धनोल्टी सीट पर कांग्रेस भाजपा में टिकट को लेकर घमासान

देहरादून। धनोल्टी विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा व कांग्रेस में टिकट को लेकर घमासान नजर आ रहा है। यहीं कारण है कि अभी तक इस सीट पर टिकट बंटवारे को लेकर भाजपा की मुश्किलें कम होंने का नाम नही ले रही है। पार्टी के भीतर बाहरी की दावेदारी को कार्यकताओं में अंदर ही अंदर एक चिंगारी सुलग रही है। क्यों कि विगत चुनाव में निर्दलीय जीत कर आये विधायक प्रीतम सिंह पंवार अब भाजपा में शामिल हो गये हैं जिसके कारण भाजपा में टिकट को लेकर घमासान मचा हुआ है।

निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पँवार के बीजेपी में शामिल होने से धनोल्टी में पार्टी के अंदर बगावत के साथ ही नए समीकरण पैदा हो गए हैं। निर्दलीय विधायक प्रीतम पँवार ने चुपचाप दिल्ली जाकर राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के सामने भाजपा की सदस्यता ले कर सब को चौंका दिया है।

धनोल्टी में पार्टी कार्यकर्ता और बड़े नेता इसका विरोध न कर सके इसलिए प्रीतम पंवार ने कमल थमाने का कार्यक्रम दिल्ली में किया। पार्टी के भीतर जो लोग पिछले पाँच वर्षों से टिकट की दावेदारी को लेकर ताल ठोंके बैठे थे व चुनाव की तैयारी के तहत धनोल्टी में भाजपा का विधायक न होने के बावजूद विकास कार्यों को सरकार के माध्यम से करवा रहे थे उनके सपनों को प्रीतम के भाजपा में आने से ब्रेक लग गया जो उन नेताओं के लिए बड़ा झटका साबित हुआ।

क्योंकि अब प्रीतम टिकट दावेदारी की दौड़ में बड़े चेहरे के रूप में सामने आ गए हैं। वर्ष 2१७ में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार प्रीतम भले ही भाजपा और कांग्रेस को हराकर विधानसभा पहुचने में कामयाब रहे थे, लेकिन प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने के चलते प्रीतम सिंह कोई बड़े कार्य नहीं करा पाये व केवल मामूली विधायक ही बन कर रह गए थे जबकि इससे पूर्व 2१२ में उन्होंने यमनोत्री से उक्रांद प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर प्रदेश सरकार में मंत्री बने व विकास कार्य धनोल्टी में किए।

जिससे लोगों में उम्मीद जगी थी कि उनको धनोल्टी से जिता कर विकास कार्यो को गति मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। , विकास का कोई भी बड़ा काम करा पाने में नाकाम रहने के चलते प्रीतम का जनाधार लगातार खिसक रहा था ऐसे में उन्हें अंदाजा था कि इस बार बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े तो लेने के देने पड़ सकते हैं, लिहाजा बीजेपी की गोद में जा बैठना प्रीतम पंवार को हर लिहाज से फायदे का सौदा लगा।

2012 के दौर में बतौर निर्दलीय भी प्रीतम नें विजय बहुगुणा और हरीश रावत के सीएम रहते काबीना मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त किया था। 2017 में बीजेपी को प्रचण्ड बहुमत मिलने से प्रीतम की लॉटरी नहीं लग पाई, जैसे तैसे रूखे सूखे साढ़े चार साल तो विधायकी के कट गए, लेकिन चुनाव से प्रीतम पंवार को पता चल चुका था कि बतौर निर्दलीय इस बार धनौल्टी से दाल नहीं गलने वाली है अगर भाजपा से टिकट का जुगाड़ कर लिया तो एक बार फिर विधायक बनने की राह आसान हो सकती हैं।

लेकिन प्रीतम के सामने धनोल्टी में टिकट की राह में भाजपा के बड़े चेहरे पूर्व विधायक महाबीर सिह रांगड , पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा, राजेश नोटियाल सुभाष रमोला, जिला पंचायत की पूर्व उपाध्यक्ष मीरा सकलानी ने भी अपनी दावेदारी जता कर रोड़ा अटका दिया है, इन सभी ने पार्टी नेतृत्व को दो टूक कह दिया है कि उनका काम सिर्फ झंडा और डंडा थामने का नही है।

