ना ये धर्म है और ना संसद!

सुशील उपाध्याय
धर्म संसद। जिसने भी यह शब्द गढ़ा होगा, उसकी भावना वैसी तो कतई नहीं रही होगी, जैसी हरिद्वार में हुई कथित धर्म संसद से ध्वनित हो रही है। इसमें दो शब्द हैं, धर्म और संसद। धर्म यानि धारण करने योग्य शुभ मार्ग और संसद यानि सभ्यजनों का ऐसा समूह जो सर्वहित में विमर्श के लिए एकत्र हुआ हो। अब उस कथित जमावड़े को देखिए जिसमें ताजा-ताजा हिंदू बना एक पूर्व मुसलमान, शब्दों के जरिये जहर घोलने वाला एक भगवाधारी और राजनीतिक लाभ पाने की जुगत में लगे कुछ छुटभैये नेता जुटे हों, वो क्या वास्तव में धर्म संसद थी ? और क्या वास्तव में धर्म संसद हो सकती है ? जिस शहर में ये घटना हुई, मैं आजीविका और पारिवारिक कारणों से उसके साथ जुड़ा हुआ हूं। हम जैसे लाखों रहवासियों में से शायद ही किसी को ज्ञान रहा हो कि कोई ऐसी धर्म संसद यहां हुई है, लेकिन मीडिया में प्रचार के बाद पता चला कि ये सब उस जगह घटित हुई, जो हिंदुओं का प्रिय तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ अपने भीतर आधा दर्जन मसजिद, कई गुरूद्वारे, तीन चर्च, इतने ही जैन मंदिर और भी न जाने ऐसे कितने मठों-पूजाघरों और संस्थाओं को संभाले हुए है, जिनकी पूजा-पद्धतियां पूरी तरह अलग हैं। कुछ देर के लिए धर्म की बात भूल भी जाइये तो इस घटना से देश और हिंदू धर्म की छवि को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई आसान नहीं है।
दुनिया भर के मीडिया माध्यमों में हरिद्वार की कथित धर्म-संसद में धर्म विशेष के खिलाफ हुई भाषणबाजी का मामला छाया हुआ है। देश की, राज्य की और शहर की जितनी बदनामी हो सकती थी, वो दुनिया भर हो चुकी है। जिसे धर्म संसद का नाम दिया गया है, न उसमें धर्म था और न ही कोई संसद थी। कुछ ऐसे लोग थे जिनकी ढकी-छिपी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं और कुछ ऐसे भी थे जो कुछ भी करके प्रचार में रहना चाहते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पडता कि उनके कहे-किये हुए का परिणाम क्या होगा! क्या इसे सच में हिंदुओं की धर्म संसद कहा जा सकता है! न इसमें कोई अधिकृत शंकराचार्य मौजूद था, न कोई ऐसा संत था जिसे देश-दुनिया तो दूर, भारत के लोग भी जानते हों। न हिंदू धर्म का कोई स्काॅलर और न ही हिंदुओं की प्रमुख संस्थाओं का कोई प्रतिनिधि था।
इस कथित धर्म संसद के बारे में स्थानीय लोगों को उस वक्त पता चला जब शब्दों के जरिये जहर उगलता एक वीडियो सार्वजनिक हुआ। खैर, अब देर से ही सही पुलिस कार्रवाई शुरू हुई है। इसके बाद सफाई देने का दौर भी आरंभ हो गया है। नफरत फैलाने वाले अब खुद की जान को खतरा बता रहे हैं। लेकिन, जो नुकसान होना था, वो हो चुका है। दुनिया एक बार फिर भारत के बारे में ये राय बनाएगी कि यहां प्रगतिशीलता और तार्किक-दृष्टि, दोनों का ही पतन हो गया है। वस्तुतः हिंदू होने का जो सुख इसकी विविधता में मौजूद है, ऐसी हरकतें उस सुख को छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। ऐसा लगता है कि कुछ बेहूदा और जाहिल लोग हिंदुओं को एक गिरोह में तब्दील करने पर आमादा हैं। (हालांकि, यह कभी संभव ही नहीं होगा, जहां नौ बड़े दार्शनिक मत, तैंतीस करोड़ देवी-देवता, हजारों धर्म-ग्रंथ, लाखों पूजा पद्धतियां मौजूद हों, वहां कोई एक बाड़े में कैसे रह सकेगा!)
