़र कपकोट विस पर हमेशा भाजपा का कब्जा रहा है। 1989 से कांग्रेस से छिटका वोट बैंक भाजपा के खिलाफ घोर सत्ता विरोधी लहर भी कांग्रेस के काम नहीं आ रही है।
इस बार भाजपा ने कोश्यारी के गढ़ में सुरेश गड़िया को पतवार सौंप दी है। सुरेश गड़िया का टिकट तय होते ही शेर सिंह गड़िया ने सोशल मीडिया से लेकर तमाम मंचों में बगावती तेवर दिखा दिया है। पूर्व विधायक वलवंत सिंह भौर्याल की नाराजों को पटाने की कोशिश नाकाम हो गई है।
अभी तक किसी भी बड़े नेता ने शेर सिंह गड़िया को मनाने का काम नहीं किया है। इससे अनायास ही सुरेश गड़िया कपकोट के रण में अपनों के ही चक्रव्यूह में फंसने लगे हैं। यहां से कांग्रेस की ओर से ललित फस्र्वाण का टिकट पक्का है। आप ने पहले से ही भूपेश उपाध्याय को मैदान में उतार रखा है। अब सुरेश को अपनों के साथ ही विपक्षी धुरधंरों से एक साथ जूझना है। यहां से मालाबार हिल से भी सुरेश की कोई मदद नहीं हो सकती है।
यह राज्य के सबसे पिछड़ी विस सीटों में से एक है
राज्य गठन के बाद वजूद में आयी कपकोट विस मूलत कांग्रेस के गढ़ के तौर पर मानी जाती रही है। यह राज्य के सबसे पिछड़ी विस सीटों में से एक है। अभी भी यहां साठ फीसदी से अधिक गांव सडक़ से नहीं जुड़ सके है। पूरी विस में एक भी इंजीनियरिंग या अन्य हायर तकनीकी संस्थान नहीं है। एक तरह से यह इलाका विकास में काफी पीछे है। जातिय समीकरण में यह सीट ठाकुर वाहुल्य है।
इसी कारण भाजपा एवं कांग्रेस के रणनीतिकार ठाकुरों को ही आपस में लड़ने के लिए छोड़ देती है। 2012 को छोड़कर अभी तक कपकोट कांग्रेस के लिए अभेद्य दुर्ग की तरह से बना है। अब आप की दावेदारी से यहां मुकाबला ज्यादा रोचक हो सकता है।
पहला विस चुनाव भगत सिंह कोश्यारी ने लड़ा था
राज्य के पहले विस चुनाव में यहां से तत्कालीन सीएम भगत सिंह कोश्यारी ने चुनाव लड़ा था। तब कोश्यारी को 17 हजार 617 वोट मिले थे। कांग्रेस ने चामू सिंह गस्याल को मैदान में उतारा था। गस्याल 9 हजार 103 वोट पर ही सिमट गए थे। तक कोश्यारी की यह राज्य की बड़ी जीतों में एक जीत मानी गई थी।
इसके बाद 2007 में फिर कोश्यारी ने अपने प्रतिद्वंदी प्रताप सिंह को 9 हजार 516 मतों से पराजित कि या था। इसके बाद राज्य की बागडोर बीएस खंडूड़ी के पास गई तो कोश्यारी को राज्य सभा भेज दिया गया। यहां उप चुनाव में शेर सिंह गड़िया को कोश्यारी के उत्तराधिकारी के तौर पर मैदान में उतारा गया।
गड़िया भी शानदार मतों से जीत हासिल कर विस में दाखिल हो गए। 2008 में विधान सभाओं के नए परिसीमन के बाद कांडा विस का अधिकांश हिस्सा कपकोट में मिला दिया गया और कांडा विस इतिहास के पन्नों में दाखिल हो गई।
अब 2012 में भाजपा ने कपकोट से शेर सिंह गड़िया के बजाय बलवंत सिंह भौर्याल को मैदान में उतारा था। तब भौर्याल खंडूड़ी कैंप के बफादारों में एक माने जाते थे। इस चुनाव में कांग्रेस के युवा चेहरा ललित फस्र्वाण ने भौर्याल को कांटे की टक्कर में पराजित कर दिया।
तब फस्र्वाण को 22 हजार 335और बलवंत भौर्याल को 2 हजार 967 वोट मिले थे। 2017 के विस में इस सीट पर बसपा से भूपेश उपाध्याय ने त्रिकोणीय संघर्ष ला दिया। तब भौर्याल को 27 हजार 213 और ललित फस्र्वाण को 21 हजार 231 वोट मिले। उपाध्याय को 6 हजार 964 वोट मिले। ये वोट बसपा ने कांग्रेस के वोट बैंक से ले लिए इससे फस्र्वाण चुनाव हार गए। इस बार फिर कपकोट में कांग्रेस, भाजपा और आप में संघर्ष की तस्वीर उभर चुकी है। इस बार भाजपा का युवा चेहरा कपकोट के रण में क्या कहानी लिखता है, देखना दिलचस्प होगा।
राज्य गठन के बाद कपकोट में मिले मत प्रतिशत में
वर्ष पार्टी प्रत्याशी मत
2002 भाजपा भगत सिंह कोश्यारी 57.40
कांग्रेस चामू सिंह गस्याल 29.66
2007 भाजपा भगत सिंह कोश्यारी 40.12
कांग्रेस प्रताप सिंह 22.12
2012 भाजपा बलवंत सिंह भौर्याल 41.18
कांग्रेस ललित फस्र्वाण 43.84
2017 भाजपा बलवंत सिंह भौर्याल 46.39
कांग्रेस ललित फस्र्वाण 36.19
भाजपा ने तीसरी बार नहीं दिया सीटिंग विधायक को टिकट
कपकोट का चुनावी इतिहास अजीबो गरीब बन गया है। भाजपा ने दो बार लगातार जीतने वाले विधायक को तीसरा मौका नहीं दिया। पहले कोश्यारी दो बार लगातार विधायक रहे और तीसरी बार खंडूड़ी जरुरी के कारण राज्य सभा चले गए। अब भौर्याल को भी तीसरी बार टिकट नहीं दिया गया। कांग्रेस पहली बार ललित फस्र्वाण को दोबारा टिकट दे रही है। इससे पहले यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले नेताओं का कोई अता पता ही नहीं है।