पिथौरागढ़ । नई सदी की नई हिंदी, विकास के नए आयाम लेकर आई
है। आज हिंदी की वह स्थिति नहीं जो आज से एक सदी पहले थी।
पिछली सदी हिंदी के संघर्ष की सदी थी पर आज नहीं। आज हिंदी
संवैधानिक से ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु सामाजिक और व्यावसायिक दृष्टि से भी इसकी आवश्यकता है।
भाषा का स्वरूप ऐतिहासिक होता है सनातन नहीं। क्योंकि भाषा तो समय की गति के साथ परिवर्तनशील होने वाली है वह तो समय के साथ विकसित होती है। अगर समय का असर न होता तो हमारे भारत वर्ष में एक ही भाषा होती और वह होती देववाणी संस्कृत भाषा। संस्कृत आज भी हमारी आधार है। भाषा हमारी भावनाओं की वाहिका है। कोई भी किसी भी क्षेत्र का हो पर भाषा हमें एकता के सूत्र में बांधने वाली एक मात्र कड़ी है। हिंदी भाषा में वह सभी गुण हैं जो एक राष्ट्रभाषा में होने चाहिए। अनेक अनेक प्रयासों के बाद इसे राजभाषा का दर्जा मिला है।
हिंदी में न जाने कितनी बोलियां हैं जो केवल हिंदी के नाम से जानी जाती हैं। भाषा के विषय में कहा है कि- विषय विषय को पानी बदले। कोस कोस की वाणी।आज गूगल ने भी इसकी ताकत को समझ लिया है तभी उसने हिंदी को एक सशक्त भाषा के रूप में स्थापित किया है। आज हिंदी ने मंच तो पा लिया पर वह आज भी अपने हिंदुस्तान के हृदय में स्थान न पा सकी।
समझ मे आये चाहे नही आये पर आज भी जब अंग्रेजी में भाषण दिए जाते हैं तो उन्हें बड़े गर्व से देखा जाता है और हिंदी में बात करने में भी हम भारतीय हेय महसूस करते हैं। हिंदी आज विश्व में प्रथम स्थान बोली जाने वाली भाषा बनने को अग्रसर है पर फिर भी तकनीकी क्षेत्र में हमे प्रयास करने होंगे। आज भारत को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए पर हिंदी के विषय मे ठोस कदम नहीं उठाया गया। जो भी सफलता उसे मिली है वह अपने बल पर मिली है।
हिंदी ने अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक बाजार में भी अपनी जड़ें जमा चुकी है। बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत में निवेश करने के लिए आ रही हैं। अपने व्यवसाय को चलाने के लिए इन्हें हिंदी सीखनी पड़ रही है। इसलिए भी हिंदी सीखने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। शायद यही कारण है कि हिंदी बोलने की संख्या सबसे अधिक हो चुकी है। 2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन बोलने वालों की संख्या अधिक थी। 2015 में दुनिया के सभी 206 देशों में करीब एक अरब, 300 करोड़ लोग हिंदी बोल रहे हैं।
भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनाड, टोबैगो, आदि बहुप्रयुक्त देश हैं। मालदीव, श्रीलंका, म्यामांर, इंडोनेशिया, थाईलैंड, जापान, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, यमन, युगांडा, यमन में हिंदी बोली जाती है। फिजी एक ऐसा देश है जहां हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है। जिसका उद्देश्य हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है। आज आवश्यकता है कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें। हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं करेंगे तो उसे खोने में समय नहीं लगेगा। हिंदी हमारी भाषा ही नही बल्कि वह तो हमारी सामाजिक, सांस्थिक, आर्थिक और साहित्यिक अभिव्यक्ति को व्यक्त करने वाली एक सशक्त माध्यम है। हिंदी हमारी आत्मा है और आत्मा के बिना शरीर कहां।
डा. वसुन्धरा उपाध्याय, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग एलएसएम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़, उत्तराखंड।
जैय हिंदी , हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है