देहरादून। कांग्रेस के बंशवाद का विरोध करते करते थक गई भाजपा अब खुद बंशवाद से बाहर नहीं आ पायी है। काशीपुर विस इसकी तस्दीक कर रही है। यहां राज्य गठन के बाद से पिछले विस चुनाव तक भाजपा हरभजन सिंह चीमा को ही मैदान में उतारती रही। इस बार भाजपा ने हरभजन चीमा के कारोबारी पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को मैदान में उतार कर कई सवालों को जन्म दिया है।
इससे भाजपा खुद बंशवाद के आरोप में घिर रही है और नए नेताओं को उभरने का मौका नहीं दे रही है। त्रिलोक को टिकट देने से महापौर उषा चौधरी, खिलेंद्र चौधरी, बलराज पासी,आशीष गुप्ता और राम मल्होत्रा को नाराज कर दिया है।
भाजपा ने त्रिलोक को मैदान में उतार कर विधायक और सरकार के खिलाफ सत्ताविरोधी रुझान को वेदम करने की रणनीति पर काम किया है, लेकिन काशीपुर के बड़े दिग्गजों की नाराजगी पार्टी के लिए मुसीबत बन सकती है। कांग्रेस यहां से पूर्व सासंद केसी सिंह बाबा की पुत्र वधु कामाक्षी को टिकट देने की रणनीति पर काम कर रही है।
21वीं सदी में नए भारत के निर्माण के साथ ही आरोप और प्रत्यारोप की परिभाषाएं भी बदलती रही हैं। पिछले विस चुनाव में भाजपा ने नैनीताल से संजीव आर्य और बाजपुर से यशपाल आर्य को चुनाव मैदान में उतारा था। अब इस चुनाव में भाजपा ने कुमाऊं में सल्ट में सुरेंद्र जीना के भाई महेश जीना को टिकट दिया है तो पिथौरागढ़ में प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को फिर मैदान में उतारा है।
अब हरभजन सिंह चीमा के पुत्र को काशीपुर से मैदान में उतार दिया है। भाजपा इस वंशवाद की की अपने तरीके से परिभाषा गढ़ेगी और फिर भी कांग्रेस या अन्य गैर भाजपाई दलों के बंशवाद पर तंज कसती रहेगी। यही 21वीं सदी के बदलते भारत की अफसाना है।
इस बार भाजपा ने खानपुर में कुंवर प्रणव सिंह की जगह पर उनकी पत्नी कुंवरानी देवयानी और देहरादून में विधायक हरवंश कपूर की पत्नी सविता कपूर को टिकट दिया है। भाजपा यहां भी वंशवाद की नई परिभाषा देगी। विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा पहले बंशवाद की वेल को आगे बढ़ा चुके हैं।
222 के विस चुनाव में भाजपा के इन सभी वंशवादी चेहरों पर सत्ता की चाबी भी टिकी हुई है। काशीपुर में अभी से विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं। इस बार यहां से पूर्व सांसद बलराज पासी टिकट की जुगत में लगे थे।
इसके अलावा कारोबारी राम मल्होत्रा और महापौर उषा चौधरी का नाम भी पैनल में था, लेकिन भाजपा वंशवाद की जकड़न से बाहर निकलने का साहस ही नहीं दिखा पा रही है।
यद्यपि जातिय समीकरण में काशीपुर की सीट भाजपा की तराई की सुरक्षित सीटों में से एक है। यहां 202में हरभजन सिंह चीमा को 18 हजार 396 वोट मिले थे। तब कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा को 18 हजार 21 वोट मिले थे। चीमा मात्र 19५ मतों से हारते हारते जीत गए थे। 2007 में चीमा ने कांग्रेस प्रत्याशी सत्येंद्र चंद्र गुडिय़ा को 16 हजार 34 वोटों से हराया था।
इसका कारण मोहम्मद जुबैर बने थे। तब जुबैर को 16 हजार 295 वोट मिले थे। तब चीमा को कुल 31 हजार 756 और गुडिय़ा को 15 हजार 722 वोट से ही संतुष्ट होना पड़ा था। इसके बाद 2012 में चीमा 31 हजार 734 वोट लाए और कांग्रेस प्रत्याशी मनोज जोशी 29 हजार 352 वोट लाए थे।
यहां भी जीत हार का अंतर 2 हजार 38२ का ही रहा था। 2017 में हार जीत का अंतर बढ़ गया था। मोदी लहर में चीमा को 5 हजार 156 और कांग्रे प्रत्याशी मनोज जोशी को 30 हजार 42 वोट मिले थे। तब जीत हार का अंतर 20 हजार 114 तक पहुंच गया।
पिछले चार विस चुनाव नतीजों की समीक्षा में यह बात साफ होती रही है कि काशीपुर में कांग्रेस अपना परंपरगत वोट बैंक को बचाने में कामयाब रही। कांग्रेस के प्रयोगधर्मी होने की बजह से चीमा हरेक बार बढ़ी जीत की और बढ़ते रहे। यही नहीं यहां बोट कटाऊ प्रत्याशियों के कारण भी कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं हो पायी।
अब इस बार भाजपा हरभजन सिंह चीमा के खिलाफ पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा की पुत्रवधु कामाक्षी को मैदान में उताराना चाहती है। कांग्रेस इस बार चीमा और सरकार के खिलाफ सत्ताविरोधी रुझान का लाभ लेना चाहती है।
इस लाभ से कांग्रेस को बंचित करने के लिए भाजपा ने काशीपुर में बंशवाद की नए प्रयोग को जन्म दिया है। अब देखना है कि कांग्रेस इसका मुकाबला किस तरह करती है।
पिछले विस चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को मिले वोट प्रतिशत में
वर्ष पार्टी प्रत्याशी मत प्रतिशत में
2002 भाजपा हरभजन सिंह चीमा 3.69
कांग्रेस केसी सिंह बाबा 3.36
2007 भाजपा हरभजन सिंह चीमा 33.74
कांग्रेस सत्येंद्र चंद्र गुडिय़ा 16.70
2012 भाजपा हरभजन सिंह चीमा 38.72
कांग्रेस मनोज जोशी 35.81
2017 भाजपा हरभजन सिंह चीमा 48.11
कांग्रेस मनोज जोशी 28.81