गुवाहाटी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि सदन में सत्र के दौरान व्यवधान अनायास नहीं होता, बल्कि नियोजित तरीके से किया जाता है और यह आचरण सभी के लिए चिंता का विषय है।
बिरला ने असम विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन विधायकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि लोकतंत्र वाद-विवाद और संवाद पर आधारित पद्धति है, किन्तु सदनों में निरंतर चर्चा-संवाद नहीं होना सभी जन प्रतिनिधियों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि पक्ष-विपक्ष में मतभेद होना, सहमति-असहमति होना स्वाभाविक है, किन्तु असहमति गतिरोध में नहीं बदलनी चाहिए । उन्होंने कहा कि सदन को चर्चा और संवाद का केन्द्र बनना चाहिए।
जनता कि अपेक्षाओं और आकांक्षाओं पूरा करना जनप्रतिनिधियों का मूलभूत दायित्व होना चाहिए। सदन को व्यवधान का नहीं चर्चा का केन्द्र बनना होगा और जन प्रतिनिधियों का दायित्व है की लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता की आस्था और विश्वास को कायम रखें।
उन्होंने कहा, आज़ादी के अमृत महोत्सव के विषय में बोलते हुए श्री बिरला ने कहा कि देश की 75 वर्षों की यात्रा में भारत का लोकतंत्र निरंतर सशक्त और मजबूत हुआ है। जनप्रतिनिधियों से लोगों की अपेक्षाएं और आकांक्षाएं भी बढ़ी हैं और इसलिए, जनप्रतिनिधियों के ऊपर जिम्मेदारी है कि वे शासन प्रणाली को अधिक सार्थक, सहभागितापूर्ण, पारदर्शी और समावेशी बनाएं तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता के प्रति और अधिक जवाबदेह बनाएं।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर रुपी विधान सभाओं को कानून बनाते समय सदन में व्यापक चर्चा कर, जनता तथा विभिन्न हितधारकों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करते हुए जनता के लिए कल्याणकारी नीतियां बनाने का कार्य करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र प्राचीन काल से हमारे आचरण एवं विचारों में समाहित है और इसी कारण भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त है।
इस अवसर पर असम विधानसभा के अध्यक्ष बिश्वजीत दैमारी,असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, विधानसभा के उपाध्यक्ष नुमोल मोमिन, असम सरकार के मंत्री और विधानसभा के सदस्यगण उपस्थित थे।