प्रीतम पंवार को जिस तरह पार्टी प्राथमिकता दे रही है उससे पार्टी की सेहत बिगड़ सकती है। ऐसे में धनोल्टी से टिकट फाइनल करना भाजपा के लिए गले की हडडी बन चुका है। प्रीतम पंवार के अलावा जो और मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं उनमें महावीर सिंह रांगड़ और नारायण सिंह राणा सबसे प्रमुख नाम है। सूत्रों की माने तो अगर संघ की पसंद को पार्टी ने वरीयता दी तो पूर्व विधायक महावीर सिंह रांगड़ का टिकट पक्का हो सकता है।

लम्बे समय से संघ से जुड़ा होना, पूर्व विधायक होना और$ त्रिवेन्द्र सरकार में राज्यमंत्री रहकर जनता के काम कराना और धनोल्टी विधानसभा में कई सडक़ो निर्माण करना उनकी दावेदारी को और मझबूत बनाता हैं। रांगड़ पार्टी को साफ चेता भी चुके हैं कि यह उनकी सियासी पारी का आखिरी चुनाव है लिहाजा पार्टी टिकट दे या न दे वो हर हाल में इस बार पार्टी से बगावत कर धनोल्टी विधानसभा से चुनाव में लड़ेंगे। वहीं पूर्व मंत्री रह चुके नारायण सिंह राणा भी भाजपा से टिकट के दावेदार हैं।

कद्दावर नेता होने के साथ साथ खास बात यह भी है कि वे भाजपा के वरिष्ठ नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के समधी भी है, लिहाजा राणा की भी केंद्र में मजबूत पकड़ हैं, वह भी टिकट की पैरवी के लिए इन दिनों दिल्ली में अपने सहयोगियों व समर्थकों के साथ डेरा डाले हुए हैं। कुल मिला कर धनोल्टी में भाजपा के सामने गर्म दूध जैसी स्थिति है जिसे न पिया जा सकता है और न थूका जा सकता है।

पार्टी के सामने एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति हो गईं हैं। ऐसे में पार्टी क्या निर्णय लेती है यह आने वाले दिनों के साफ हो जायेगा। हालांकि प्रीतम सिंह पंवार का अपना जनाधार है और पार्टी के सच्चे सिपाही उनके साथ खड़े है जो कहते है कि पार्टी जिसे टिकट देगी वह उसके साथ जायेंगे।

ऐसे में प्रीतम सिंह पंवार टिकट के सबसे मजबूत दावेदारों में हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी टिकट वितरण को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं से जूझ रही है। पूर्व ब्लाक प्रमुख और कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष व वरिष्ठ नेता जोत सिह बिष्ट और डॉ वीरेन्द्र रावत के बीच टिकट के लिए कड़ा मुकाबला देखा जा रहा है। जहां जोत सिंह बिष्ट के लिए खुद हरीश रावत खुद जोर लगाए हुए हैं वहीं डा. वीरेंद्र रावत के लिए प्रीतम सिंह पैरवी कर रहे हैं।

भाजपा के महावीर रांगड़ की तरह जोत सिंह बिष्ट भी अपनी पार्टी को आगाह कर चुके हैं कि उनकी सियासी पारी का यह अंतिम चुनाव है। अगर पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी अखाड़े में कूदेंगे। वैसे भी पिछले पाँच वर्षों में जोत सिंह धनोल्टी में लगातर जनसम्पर्क में लगे रहकर कांग्रेस को मजबूत करने का काम करते रहे हैं ऐसे में टिकट न मिलने पर उनका निर्दलीय चुनाव लडऩा तय है और अगर ऐसा हुआ तो यह कांग्रेस की सेहत के लिए ठीक नहीं होगा।

वहीं डा. विरेंद्र सिंह पेशे से चिकित्सक है जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह के रहते अपना टिकट पक्का मानकर अपनी सरकारी सेवा छोड़ दी व समाज सेवा में लग गये लेकिन बाद में प्रीतम सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष पद से मुक्त कर दिया गया जिसके कारण उनकी टिकट मिलने की संभावनाओं पर विराम लग गया हालांकि प्रीतम सिंह पूरी ताकत लगाये हुए है। ऐसे में टिकट किसको मिलता है यह आने वाला समय बतायेगा। लेकिन कांग्रेस की डगर भी आसान नहीं है।

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