लॉकडाउन, कोरोना और अर्थव्यवस्था

  • रोजगार के अवसर लाॅकडाउन खुलने के बाद बढ़े हैं, लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है। ऐसे में जरूरत है कुशलता के साथ आर्थिक गतिविधियां जारी रखने और उन्हें आगे बढ़ाने की। लोगों को भी अपने स्तर पर सावधानी बरतनी होगी…

धर्मपाल धनखड़

देश पिछले एक साल से कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। इस जंग की शुरुआत पिछले साल 24 मार्च को आधी रात से पूरे देश में लॉकडाउन लागू करने से हुई थी। बिना किसी तैयारी के अचानक लॉकडाउन की घोषणा से देश में खलबली मच गई। लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा यातनाएं प्रवासी मजदूरों को सहनी पड़ी। उन्हें बेहद बुरे हालात में अपने घरों को लौटना पड़ा। हालांकि, स्थानीय लोगों ने प्रवासी मजदूरों के खाने-पीने की व्यवस्था भी की थी। सरकार ने लॉकडाउन के दौरान गरीबों को सस्ता और मुफ्त राशन भी उपलब्ध करवाने के प्रयास किये। फैक्टरियां, व्यापारिक प्रतिष्ठान और आवागमन के साधन बंद हो जाने से करोड़ों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा।लॉकडाउन के बाद की पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था में 24 फीसद की गिरावट दर्ज की गयी। कृषि को छोड़कर हर क्षेत्र में गिरावट देखी गयी। सरकार ने लॉकडाउन खुलने के बाद गरीबों को सस्ता राशन देने के साथ ही बड़े पैमाने पर मनरेगा के तहत रोजगार भी उपलब्ध करवाये, लेकिन ये नाकाफी था। ठप पड़ी औद्योगिक गतिविधियों और अर्थव्यवस्था को गति देने के मकसद से केंद्र सरकार ने आर्थिक पैकेज भी जारी किया। शुरू में आर्थिक पैकेज के कुछ सकारात्मक परिणाम भी दिखे। लेकिन देश की औद्योगिक वृद्धि दर और महंगाई दर के आंकड़े चिंताजनक हैं। पूंजीगत और उपभोक्ता वस्तुओं, दोनों में ही नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है। महंगाई लगातार बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इसके चलते हर चीज महंगी हो रही है।लॉकडाउन और कोरोना का सबसे तगड़ा झटका गरीब तबके को लगा है।अमेरिका संस्था प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना काल में दुनिया के सभी देशों की आर्थिक वृद्धि दर घटी है और राष्ट्रीय आय भी घटी है। विश्व में करीब 15 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गये। इनमें से आधे यानी करीब साढ़े सात करोड़ गरीब भारत में बढ़े हैं। ये आंकड़ा चौकाने वाला है। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के मुताबिक, साल 2020 में हमारे देश की राष्ट्रीय आय में दस फीसदी की कमी आयी है। इसके कारण देश के साढ़े सात करोड़ मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग एक झटके में गरीबी रेखा के नीचे आ गये। महामारी के इस दौर में जहां गरीबों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 फीसद तक की गिरावट के अनुमान के बावजूद धनकुबेरों की दौलत खूब बढ़ी है।हारून इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल श में अरबपतियों की सूची में 40 नये लोग शामिल हुए हैं। जानकारी के मुताबिक, देश में कुल 177 अरबपति हैं। इनमें सबसे ज्यादा अमीर मुकेश अंबानी हैं जो विश्व के आठवें सबसे अमीर आदमी हैं। विभिन्न आर्थिक रिपोर्टों के मुताबिक, गौतम अडानी की संपत्ति में पिछले कुछ समय में सबसे तेज वृद्धि हुई है। मोटे तौर पर देखा जाए तो साल 2020 में देश की पिछले बस साल की आर्थिक वृद्धि दर के फायदे खत्म हो गये।कोरोना से जंग अभी खत्म नहीं हुई है। फरवरी 2021 में देश में कोरोना संक्रमण के मामले विश्व स्तर पर न्यूनतम थे। लेकिन मार्च में ही अचानक संक्रमितों की संख्या बढ़ गयी। आज देश में रोजाना करीब 40 हजार नये कोरोना संक्रमण के मामले पाये जा रहे हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु में संक्रमण तेजी से फैल रहा है और हालात एक बार फिर खराब हो रहे हैं। पंजाब में यूके से आये नये वायरस स्ट्रेन संक्रमण के मामले भी सामने आये हैं। ये बेहद चिंताजनक है।तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो भारत में ना केवल कोरोना से कारगर ढंग से निपटा गया, बल्कि रिकार्ड समय में कोरोना की वैक्सीन की भी खोज की। आज हम कई देशों को वैक्सीन की सप्लाई देकर इससे निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। ऐसे में छह राज्यों में जिस तेजी के साथ दोबारा कोरोना की लहर आयी है उसे रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। इसके लिए मास्क के प्रयोग और अन्य सावधानियां बरतने के साथ वैक्सीनेशन की मुहिम को भी तेज करना होगा। केंद्र सरकार ने अब 45 साल की उम्र के लोगों को भी वैक्सीन देने के आदेश दिये हैं। हालांकि पिछले साल के अनुभवों के आधार पर आज हम कोरोना से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम हैं। कोरोना की नयी लहर को रोकना इसलिए भी जरूरी है कि देश एक और लॉकडाउन झेलने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है।देश में इस समय कोरोना के 771 वेरिएंट मिल चुके हैं और ये 18 प्रदेशों में फैल चुका है। सरकार को इस समय दो मोर्चों पर मजबूती से लड़ना होगा। कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए आवश्यक उपाय करने होंगे। केंद्र ने राज्य सरकारों को सतर्कता बरतने और त्योहारों को सामूहिक रूप से मनाने पर स्थानीय स्तर पर रोक लगाने की सलाह दी है। सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ धर्मस्थलों पर जुटने वाली भीड़ को भी रोकना होगा। कई प्रदेशों ने एहतिहात के तौर पर कदम उठाए भी हैं।कई राज्यों ने बाहर से आने वालों के लोगों के लिएकोविड-19 की निगेटिव जांच रिपोर्ट दिखाना अनिवार्य कर दिया है। वहीं, सरकार को आर्थिक गतिविधियों को जारी रखने के लिए बेहतर प्रबंधन करना होगा। लाॅकडाउन के बाद कई बड़े सेक्टरों में पाजिटिव ग्रोथ की उम्मीद है। सरकार के हिसाब से जीडीपी को 16 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है, जबकि आर्थिक विशेषज्ञों का 60 हजार करोड़ रुपए नुकसान का अनुमान है। रोजगार के अवसर लाॅकडाउन खुलने के बाद बढ़े हैं, लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है। ऐसे में जरूरत है कुशलता के साथ आर्थिक गतिविधियां जारी रखने और उन्हें आगे बढ़ाने की। लोगों को भी अपने स्तर पर सावधानी बरतनी होगी।

 

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