आपदा में खुली आपदा प्रबंधन की पोल

पिछले दो साल से आपदा पूर्व तैयारियों को लेकर कोई बैठक ही नहीं हुई

  • लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की जिम्मेदारी  भी आपदा प्रबंधन की 
देहरादून । उत्तराखंड में मूसलाधार बारिश और भूस्खलन होना आम बात है। लेकिन  पिछले तीन दिनों में  हुई 52 मौतें आपदा प्रबंधन के तैयारियों की कलई खोलने के लिए काफी है। ये 52 मौतें बीते 17 अक्टूबर से 19 अक्टूबर तक की ही हैं।
20 अक्टूबर को भी शव मिलें हैं लेकिन आपदा प्रबंधन अब तक इनकी पुष्टि नहीं कर पा रहा है।  दरअसल आपदा प्रबंधन यह समझता है कि उसकी ड्यूटी अलर्ट जारी करने तक ही सीमित है।
इसके आगे आपदा प्रबंधन कभी भी बढऩे की कोशिश ही नहीं करता है। अलर्ट भी मौसम विभाग से मिली सूचनाओं के आधार ही आपदा प्रबंधन करता है। लेकिन वह अपनी मूल ड्यूटी ही भूल गया है।
हर साल बरसात शुरू के होने के  तीन महीने पहले ही आपदा प्रबंधन  की बैठक होने की परंपरा रही है लेकिन पिछले दो साल से आपदा पूर्व तैयारियों को लेकर कोई बैठक ही नहीं हुई है।
जनपदों में आपदा प्रबंधन के दफ्तरों में  कर्मचारियों की काफी किल्लत है। तीन साल पहले ही आदेश दिए गए थे कि आवश्यकता के मुताबिक रिक्त पदों को तत्काल प्रभाव से भर लिए जाएं।
साथ ही जर्जर गाडिय़ों की जगह नयी गाडिय़ों के अलावा सर्च लाइट,रस्से तथा अन्य उपकरण भी खरीद लिए जाएं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस दिशा में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है।
मजे की बात यह है कि तीन डाप्लर रडारों में  से बड़ी मुशिक्ल से एक डाप्लर रडार  ही स्थापित हो गया है। जबकि इसकी प्रक्रिया पिछले 18 सालों से चल रही है। वेदर स्टेशन 100 से ज्यादा लगने बाकी हैं।
अब सारा का सारा दोष अधिकारी कोरोना पर मढ़ कर अपना पिंड छूड़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
इसके अलावा आपदा प्रबंधन की  सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी  अन्य विभागों जैसे ऊर्जा,पेय जल और पीडब्लयूडी जैसे विभागों के साथ आपदा के दौरान सामांजस्य स्थापित  करना है। लेकिन विडम्बना यह है कि आपदा प्रबंधन विभाग अलर्ट जारी करके महत्वपूर्ण विभागों के साथ  सामांजस्य स्थापित करना ही इस बार भूल गया है।
आपदा प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो यदि अलर्ट जारी किया गया है  तो संबंधित जनपदों में जहां  तेज बारिश की संभावना है वहां के लोगों को कहीं सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की जरूरत भी आपदा प्रबंधन की ही है।
सच्चाई यह है कि यदि संवेदनशील लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया होता तो मौतों की संख्या ज्यादा नहीं बढ़ती।
लेकिन आपदा प्रबंधन कुंभकर्णी नींद में सोता रहा। आपदा प्रबंधन सचिवालय स्थित कंट्रोल रूम से अपने विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक करने में ही  मशगूल रहा।
केवल इतना ही नहीं आपदा प्रबंधन जनपदों से आने वाली सूचनाओं को मीडिया में काट छांट कर  भेजने में जुटा रहा।
मुख्यमंत्री तथा आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास मंत्री में तालमेल का अभाव दिखा। यह बात इस बार ही नहीं दिखी बल्कि इसके पहले भी आई आपदा में उजागर हो चुकी  है। इस पूरे प्रकरण को लेकर विभागीय सचिव  और विभागीय मंत्री से बात करने की कोशिश भी की गई लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।

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