- मतदाताओं का रुझान 2022 के ‘ महारण’ की रणनीति में आएगा काम
हल्द्वानी : सल्ट के चुनाव नतीजे से भाजपा सरकार या प्रतिपक्ष की ताकत पर किसी
तरह का असर नहीं पडऩे वाला है। भाजपा के पास प्रचंड बहुमत है तो कांग्रेस के बास
प्रमुख विरोधी दल के लायक विधायक हैं। चूंकि यह चुनावी साल है। इस साल के अंत
तक विस चुनाव 2022 की आचार संहिता लग जाने वाली है, सो सल्ट का चुनाव नतीजा
भाजपा और कांग्रेस के लिए आने वाले महारण की तैयारी करने और जनता जर्नादन का
मिजाज जानने भर का मौका देने वाला है। इसके विपरीत सीएम तीरथ सिंह रावत की यह पहली अग्नि परीक्षा है तो कांग्रेस दिग्गज पूर्व सीएम हरीश रावत के लिए यह चुनाव उम्र के इस पड़ाव में काफी महत्वपूर्ण है।
सल्ट के चुनाव नतीजे के बाद कांग्रेस को 2022 के तारणहार को तय करना है और हरीश रावत को अपनी लोकप्रियता दिखाने का एक सुअवसर दे रहा है। इससे यह चुनाव तीरथ और हरीश रावत के इर्द गिर्द सिमट कर रह गया है।
उत्तराखंड की राजनीति में सल्ट चुनाव से पहले दो अभूतपूर्व घटना घटी हैं। शायद इस
तरह की घटना आने वाले समय में कभी घटित नहीं भी हो सकती है। पहली घटना भाजपा
ने राज्य की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत से हटाकर सांसद तीरथ सिंह रावत को सौंपी है।
दूसरी बड़ी घटना की पटकथा पूर्व सीएम हरीश रावत ने खुद ही लिख डाली है। ठीक
चुनाव प्रचार के वक्त हरीश रावत कोरोना की चपेट में आ जाते हैं। संक्रमण का स्तर
ज्यादा फैलने के बाद पूर्व सीएम को एम्स दिल्ली में भर्ती किया जाता है। वे पहले एम्स के
आईसीयू से ही जनता के नाम भावुक और मार्मिक अपील करते हैं। इसके कुछेक दिनों में
कोरोना से जंग जीतने के बाद घर में स्वास्थ्य लाभ के बजाय वे लाठी और दूसरे के कंधों
के सहारे एक दिन में तीन जनसभाएं संबोधित कर पूरे चुनाव प्रचार को रोचक और
रोमांचक बना देते हैं। इसके विपरीत स्वास्थ्य खराब होने के कारण नेता प्रतिपक्ष डा.
इंदिरा हृदयेश को उनके स्वास्थ्य ने सल्ट के रण में जाने की ताकत ही नहीं दी।
उन्हें अपने पुत्र सुमित हृदयेश को सल्ट भेजना पड़ता है। शायद आने वाले किसी भी
चुनाव में बीमारी से जूझने के वाबजूद चुनाव प्रचार में आने के लिए हरीश रावत नजीर
बन सकते हैं।
इन दोनों घटनाओं से यह साफ है कि सल्ट का चुनावी परिणाम आने वाले विस चुनाव
में कांग्रेस और भाजपा के दो नेताओं हरीश और तीरथ के भाग्य का भी फैसला कर
सकता है। इस चुनाव के बाद सीएम तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए
आने वाले पांच माह के भीतर फिर से किसी न किसी विस से चुनाव लडऩा है। यदि सल्ट
का फैसला आशनुरुप नहीं आया तो इसका तीरथ के राजनीतिक भविष्य पर भारी असर
पड़ सकता है। यही स्थिति कांग्रेस की भी है। पूर्व सीएम हरीश रावत पिछले एक साल से
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग करते रहे हैं। इस मांग के कारण
कांग्रेस के भीतर भूचाल की स्थिति है। नेता प्रतिपक्ष, पीसीसी प्रमुख रावत के इस बयान
का विरोध करते रहे हैं। यदि सल्ट में विजय मिलती है तो हरीश रावत समर्थक एक बार
फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए पार्टी हाईकमान पर दबाव बना सकते
हैं। इसके अलावा रावत का यह घर का क्षेत्र है। कभी कांग्रेस यहां अजेय मानी जाती थीं।
सुरेंद्र सिंह जीना के आने से पहले तक कांग्रेस का यह किला अभेद्य था। 2008 में विस
सीटों के नए परिसीमन के बाद यहां भाजपा की स्थिति काफी मजबूत बनती रही है। यहां
कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा का पलड़ा भारी होता रहा है।
भाजपा ने किया है काबीना मंत्री यशपाल पर भरोसा
सल्ट में करीब चौदह फीसदी एसटी वोटर हैं। इस वोट पर अभी तक कांग्रेस का कब्जा
रहा है। 2017 में यशपाल के भाजपा में जाने के बाद भाजपा ने करीब चार से पांच फीसदी
एसटी वोटरों पर सैंध लगायी है। लोस चुनाव में यह आकड़ा पचास फीसदी तक पार हुआ
है। भाजपा रणनीतिकारों को विश्वास है कि काबीना मंत्री यशपाल आर्य एसटी वोटरों को
गोलबंद करने में सफल होंगे। अगर यह रणनीति काम कर गई तो कांग्रेस को उसकी ही
मांद में उसी के अंदाज में परास्त किया जा सकता है। मतदान के बाद इस बात का
खुलासा चुनाव परिणाम कर देगा।
कांग्रेस ने सौंपी है पूर्व विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को कमान
सल्ट विस में करीब 57 फीसदी ठाकुर वोटर हैं। यह वोटर भाजपा और कांग्रेस में बंटा
हुआ है। इस बंटवारे का कम करने के लिए कांग्रेस रणनीतिकारों ने पूर्व विस अध्यक्ष
गोविंद सिंह कुंजवाल को बागडौर सौंपी है। यह इलाका दन्या विस सीट की सीमाओं का
भी जोड़ता है। कुंजवाल परिवार की नाते रिश्तेदारी भी इसी इलाके में ज्यादा है। कांग्रेस
को भरोसा है कि भाजपा की ओर जा चुका वोटर को वापस लाया जाए और ब्राह्मण
वोटरों को गंगा पंचौली खुद ही खींच लेगी। अब शनिवार को ईवीएम का बटन दबने के
साथ ही कांग्रेस की इस रणनीति की वास्तविकता का पता चलेगा।