बीड़ी कामगार यूनीयन के अध्यक्ष अजीत जैन के अनुसार तम्बाकू उत्पादों में से एक है बीड़ी जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में करोंडों श्रमिकों को रोज़गार देती है। इन श्रमिकों में तेंदू-पत्ता संग्राहक भी शामिल हैं जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं।
हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह जी चौहान ने तेंदू-पत्ता संग्रहण की नीति में सुधार कर इस उद्योग को आदिवासियों के लिए और लाभदायक बनाने की घोषणा भी की थी।
यदि बीड़ी ही नहीं बचेगी तो तेंदू-पत्ते का क्या उपयोग रह जायेगा ? ऐसी स्थिति में बिना पर्याप्त श्रमिक-प्रतिनिधित्व के स्वास्थ विभाग की यह समिति के निर्णय या सुझाव एक-तरफ़ा ही कहलायेंगे क्योंकि इनमें उद्योग से जुड़े सभी हितधारकों को अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं मिल रहा।
तम्बाकू पर केंद्रीय स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) का विशेष ध्यान है। वे इसे नशे की अपेक्षा विष समझने लगे हैं। यध्यपि कई विश्व स्तरीय शोध-संस्थाओं ने यह प्रमाणित कर प्रकाशित किया है की तम्बाकू-पीने वालों के फेफड़ों पर कोरोना कम घातक होता है ?
कोरोना की दूसरी लहर के चलते भी कोरोना-नियंत्रण की अपेक्षा कोटपा एवं अन्य तम्बाकू-विरोधी गतिविधियों पर केंद्रीय-स्वास्थ मंत्रालय और WHO को ज़्यादा ध्यान देना उचित लगा। ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्रीय और राज्य सरकारों के सभी विभागों ने केवल तम्बाकू-उत्पादों को नशे का एकलौत ज़रिया समझ रखा है।
11 अक्टूबर 2021 को मध्य प्रदेश शासन के वाणिज्यिक कर विभाग के उपसचिव के आबकारी आयुक्य के पत्र का विषय था “मदिरा की खपत में वृद्धि हेतु विडीयो कोनफेरेंसिंग के माध्यम से बैठक।”
कई आलीशान क्रूज़ जहाज़ों पर कई प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले भी बहुत हो गए हैं। आज कई नामी सितारे पान-मसाले के विज्ञापनों में दिखाई देते हैं। लेकिन सरकारों और विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) को नहीं लगता की ये नशे हैं या इनसे कोई स्वास्थ-सम्बन्धी या सामाजिक हानि होती है। उनके लिए तम्बाकू ही सबसे बड़ी समस्या है।
मध्य प्रदेश बीड़ी उद्योग संघ से अनिरुद्ध पिंपलापूरे के अनुसार बीड़ी एक प्राकृतिक, श्रम-आधारित, असंगठित, ग्रामीण-कुटीर उद्योग है जिसका कार्बन-उत्सर्जन और कार्बन-पद्चिंन बहुत कम है और इसके उत्पाद प्राकृतिक वस्तुओं से बनते हैं और फेंके जाने पर प्रकृति में विलीन हो जाते हैं। यह सिगरेट या अन्य तम्बाकू उत्पादों और उद्योगों से बहुत भिन्न है।
उनके अनुसार तम्बाकू-उत्पाद की कर सम्बन्धी समिति को बीड़ी पर कर बढ़ाने की अपेक्षा कर को वर्तमान दरों पर रखते हुए कर की चोरी रोकना ज़्यादा ज़रूरी है। बीड़ी जंगलों में चोरी के पत्ते और सस्ती या चुराई हुई तम्बाकू से बिना बिजली या पानी के आसानी से निर्मित हो जाती है और ऐसे कर-चोर और नक्काल इस बीड़ी को नगद में बेचकर चैन से अपना धंदा करते हैं।
ये हर प्रकार के कर बचा ले जाते हैं और वर्तमान स्थिति यह है कि कर अदा करने वाले नियमबद्ध निर्माता बाज़ार में इन कर-चोरों और नक्कालों से मुक़ाबला नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसी स्थिति में जी.एस.टी. या सेस या इक्साइज़ की दर बढ़ाने पर कर चोरों को अधिक लाभ मिलेगा और कर चुकाने वाले निर्माताओं को अपना धंदा बंद करना पड़ेगा जिससे टोटल कर कलेक्शन बढ़ने की जगह घट जाएगा। अतः सरकारों को बीड़ी या सम्बंधित वस्तुओं पर कर की दरें बढ़ाने की अपेक्षा अपंजीकृत निर्माताओं को पंजीकृत कर इनसे कर भरवाने पर अधिक ज़ोर देना चाहिए। लेकिन आज ऐसे छोटे उद्योगपतियों की बात कौन सुनता है?!
प्रधानमंत्री ने की स्वदेशी उधोगो की बात
आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने २२ ऑक्टोबर, २०२१ को देश को १०० करोड़ वैक्सीन डोसेज़ लगाने के उपलक्ष पर बधाई देते हुए “वोकल फ़ोर लोकल”, “मेड इन इंडिया” और छोटे दुकानदारों और स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन की बात की थी। पर फिर भी ऐसा क्यों लग रहा है की भारत के मध्य प्रदेश में जन्मा लगभग २५० साल पुराना यह बीड़ी उद्योग अब अपनी आख़री कश ले रहा है!
पिछले 50 सालों से मजदूरो के हितों की लड़ाई लड़ रहे नेता अजित कुमार जैन कहते है कि केंद्र ने जो कमेटी बनाई है उसकी कभी मांग ही नही हुई। सिर्फ टेक्स बढाकर खजाना भरना है।
देश मे करोड़ो लोग इस कारोबार से जुड़े है। इनके हितों को नजर अंदाज करके एक तरफा कमेटी बनाई गई है। जिसमे मजदूर संघ , बीड़ी निर्माता और संग्रहक तबके से कोई शामिल नही है।
अजित जैन के अनुसार पिछले 50 सालों से तम्बाकू के खिलाफ एक लॉबी काम कर रही है। देश मे गांजा, अफीम शराब को छूट मिल रही है। वही खेती के बाद सबसे ज्यादा लोगो को आत्मनिर्भर बनाने वाला बीड़ी का धंधा बन्द होने की कगार पर है।
कोरोना काल के बाद इसे राहत देने की बजाय टेक्स का शिकंजा बढ़ रहा है। बीड़ी के खिलाफ सशक्त लॉबी काम कर रही है। ये कमेटी बीड़ी के हितों को नजर अंदाज करके बनाई जा रही है।