सियासी मैदान में निर्दलों ने खूब काम बिगाड़ा

देहरादून। चुनाव चाहे लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का सियासी फिजां में कोई ना कोई नारा (स्लोगन) तैर ही जाता है। हर राजनीतिक पार्टी भी सियासी मैदान में अपने प्रत्याशियों को जीत दिलाने और प्रतिद्वंदियों को चित्त करने के लिए तरह-तरह के स्लोगन तैयार करती हैं।

पूर्व के चुनावों की भांति इस बार के विधानसभा चुनाव में भी विभिन्न प्लेटफार्म पर नए-नए स्लोगन तैरने लगे हैं। भाजपा जहां युवा सरकार अबकी बार साठ पार नारे के साथ चुनावी रण में उतर चुकी है, वहीं कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के चेयरमैन व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा के स्लोगन से हर मंच पर भाजपा पर तंज कस रहे हैं।
हरदा का तीन तिगाड़ा वाला ये स्लोगन इस बार के विस चुनाव में क्या गुल खिला पाता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। पर एक किसी से छिपी हुई नहीं है कि हर चुनाव में निर्दलीयों ने भाजपा व कांग्रेस का काम खूब बिगाड़ा है। ये बात अलग है कि चुनाव जीतने के बाद निर्दलीय सत्ता की कमान संभालने वाली राजनीतिक पार्टी की गोद में बैठ जाते हैं।

पृथक राज्य बनने के बाद वर्ष 2002 में हुए पहले आम विधानसभा चुनाव से निर्दलीय की यह परंपरा निरंतर चली आ रही है। पहले आम चुनाव में तीन निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद वर्ष 2007 व 2012 में हुए दूसरे व तीसरे विस चुनाव में भी तीन-तीन निर्दलीय चुनाव जीते थे। बात अगर पिछले विस चुनाव (वर्ष 2017) की करें तो तब दो निर्दलीय जीते थे।

धनौल्टी विस सीट से निर्दल मैदान में उतरे प्रीतम सिंह पंवार ने भाजपा के प्रत्याशी व पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा को 1615 मतों से पराजित किया था। जबकि भीमताल सीट से निर्दलीय राम सिंह खेड़ा ने भाजपा प्रत्याशी व पूर्व मंत्री गोविंद सिंह बिष्ट को 3446 मतों से पराजित किया था। हालांकि बाद में ये दोनों निर्दल विधायक भी भाजपा सरकार के साथ खड़े हो गए।
सियासी मैदान में उतरे अन्य निर्दल भले ही चुनाव नहीं जीत सके हो पर जिताऊ प्रत्याशियों का सियासी खेल उन्होंने खूब बिगाड़ा है। छह निर्दलीय तो दूसरे नंबर पर रहे हैं। इन्होंने भाजपा व कांग्रेस के दिग्गजों को चुनावी मैदान में चित्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। केदारनाथ विस सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे कुलदीप रावत करीब आठ सौ मतों से पीछे रहकर विधायक बनने चूक गए थे।

इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज रावत को जहां 13906 वोट मिले थे तो निर्दलीय कुलदीप रावत को 13037 मत मिले थे। जबकि भाजपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रही थी। इसी तरह घनशाली सीट से निर्दल मैदान में उतरे धनीलाल शाह भी दूसरे नंबर पर रहे थे। वह भाजपा प्रत्याशी शक्तिलाल शाह से आधे से अधिक मतों से हारे थे।

नरेन्द्र नगर सीट से निर्दलीय ओम गोपाल रावत भी भाजपा के प्रत्याशी सुबोध उनियाल से करीब पांच हजार मतों से हराकर दूसरे नंबर पर रहे थे। देवप्रयाग सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी विनोद कंडारी व निर्दलीय दिवाकर भट्ट के बीच ही कांटे का मुकाबला रहा। यद्यपि जीत भाजपा प्रत्याशी को मिली पर निर्दलीय प्रत्याशी ने कांग्रेस के प्रत्याशी व पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी को तीसरे नंबर पर धकेल दिया।

टिहरी विस सीट पर भी निर्दलीय मैदान में उतरे दिनेश धनै दूसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा प्रत्याशी धन सिंह नेगी ने उन्हें करीब छह हजार मतों से पराजित किया था। डीडीहाट सीट पर भाजपा प्रत्याशी बिशन सिंह चुफाल व निर्दलीय किशन भंडारी के बीच मुख्य मुकाबला रहा।

करीब सवा दो हजार मतों से जीत भाजपा प्रत्याशी को मिली थी। इसके अलावा कुछ और सीटें भी रही जहां पर निर्दलीयों का प्रदर्शन अच्छा रहा। मैदान में उतरे ये निर्दल खुद जीत तो नहीं सके पर कई जिताऊ प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ गए।

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