यदि किसी को कत्ल करने या गिरोह बनाकर हमला करने से हिंदू धर्म बचता हो तो ये मेरे जैसे करोड़ों लोगों का हिंदू धर्म तो नहीं हो सकता। जिनके पास एक ईश्वर, एक पैगंबर/संदेशवाहक और एक किताब है, उनके धर्माें की अपनी सीमाएं हैं। और उनकी सीमाओं से हमें क्या लेना-देना। लेकिन, हमारे पास न ईश्वरों की कमी, न धर्म-ग्रंथों की और न ही अवतारों की। जिस धर्म में एक घर के भीतर शैव, शाक्त, वैष्णव साथ रह सकते हों, जहां इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई मां दुर्गा की पूजा कर रहा है या नाथपंथ को मानने लगा है या इस बात से भी कोई भी फर्क नहीं पड़ता कि किसी ने गणेश जी की पूजा बंद करके भगवान बुद्ध को मानना शुरू कर दिया, वहां कोई गिरोह यह बताए कि दूसरी आस्था या पूजा पद्धतियों के लोगों पर हमला करो तो यह स्वीकार्य नहीं हो सकता।
कई बार लगता है कि धर्म के नाम पर हमें जो कुछ बताया, समझाया जा रहा है, वह सब कुछ मध्ययुग की तरफ ले जाने की साजिश ही है। ये कैसा तर्क है कि यदि अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, ईराक या ऐसे ही कुछ अन्य देशों में इस्लाम के नाम पर लोग मारकाट कर रहे हैं तो हम भी उन्हें ही अपना आदर्श बनाकर हमलें शुरू कर दें, उन्हीें की तरह गिरोह बनाकर तालिबान, आईएसएस, लश्कर बन जाएं।
अतीत में जब कभी किसी धर्म संसद की बात होती थी तो उससे यही भाव निकलता था कि धर्माचार्याें और विद्वानों ने एक साथ बैठकर धर्म-अध्यात्म, दार्शनिक-सिद्धांतों और धार्मिक-सार्वजनिक जीवन के अंतःसंबंधों पर गहन विमर्श किया होगा। लेकिन, इस कथित धर्म संसद में तय हुआ है कि परधर्मियों पर हमला किया जाना है। देश की छवि और हिंदू धर्म, दोनों के लिए यह कितनी घिनौनी बात हुई है। कुछ साल पहले तक हम किन चीजों के लिए जाने जा रहे थे! दुनिया स्वीकार कर रह रही थी कि अब भारत साॅफ्ट पावर है। जहां से बेहतरीन टेक्नोक्रेट और बेहतरीन डाॅक्टर निकल रहे हैं। जिन्होंने अमेरिका की सिलीकाॅन वैली और इंग्लैड की नेशनल हेल्थ सर्विस को संभाला हुआ है।
अब, आप खुद सोचिए कि ऐसी घटनाओं के बाद देश को किन चीजों को लिए जाना जाएगा! एक हिंदू के नाते मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरे धर्म की पहचान किसी संगठित गिरोह के आधार पर हो। और कभी ये भी नहीं चाहूंगा कि हमें पाकिस्तान जैसा कोई विभाजित देश सीख देने लगे । या दुनिया हमें सिखाए कि धर्मनिरपेक्षता क्या होती है और मानवाधिकारों पर चेताया जाने लगे। सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी ही चाहिए ताकि इसके बाद इस तरह की हरकतें न हों। ये सख्ती किसी एक धर्म के मामले में नहीं, बल्कि सभी के मामले में होनी चाहिए। चाहे ये हिन्दू हों या फिर मुस्लिम गिरोह। अभी कुछ ही दिन पहले पंजाब में जिस तरह दो लोगों की लिंचिंग हुई, उसे साफ पता चल रहा है कि नफरत किसी एक जगह तक सीमित नहीं है। इसका सर्वव्यापीकरण बहुत तेजी से हुआ है।
हम सभी को याद रखना ही होगा कि दंगे कराने वाले तो चले जाएंगे, लेकिन नफरत हमेशा के लिए जड़ जमा लेगी।

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