महामारी के इस भयावह दौर ने हमे बहुत कुछ दिखा -सुना और समझने को मजबूर भी किया है ? वे चेहरे भी नग्न हो गए जिन्हें हमने इस देश की सत्ता इस आस के साथ सौपीं थी कि बुरे और मुशीबत के समय ये सरकारे जनता को राहत के मरहम से सुकून देने का काम करेंगी? प्रदेश में भोलो-भाली ,निरीह जनता की मौत का ताण्डव अपनी लेखनी से समाज के मानचित्र पर जब मां सरस्वती के पुजारियों ने उकेरना शुरू किया तो हाहाकार मच गया!
मिडिया श्मशानो , कब्रिस्तानों का चौकीदार बन लाशो की गिनती करने लगा , उसमे उसके अपने भी बहुतायत से आंकड़ो में तब्दील हो रहे थे और यह सिलसिला अनवरत जारी है ! बड़ी संख्या में पत्रकारों की मौत ने इस कौम को अन्दर से हिला कर रख दिया ! पत्रकार साथी फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स होने का बाजिव हकदार है , किन्तु मीडिया संस्थानों ,यूनियनों व सरकारों ने भी इस दिशा में खास उत्साह नहीं दिखाया ? तीन चार राज्य सरकारों ने पत्रकारों को फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स माना है,जिसके तहत उनकी मौत होने पर परिजन को 50 लाख रुपए की मदद दी जाएगी,किन्तु ज्यादातर राज्य सरकारें उदासीन हैं।
छिन्दवाड़ा जिले के 6 पत्रकार साथियो को मौत देखते ही देखते निगल गई ! इस धटना से व्यथित पत्रकार साथियों ने प्रदेश के महामहिम राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौपकर बिभिन्न मांगे राखी ! पत्रकारों की सभी मांगे चाँद दिनों में प्रदेश के मुखिया ने मान भी ली ! परन्तु बडी चालाकी से पत्रकारों को फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स होने का हक तो दिया परन्तु पत्रकार की मौत होने पर परिजन को 50 लाख रुपए की मदद की जगह आर्थिक सहायता की रकम मात्र 4 लाख रुपए ही रखी है ! प्रदेश में पूर्व संचालित पत्रकार कल्याण योजना के तहत पत्रकार की मौत पर उसके परिवार को ₹ 4 लाख की आर्थिक सहायता देने की योजना पहले से ही संचालित है ! मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकारों को फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स का मात्र तमगा देकर इस योजना की आत्मा का ही नही पत्रकारों की भावनाओं का भी क़त्ल करने का काम किया है !
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकारों के लिए कोई अलग से राहत की धोषणा नही की ! बल्कि पत्रकारों की मौत का मूल्यांकन (कीमत ) 4 लाख रूपये आंका है ! जीवित पत्रकारों को सोचना होगा ? अन्य फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स की मौत पर परिजनों को 50 लाख और फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स पत्रकार की मौत पर 4 लाख ?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी घोषणा के साथ ही बड़ी चालाकी से पत्रकारों के बीच अधिमान्यता और गैर अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों के बीच खाई खोदने का काम तो किया ही साथ ही पत्रकारों का उनका वास्तविक हक मारने का काम भी किया है ! इस घोषणा से मुख्यमंत्री के मानसिक दिवालियापन का प्रदर्शन होता है कि वे किस तरह एक पढ़े लिखे बुद्धिजीवी समाज को बेवकूफ बनाने का काम कर रहे हैं ! प्रदेश भर के पत्रकार संगठनो के स्वयं भू नेता पत्रकारों के साथ हुए इस छल के मामले में चुप्पी आखिर क्यो साधे हुए है ? इसकी समीक्षा तो आने बाला वक्त करेगा!
जब देश और दुनिया से कोरोना से संक्रमण,उससे उपजी बेरोजगारी,व्यापार की परेशानी और इलाज न करा पाने की बेबसी व मौतों की खबरें आ रही है,तब कुछ मिडिया संस्थानों द्वारा अपने कर्मचारियों की चिंता और मदद करने की खबरें भी समाज में सुकून और सकारात्मकता बढ़ाती है।