खतरनाक दौर में कोरोना

संपादकीय/धर्मपाल धनखड़

देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था दूसरा झटका सहन करने की स्थिति में नहीं है। वैक्सीन की कमी को देखते हुए उसके निर्यात पर रोक लगाने और विदेशी वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत देना सराहनीय कदम है। सरकार के एक भी काम से अविश्वास की भावना नहीं पनपनी चाहिए…

देश में कोरोना की दूसरी लहर चरम पर है। रोजाना 1.60 लाख से ज्यादा नये संक्रमित मिल रहे हैं। नये संक्रमितों के मामले में भारत ब्राजील को पछाड़ कर विश्व में नंबर-वन हो गया है। कई जगहों पर हालात बेहद खराब हैं। कहीं संक्रमितों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे तो कहीं श्मशान घाट में जगह नहीं मिलने पर आसपास पगडंडियों में अंतिम संस्कार किए जाने की तस्वीरें आ रहीं हैं। मुंबई के दो अस्पतालों में आक्सीजन नहीं मिलने से 10 संक्रमितों की मौत होने का आरोप है।

कोरोना की वैक्सीन की कमी के चलते कई राज्यों में हड़कंप मचा है। लोग कोरोना की वैक्सीन लगवाना चाहते हैं, लेकिन कमी के चलते वैक्सीन की कालाबाजारी शुरू हो गयी है। प्राप्त खबरों के मुताबिक, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वैक्सीन 6 से 10 हजार रुपये तक बिक रही है। ऐसी ही स्थिति महाराष्ट्र में है। यहां दो लोगों को वैक्सीन की कालाबाजारी करने के आरोप में पकड़ा भी गया है। इसी तरह एक आदमी को इंदौर में गिरफ्तार किया है। देश के पांच बड़े राज्यों ने कोरोना वैक्सीन की सप्लाई बहाल करने की गुहार केंद्र सरकार से लगाई है। वहीं, गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल रेडमेसिवर वैक्सीन के 5 हजार टीके मुफ्त बांटने की घोषणा करके विवादों में घिर गये हैं। सवाल ये है कि जब कई प्रदेशों की सरकार वैक्सीन की कमी से जूझ रही है तो एक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष के पास वैक्सीन कहां से आयी! इतना ही नहीं, सूरत में बीजेपी कार्यकर्ताओं के वैक्सीन बांटने की भी सूचना मिली है।

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों से आम जनमानस भयभीत है। दोबारा लाॅकडाउन लगाये जाने के भय से अकेले मुंबई से रोजाना करीब एक लाख प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं। इसके लिए रेलवे को विशेष गाड़ियां चलानी पड़ रही हैं।तमाम बड़े शहरों से मजदूरों का पलायन लगातार जारी है। ये हालात तो तब हैं, जबकि लाॅकडाउन के बाद एक तिहाई से ज्यादा मजदूर काम पर लौटे ही नहीं। प्रवासी मजदूरों में ये भय अकारण नहीं है। पिछले साल अचानक लाॅकडाउन की घोषणा के बाद लाखों मजदूरों को अपने घर लौटने के दौरान भीषण यातनाओं से गुजरना पड़ा था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि हालात और ज्यादा बिगड़े तो दोबारा लाॅकडाउन करना पड़ सकता है। कई प्रदेशों में रात का कर्फ्यू लगाया गया है।

सार्वजनिक कार्यक्रमों में सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने के लिए गाइडलाइन जारी किये गये हैं। प्रधानमंत्री ने उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के साथ राज्यपालों की वर्चुअल मीटिंग करके राज्यों के हालात का जायजा लिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि देश में महामारी के खिलाफ महायुद्ध जारी है। कोरोना से निपटने के लिए तैयारियों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें बढ़-चढ़ कर दावे करती रही हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के जोर पकड़ते ही सरकारी बंदोबस्तों की पोल खुलनी शुरू हो गयी है। केंद्रीय गाइड लाइंस के अभाव में राज्य सरकारें मनमाने ढंग से लोगों पर प्रतिबंध थोप रही हैं। कोरोना को लेकर आम आदमी भ्रमित है। उसके सामने एक तरफ महामारी का खौफ है तो दूसरी तरफ काम-धंधे चौपट होने से भुखमरी का डर।

सही मायने में देखा जाये तो आम जन-मानस को सरकार पर विश्वास ही नहीं रह गया है। अधिकांश लोगों का मानना है कि सरकार कोरोना के बहाने उनके अधिकारों का हनन कर रही है। इसका कारण साफ है कि सरकार कोरोना को लेकर जो गाइडलाइन जारी करती है, उसका पालन खुद उन्हें बनाने वाले लोग ही करते दिखाई नहीं देते।

नेता कैबिनेट की छोटी-छोटी मीटिंग्स में मास्क लगा कर दूर-दूर बैठे दिखाई देते हैं। लेकिन राजनीतिक कार्यक्रमों में सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों की धज्जियां उड़ती नजर आती हैं। लाखों की हाजिरी वाली चुनावी रैलियों में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के नेता बिना मास्क, भीड़ भरे मंच पर और लोग नीचे मौजूद दिखाई देते हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री-मंत्री की रैलियों में भी ऐसा ही नजारा होता है। नेताओं को संकट के इस समय में भीड़ जुटा कर अपनी ताकत का एहसास करवाने में संयम बरतना चाहिए। साथ ही, वर्चुअल रैलियों के विकल्प पर भी विचार करना चाहिए। एक तरफ शादी तथा सामाजिक समारोह में लोगों की संख्या सीमित रखने के लिए नियम बनाये जाते हैं। वहीं, आस्था के नाम पर कुंभ जैसे महा आयोजनों में लाखों लोग जुटने दिये जाते हैं।

उत्तराखंड सरकार के मुताबिक, शाही स्नान में 35 लाख लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। खुद आरएसएस प्रमुख कुंभ से कोरोना संक्रमित होकर लौटे हैं। माना जा रहा है कि कुंभ स्नान करने वाले श्रद्धालुजन कोरोना के वाहक बन गये हैं। एक तरफ हरिद्वार में कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं तो दूसरी तरफ देहरादून में कोरोना को रोकने के लिए रात का कर्फ्यू लगाया गया है। ऐसे में लोग सरकार की बातों पर कैसे विश्वास करें!

आज के माहौल को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि सत्तारूढ़ दल समेत तमाम राजनीतिक दलों की प्राथमिकता महामारी से अपने लोगों को बचाना नहीं, बल्कि सत्ता हासिल करना है।

लगातार कहा जा रहा है कि लोग कोरोना से बेखौफ हो गये हैं। लेकिन वास्तविकता तो ये है कि सत्तारूढ़ दल महामारी से पैदा हुए विषम हालात का भी फायदा उठाने को तत्पर दिखता है। ऐसे में तमाम नेताओं को खुद कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहनने, दो गज की दूरी बनाये रखने और कोरोना गाइडलाइन का सख्ती से पालन करना चाहिए। संपूर्ण लाॅकडाउन जैसे हालात पैदा होने से रोकने के लिए तमाम प्रयास पूरी शिद्दत और ईमानदारी करने चाहिए। चूंकि, देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था दूसरा झटका सहन करने की स्थिति में नहीं है। वैक्सीन की कमी को देखते हुए उसके निर्यात पर रोक लगाने और विदेशी वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत देना सराहनीय कदम है। सरकार के एक भी काम से अविश्वास की भावना नहीं पनपनी चाहिए। जनता का विश्वास की लोकतंत्र में सत्ता का मूल मंत्र होता है। ये भी सही है कि देश की जनता को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अटूट विश्वास है।

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