सुशील उपाध्याय
नई शिक्षा नीति का बिंदु संख्या 10.10 कहता है कि भविष्य के पाठ्यक्रम मिश्रित स्वरूप वाले होंगे। यानि हरेक डिग्री में शिक्षण की कई पद्धतियां होंगी। वर्तमान में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में जो पाठ्यक्रम संचालित हैं, वे मिश्रित प्रकृति के नहीं और एक दूसरे से पूरी तरह अलग प्रतीत होते हैं।
इस वक्त देश में मोटे तौर पर दो पद्धतियों के माध्यम से शिक्षण हो रहा है। इनमें पहली पद्धति नियमित अध्ययन है और दूसरी पद्धति दूरस्थ/मुक्त अध्ययन है। पूर्व में कई संस्थाएं प्राइवेट तौर पर भी परीक्षाएं देने का अवसर प्रदान करती थी, लेकिन अब इस व्यवस्था को बंद कर दिया गया है।
विगत वर्षों में इक्का-दुक्का जगहों पर ऑनलाइन के रूप में एक नई पद्धति को लागू किया गया है। इसका पहला प्रयोग आईआईटी मद्रास द्वारा ऑनलाइन बीएससी प्रोग्राम के रूप में किया जा चुका है।
इसके समानांतर ही इग्नू ने भी अपने कुछ पाठ्यक्रम ऑनलाइन मोड में उपलब्ध कराएं हैं। हालांकि, ये दोनों पहल मिश्रित पद्धति की नहीं हैं। नई शिक्षा नीति में यह प्रावधान किया गया है कि विभिन्न अकादमिक कार्यक्रमों में सीटों की वृद्धि, प्रवेश के अवसरों को आसान बनाने और उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ाने के लिए शिक्षण पद्धतियों के बीच के अंतर को कम किया जाएगा। विगत दो वर्षों में कोरोना के फैलाव के बाद ऑनलाइन एजुकेशन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आपात स्थितियों में हुई इस वृद्धि ने ऑनलाइन एजुकेशन की व्यापक संभावनाओं को सामने रखा है। इस दौरान सभी रेगुलर पाठ्यक्रमों की पढ़ाई भी ऑनलाइन पद्धति से ही हुई है। इसलिए नई शिक्षा नीति में सभी संस्थानों का उत्तरदायित्व होगा कि वे अपने यहां पर डिस्टेंस एजुकेशन के साथ-साथ ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी शुरू करें।
नई नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि डिस्टेंस अथवा ऑनलाइन माध्यम से प्राप्त की गई डिग्री नियमित रूप से प्राप्त की गई डिग्री के समतुल्य होगी। (सैद्धान्तिक तौर पर अब भी समतुल्य ही है, लेकिन कुछ विशिष्ट मामलों में ओपन/ डिस्टेंस माध्यम की डिग्री को स्वीकार नहीं किया जाता।) इस नीति में एक और उल्लेखनीय बात कही गई है की जो संस्था पहले से ही डिस्टेंस एजुकेशन में काम कर रहे हैं, उन्हें ऑनलाइन पाठ्यक्रम को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही इन ऑनलाइन पाठ्यक्रम को नियमित रूप से संचालित पाठ्यक्रमों के साथ समन्वित किया जाएगा। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि तीनों प्रकार की पद्धतियों को मिलाकर मिश्रित स्वरूप वाले पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे।
मिश्रित व्यवस्था को नई नीति का हिस्सा बनाए जाने से भविष्य में उच्च शिक्षा के स्वरूप में बड़े स्तर पर बदलाव आएगा। इस मिश्रित डिग्री व्यवस्था का अर्थ यह है कि किसी भी डिग्री, डिप्लोमा अथवा सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम का कुछ हिस्सा रेगुलर, कुछ ऑनलाइन और कुछ डिस्टेंस मोड में पूरा किया जा सकेगा। चूंकि इसी नीति में क्रेडिट बैंक और ‘मल्टी-एंट्री, मल्टी-एग्जिट’ की व्यवस्था भी की गई है इसलिए इन सबके साथ पढ़ाई की मिश्रित पद्धति को जोड़ने से पूरी उच्च शिक्षा एक अलग फलक पर विकसित होती दिखाई देगी।
नीति की दृष्टि से उपर्युक्त प्रयास बेहद उल्लेखनीय है, लेकिन अब प्रश्न यह है कि एक या दो संकाय में कुछ गिने-चुने विषयों की पढ़ाई करने वाले संस्थानों में इस व्यवस्था को किस प्रकार लागू किया जाएगा ? इसका समाधान मिश्रित डिग्री में छिपा हुआ है यानि कोई स्टूडेंट अपने मेजर या माइनर सब्जेक्ट को किसी अन्य संस्थान से किसी अन्य पद्धति (ऑनलाइन/डिस्टेंस) में पढ़कर सम्बन्धित क्रेडिट अपने मूल संस्थान में स्थानांतरित करा सकेगा।
नई शिक्षा नीति जारी हुए लगभग डेढ़ साल हो गया है, लेकिन अभी यूजीसी अथवा अन्य किसी नियामक संस्था द्वारा ऐसा कोई मॉड्यूल प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिसके आधार पर विश्वविद्यालय अथवा अन्य स्वायत्त संस्थान अपने पाठ्यक्रमों का स्वरूप और शिक्षण पद्धति निर्धारित कर सकें। हालांकि कुछ विश्वविद्यालयों ने अकादमिक वर्ष 2021-22 से नई शिक्षा नीति के तहत प्रवेश प्रारंभ कर दिए हैं और कुछ राज्यों ने इस नीति को अमल में लाने के लिए उच्च स्तरीय समितियों का गठन किया हैं, लेकिन अभी धरातल पर ऐसा कोई क्रियात्मक प्रारूप सामने नहीं आया है जिससे यह साफ हो कि नई शिक्षा नीति के आधार पर बनने वाला अकादमिक और व्यवस्थागत ढांचा किस प्रकार का होगा। जिन संस्थाओं ने मौजूदा वर्ष से नई शिक्षा नीति लागू की है, उनमें से अभी तक किसी ने भी मिश्रित पद्धति की डिग्री उपलब्ध कराने का उल्लेख नहीं किया है। इस नीति पर विचार करते हुए पुनः उसी बिंदु पर आते हैं कि नीति का स्वरूप अच्छा है या बुरा है, यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किसके द्वारा, किस उद्देश्य से और किस लक्ष्य के साथ लागू किया जाएगा।