मेरा नाम डॉक्टर…..

सुशील उपाध्याय
पिछले दिनों एक इंटरव्यू बोर्ड में पढ़े-लिखे युवाओं से रूबरू होने का मौका मिला। इस इंटरव्यू में ज्यादातर आवेदक नेट, जेआरएफ-एसआरएफ, पीएच.डी., पोस्ट डॉक्टरोल और शिक्षण के अनुभवी थे। लेकिन, दिन भर की इस प्रक्रिया में कुछ बातें खटकती रहीं। संभव है कि हम जैसे अनेक लोग भी अपने समय में ऐसी ही चूक करते रहे होंगे, जबकि इन बातों से बहुत आसानी से बचा जा सकता है।

जैसे, अपने नाम के साथ ‘डॉ.’ टाइटल लगाकर नाम बताना अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन अपवाद छोड़ दें तो ज्यादातर ने अपने नाम के साथ डॉक्टर जोड़कर ही बताया। यह सही है कि अकादमिक और सैन्य पदवियां ही ऐसी हैं, जिन्हें अपने नाम के साथ स्थायी तौर पर लगा सकते हैं, फिर भी इससे बचा जाना चाहिए। वैसे भी डॉ. टाइटल चिकित्सक के नाम के साथ ही अच्छा और उपयोगी लगता है।

अपेक्षाकृत छोटी जगहों (इसका यह अर्थ नहीं है कि उनकी योग्यता कम होती है।) से पढ़ने वाले युवाओं से जब यह पूछा गया कि उन्होंने कहां से उपाधि प्राप्त की है तो वे अपने कॉलेज का नाम बताने लगते हैं, जबकि डिग्री प्रदान करने का अधिकार यूनिवर्सिटी को है। कॉलेज का नाम लेना जरूरी हो तो यह जवाब दिया जाना चाहिए कि मैंने अमुक कॉलेज से पढाई की है जो अमुक यूनिवर्सिटी से संबद्ध है।

कुछ लोग किसी भी प्रश्न के जवाब में कुछ निरर्थक बातों को बार-बार दोहराते हैं, मतलब है कि….., ये कहें कि…..जैसा कि कहा गया है……माने कि……सच कहूं तो……,जैसा कि सोचा जाता है,…..जैसा कि आप जानते हैं……यू नो….आदि आदि। ऐसे वाक्यों से भी बचने की जरूरत है। जवाब देते वक्त वाक्यों के बीच में किसी प्रकार का स्पेस न छोड़ें और घबराहट का संकेत न दें।
जो लोग कई साल से कॉलेजों या यूनिवर्सिटी आदि में अस्थायी तौर पर पढ़ा रहे होते हैं, इंटरव्यू में भी उनका व्यवहार शिक्षकों जैसा ही हो जाता है। ऐसे मामलों में अक्सर बहस की स्थिति बन जाती है। या फिर अपनी बात को सही मानने की जिद दिखने लगती है। इस व्यवहार से इंटरव्यू बोर्ड पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि बहस की स्थिति में नकारात्मक परिणाम आने का डर ज्यादा होता है।

यहां ध्यान रहे कि आपको किसी को बहस में पराजित नहीं करना है, बल्कि पूछे गए प्रश्न पर अपनी समझ को सामने रखना है। कई बार प्रश्न को ठीक से सुने बिना ही उत्तर दिया जाने लगता है, जो कि हर प्रकार से गलत है। किसी भी प्रश्न का जवाब उत्तेजना या नाराजगी के साथ बिल्कुल नहीं दिया जाना चाहिए। भले ही संबंधित प्रश्न आपकी वैचारिक सोच के विपरीत क्यों न हो। लेकिन, दीन-हीन और दया का पात्र बनकर भी अपनी बात करने की जरूरत भी नहीं है। इंटरव्यू के दौरान बेचारगी दिखाने से कोई अतिरिक्त नंबर नहीं मिलता।
इस इंटरव्यू में भी यह बात देखने में आई कि अनेक लोग उत्तर का अनुमान लगाते हैं। तुक्का लगाना ठीक नहीं है। अनुमान लगाने की स्थिति में भले ही आपने सही उत्तर दे दिया हो, लेकिन उसके साथ उत्तर देने का आत्मविश्वास मौजूद नहीं होता इसलिए प्रतिप्रश्न की स्थिति में चारों खाने चित होना तय होता है। कई बार हास्यास्पद अनुमान भी लगाए जाते हैं इसलिए अनुमान लगाने से बचें और जिसका उत्तर न पता हो, उसके बारे में साफ तौर पर मना कर दें।

