हाल-ए-स्वास्थ्य:11 जिलों में एक भी मनोचिकित्सक तैनात नहीं

राज्य के नौ जिलों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 50 फीसद से अधिक पद खाली

  • स्टेट ऑफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड की दूसरी रिपोर्ट में हुआ खुलासा
  • पहाड़ चढ़ना नहीं चाहते डॉक्टर, सभी पर्वतीय जिलों में स्थिति बदतर
देहरादून । प्रदेश के नौ जिलों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 5 0 फीसदी से अधिक पद खाली हैं। जबकि 11 जिलों में एक भी मनोचिकित्सक नहीं है। इसका खामियाजा उन मरीजों को भुगतना पड़ रहा है जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य सेवा की दरकार है। कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर आने की आशंका जताई जा रही है, पर राज्य के चार जिलों में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ही उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि संक्रमण की तीसरी लहर किस तरह भारी साबित हो सकती है।
दून स्थित एसडीसी फाउंडेशन ने राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से आरटीआई के जवाब में मिली सूचना के आधार पर यह खुलासा किया है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता को लेकर फाउंडेशन की यह दूसरी रिपोर्ट है। पहली रिपोर्ट बीती 24 जुलाई को जारी की गई थी। ‘स्टेट ऑफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड’ नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि नौ जिलों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमीं चिंता का विषय है। यही नहीं बाल रोग विशेषज्ञ  के 60 फीसद पद की खाली हैं। सीमांत जनपद चमोली में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 62 पद स्वीकृत हैं, जिनमें सिर्फ 17 पदों पर ही तैनाती है। इसी तरह पौड़ी जिले में विशेषज्ञ चिकित्सकों के स्वीकृत 152 पदों में से मात्र 4२ पदों पर नियुक्ति की गई है। अल्मोड़ा में भी स्वीकृत 127 पदों में से केवल 49 विशेषज्ञ डॉक्टर काम कर रहे हैं। पिथौरागढ़ का भी यही हाल है। यहां पर स्वीकृत 59 पदों में से 22 पर विशेषज्ञ चिकित्सक तैनात हैं।
बात अगर मैदानी जनपदों की करें तो यहां भी सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले हरिद्वार जिले में भी स्थिति चिंताजनक है। हरिद्वार में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 105 पद स्वीकृत हैं,  पर तैनाती सिर्फ 40 की है। यूं कहा जा सकता है कि अधिक आबादी वाले इस जिले में 5 हजार से अधिक लोगों पर सिर्फ एक विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध है। देहरादून के शहरी क्षेत्र में स्थिति कुछ ठीक है। इसका कारण यह हो सकता है कि कई डॉक्टर पिछले लंबे समय से एक ही स्थान पर डटे हुए हैं और पहाड़ चढ़ना ही नहीं चाहते हैं। एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि राज्य सरकार को केंद्र के साथ आईपीएचएस ढांचे की समीक्षा व पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। कम जनसंख्या के बावजूद नैनीताल व पौड़ी में अधिक स्वीकृत पदों पर पर भी पुनर्विचार किया जा सकता है। मानव संसाधनों का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग कर उन जगहों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का बोझ अधिक है।

बाल रोग विशेषज्ञ भी नहीं

एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च हेड ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं विशेषज्ञ चिकित्सकों के तैयार विश्लेषण से यह भी साफ है कि सरकारी अस्पतालों में बाल रोग  विशेषज्ञों के मामले में राज्य की स्थिति बेहद चिंताजनक है। स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ व महिला रोग विशेषज्ञ अस्पतालों में तैनात हैं। पर्वतीय इलाकों में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होना लगातार चुनौती बनता जा रहा है। महिला डॉक्टरों की अनुपलब्धता के कारण संस्थागत प्रसव, प्रसव पूर्व देखभाल, बाल पोषण आदि मामलों में राज्य की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। वहीं कई विशेषज्ञ चिकित्सकों को प्रशासनिक कार्यों में लगाया गया है। इससे भी मरीजों को स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर लाभ नहीं मिल पा रहा है।

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