गांधी जी ने खेड़ा मुगल गांव में जगाई थी आजादी की अलख 

रुडक़ी। झबरेड़ा से मात्र आठ किलोमीटर दूर स्थित खेडामुगल गांव ने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। गांव की चौपाल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जनसभा को संबोधित आजादी की अलख जलाने का काम किया था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल भी गांधी जी के साथ गांव में आए थे।मुगलकालीन संस्कृति को संजोए खेड़ा मुगल गांव के लोगों ने देश की आजादी में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
1942 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में गांव के लोगों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। ग्रामीण सेठपाल चौधरी, तेलूराम, विजयपाल और खजान सिंह ने बताया कि असहयोग आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल गांव पहुंचे थे। गांव के बीचों-बीच स्थित ब्रिटिश कालीन चौपाल पर जनसभा को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी जी ने क्षेत्र के लोगों से आंदोलन को सफल बनाने का आह्वान किया था। इस दौरान उन्होंने देश के जंगे आजादी में अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों के लिए शोकसभा भी आयोजित की थी। जनसभा में लंढोरा रियासत और कोटा रियासत के राजा भी शामिल हुए थे। जिस चौपाल पर गांधी जी ने भाषण दिया था वह आज भी गांव में मौजूद है। उक्त चौपाल का निर्माण कोटा रियासत की रानी कमला कुवंर ने कराया था।

सरकडी गांव में गुजारी थी रात

असहयोग आंदोलन के दौरान गांव खेड़ा मुगल पहुंचे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने निकट के ही गांव सरकड़ी में रात्रि विश्राम किया था। उनके साथ चाचा नहेरू और सरदार पटेल भी गांव में ही रुके थे। इसके बाद वह दंगहेडा, संदल सिंह का बहेडा समेत कई गांवों में पहुंचे थे।

गांधी के चबूतरे से युवा पीढ़ी बनी अंजान

देश के आजाद होने से पहले से 1970 के दशक तक न्याय की गद्दी के नाम से प्रसिद्ध गांधी चबूतरा अब समाज की उपेक्षा का अन्याय झेल रहा है। तमाम जटिल समस्याओं के चुटकियों में हल होने की साक्षी रही न्याय की इस पीठ को यह नाम आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिया था। सुनहरे इतिहास की यह धरोहर मौजूदा दौर में रख रखाव के अभाव में नई पीढ़ी के लिए अनजान बन कर रह गया है। देश की आजादी से पहले मोहम्मदपुर जट गांव में आसपास के लोगों की आवाजाही अधिक होती थी। सामाजिक पंचायत हो या देश को आजादी दिलाने के लिए होने वाली बैठक, इन सब के लिए इस चबूतरे का निर्माण किया गया, जहां बाद में कई बड़े निर्णय हुए। इस चबूतरे पर बैठकर किए गए निर्णय ग्रामीण खुशी-खुशी स्वीकार करते थे।
आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू जब मोहम्मदपुर सिंचाई  विभाग के अतिथि गृह में रुके तो उन्हें जानकारी मिली कि दर्जन भर गांव के निर्णय न्याय की इस पीठ से होते हैं। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री बेहद खुश हुए और उन्होंने इसे गांधी चबूतरे का नाम दे दिया। 1960 के दशक तक यहां न्याय होते रहे, लेकिन बाद में लोग इस गद्दी की गरिमा को लोग भूलते चले गए। आज आलम यह है कि न्याय की गद्दी माने जाने वाला गांधी चबूतरा नई पीढ़ी के लिये बिल्कुल अंजान बन गया है।अब यहां न तो न्याय की पंचायत लगती है और न इसके रख रखाव पर ध्यान दिया जा रहा है।

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