कई बार पहला प्रश्न पूरा हुए बिना ही किसी अन्य बोर्ड सदस्य द्वारा अगला प्रश्न कर दिया जाता है। ऐसे में अगले प्रश्न को तत्काल न लपकें, बल्कि विनम्रता से कहें कि पूर्ववर्ती प्रश्न का उत्तर पूरा करने के बाद अगले प्रश्न पर अपनी बात रखने की कोशिश करूंगे या करेंगी। यदि किसी प्रश्न का उत्तर पता है तो उसे अनावश्यक रूप से लंबा खींचने से बचना चाहिए।
आप जिस भी भाषा में उत्तर दे रहे हैं, आपके उच्चारण स्पष्ट होने चाहिए। ऐसा न हो कि विद्यालय को विधालय कह रहे हों या शिक्षा को सिक्षा अथवा परीक्षा का उच्चारण परीच्छा जैसा कर रहे हों। नुक्तों की समझ न हो तो जबरन उर्दू शब्दों का प्रयोग करने से बचें। कई प्रत्याशी इतने उत्साही होते हैं कि वे धम्म से कुर्सी पर बैठ जाते हैं और अनुमति लिए बिना ही अपना सामान साक्षात्कार-मंडल की टेबल पर फैला लेते हैं।

मांगे बिना ही अपनी किताबें या लेख आदि साक्षात्कारकर्ताओं को बांटने लगते हैं। वस्तुतः किसी भी कागज, किताब या अन्य दस्तावेज को तभी प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जब उसकी मांग की जाए। ऐसा व्यवहार करने से कई बार ऐसे कठिन प्रश्न भी उठ जाते हैं, जिसके बारे में इससे पहले आपने सोचा तक न हो।
इस इंटरव्यू में एक ऐसे सज्जन भी आए जिन्होंने अपना काला चश्मा गले के नीचे शर्ट में टांगा हुआ था। इसके अलावा बॉडी-स्प्रे का भी ठीक-ठाक प्रयोग किया हुआ था। ध्यान रहे कि आप कहीं पार्टी में नहीं जा रहे हैं, बल्कि एक महत्वपूर्ण पद के लिए इंटरव्यू देने जा रहे हैं।

इसलिए पहनावा और सलीका, दोनों ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं। सादगी सभी को आकर्षित करती है, लेकिन ऐसी सादगी भी न हो कि लगे जैसे खेत से निकलकर सीधे इंटरव्यू देने आ गए हैं। (खेत में काम करना कोई निम्न स्तर की बात नहीं है। केवल इतनी बात है कि कपड़े मौके के अनुरूप हों।) कई दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी, बेतरतीब बाल, चढ़े हुए कॉलर, खुले हुए बटन किसी को पसंद नहीं आते। और रंग-बिरंगे कपड़े शादी-पार्टी में तो अच्छे लगते हैं, इंटरव्यू में नहीं। यही बात गहनों और जरूरत से ज्यादा अंगूठियों पर भी लागू होती है।

(एक महिला ने अंगूठों को छोड़कर शेष आठ उंगलियों में हर रंग के नग वाली अंगूठियां पहनी हुई थीं।) एक कैंडिडेट तो इतना भक्तिमार्गी था कि उसने बोर्ड के सभी 7 सदस्यों को अलग-अलग नमस्ते की। ऐसा व्यवहार हास्यास्पद है। जबकि सभी को एक बार मे सामूहिक तौर पर नमस्ते कर सकते हैं। ना करें तो भी कोई बात नहीं है।
एक बात और, यदि संयोग से इंटरव्यू बोर्ड में आपका कोई परिचित मिल जाए तो यह दिखाने की जरूरत नहीं है कि आपका पहले से परिचय है या कोई रिश्ता, संबंध है। न ही ऐसे किसी व्यक्ति को देखकर अतिरिक्त रूप से खुशी जाहिर करने की जरूरत है। संबंधित व्यक्ति से अपने पुराने परिचय का जिक्र करने लगना या उनके नाम का उल्लेख करते हुए बात करना तो और भी खराब है। और हां, यदि इंटरव्यू बोर्ड का कोई सदस्य सद्भावना या औपचारिकता में आपसे चाय आदि के लिए पूछ ले तो सहमति जताने से बचना चाहिए।

कुल मिलाकर सहज रहें, अपनी बात को सलीके से कहें, रिजल्ट के बारे में न पूछें और अपनी तरफ से सवाल पूछने से बचें। भूलकर भी प्रतिप्रश्न न करें और बोर्ड सदस्यों को गलत साबित करने की कोशिश कतई न की जाए। क्योंकि बोर्ड की नहीं, परीक्षा आपकी है।

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