बेवफा कोरोना

तीर-तुक्का /वीरेंद्र सेंगर

  • पहली बार कोई पवित्र काया, ऊंची गद्दी पर बैठी है। उस पर भी अविश्वास! भाई ये तो घोर कलियुग है। यहां जनता के अवतार पर भी सवाल-दर-सवाल, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है। कैसे बेवफा लोग हैं? वे कोरोना पर भी शक कर रहे हैं। कह रहे हैं ये वायरस नहीं है महज सियासत है। लो कल्ल लो बात!…

मैं चिल्ला कर कह रहा हूं, सोनम गुप्ता बेवफा नहीं है। यदि कोई राष्ट्रीय बेवफा है, तो वो है कोरोना। दोबारा लौट आया बेशरम। साहेब ने कितनी तपस्या से इसे भगवाया था? ताली बजवाई थी, थाली बजवाई थी। लोगों ने झूम कर घंटे भी बजाए थे। केंद्रीय मंत्री अठावले सर! ने तो मारक मंत्र का जाप भी किया था। ‘गो कोरोना गो‘ इस मंत्र को भी काफी वक्त तक ये अंगूठा दिखाता रहा। फिर साहेब ने वैश्विक हल्ला बोला, ऐलान कर दिया है कि भारत आत्मनिर्भर बनेगा। कोरोना की वैक्सीन सबसे पहले बनाएगा। पूरी दुनिया से वैक्सीन के जरिए इस बेवफा कोरोना को भगा देगा।

कमाल देखिए! आत्मनिर्भर भारत ने साहेब की महा प्रेरणा से मारक वैक्सीन तैयार की। लांच के पहले ही इसकी महा शोहरत से ही कोरोना दम तोड़ने लगा। आंकड़ों में उतार शुरू हुआ। पूरी दुनिया में डंका बजा कि इस महामारी से मोदी जी का भारत ही बचाएगा। एक झटके में ही भारत ने विश्व गुरु बनने की तरफ कदम उठा दिए। कुल 185 देशों को मदद दी। वहां न्यू इंडिया की चर्चा हो गयी। तालियां बजने लगीं। गरीब देशों पर भी साहेब की कृपा बरसी। कायदा यही था कि बाजे-गाजे के साथ उन्हें विश्व गुरु बनाने का ऐलान होता, लेकिन दुनिया तो ‘न्यू इंडिया‘ की तरह उदार नहीं है। आलोचना शुरू हुई कि कोरोना तो है ही, 125 देशों में फिर आंकड़ा 185 का कहां से आ गया?

छोटे लोग, छोटी सोच! वे विश्व गुरु की तरह ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ की बात सोच भी कैसे सकते थे? शुरू हो गयी वैक्सीन की सप्लाई। वैक्सीन नसों में पहुंचने के पहले, इसकी शोहरत से ही कहर कम होने लगा। अपने भारत का ही मामला देखें! यहां वैक्सीन लगने के पहले ही तीन चैथाई आंकड़ा दम तोड़ गया था। हालांकि, सरकार बार-बार कहती रही, दो गज की दूरी जरूरी, मास्क लगाएं, मुखौटा पहनें, कोरोना से सावधान रहे, लेकिन 70 सालों में इस कांग्रेस ने लोगों का मानस ही बेईमान कर दिया है। अनुशासनहीन बना दिया। जनाब! 70 सालों का गड्ढ़ा भरने में वक्त तो लगता है। वही लग रहा है, वर्ना कहां टिकता ये बेवफा कोरोना?

वैक्सीन और साहेब की प्रेरणा की अनदेखी करके ये टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले, कोरोना में घुस गये। कहने लगे कि ये महामारी नहीं है। सब सरकार का भौकाल है। इतनी बेशर्मी? यहीं हो सकती है। रिकार्ड कम टाइम में कारगार वैक्सीन तैयार हुई। पूरी दुनिया को महामारी से बचाने का इलाज मिला। वैश्विक डंका बजने लगे। इससे भी सेक्यूलर गैंग को तकलीफ हुई। गांव-गांव और गलियों में आरती उतारने के बजाय, वे दकियानूसी

सियासत में लगे रहे। ये भौंकते रहे। खूब भौंके, लेकिन मस्त हाथी कहां इनकी परवाह करता है? वे भूक रहे हैं, लेकिन हाथी चला जा रहा है, पीठ पर विकास को लादे।पहली बार कोई पवित्र काया, ऊंची गद्दी पर बैठी है। उस पर भी अविश्वास! भाई ये तो घोर कलियुग है। यहां जनता के अवतार पर भी सवाल-दर-सवाल, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है। कैसे बेवफा लोग हैं? वे कोरोना पर भी शक कर रहे हैं। कह रहे हैं ये वायरस नहीं है महज सियासत है। लो कल्ल लो बात!

भारत इतना बड़ा लोकतंत्र है। यहां कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। सच्चे लोकतंत्र की पक्की निशानी है कि देश हमेशा चुनावी मूड में रहे। वही हो रहा है। इस पर खुश होने के बजाय सेक्यूलर गैंग स्यापा कर रहा है। कह रहा है कि प्रधान सेवक जी, हर छोटे चुनाव में भी क्यों लगे रहते हैं? ये गरिमा की खिलाफ है।

ये क्या बात हुई? वे योद्धा हैं, हर मैदान में कूदते हैं सत्तर साला जवान है। पूरी दुनिया उनका लोहा मानती है। ये अलग बात है कि लौह पुरुष का तमगा अलग-अलग नेताओं के पास है। वे जाते हैं, आते हैं, जमकर चुनावी रैलियां करते हैं। उनकी झलक पाने के लिए लाखों-हजारों की भीड़ जुटती हैं तो वे क्या करें? विघ्न संतोषी विपक्ष और मेरे जैसे चिरकुट पत्रकार इस पर भी कुढ़ते हैं। सवाल करते हैं कि अब कोरोना का सवाल क्यों नहीं होता?

ये पगले इतना भी नहीं जानते कि कोरोना इतना भी गधा नहीं है। वो टारगेट भी समझ कर बनाता है। वो स्कूल में जाता है, अस्पताल में जाता है, सन डे और सेटर डे को ज्यादा घूमता है। रात में ज्यादा घूमता है, तो नाइट कफ्र्यू लगता है। इस पर भी सवाल, मैं तो कहता हूं ये कोरोना ही नहीं, यहां के लोग भी बेवफा है। सोनम गुप्ता से ज्यादा।

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