- वैदिक संस्कृति के ग्रंथों में जल राशि के पर्याय के रूप में कुंभ वर्णित
- पवित्र नदी के स्नान का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में किया गया है उल्लेख
डॉ. रवि शरण दीक्षित, देहरादून
भारतीय संस्कृति अपनी गौरवशाली सनातन परंपरा का एक सुनहरा इतिहास समेटे हुए हैं। जिसमें भौगोलिक विविधता, सामाजिक विविधता और पर्यावरणीय विविधता के बाद भी समरसता के भाव कायम है। भारतीय संस्कृति के पर्याय में वैदिक संस्कृति के ग्रंथों में जल राशि के पर्याय के रूप में कुंभ को देखा जाता है। खगोलीय गणना के विशिष्ट योगों जिसमें मकर संक्रांति पर यह दुर्लभ संयोग वेदों में वर्णित है, साथ ही पूर्ण पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन जैसी अद्भुत घटना और अमृत का उदय जैसे संदर्भों ने इसके महत्व को और अद्भुत बना दिया है।
भारतीय मूल्यों ने कुंभ के प्रभाव को मनुष्य की जीवन शैली में संयोग कर एक महत्वपूर्ण अंग बनाया और इस कड़ी में ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अनुष्ठान पवित्र नदी के स्नान का भी वर्णन प्राचीन समय से मिलता है। 600 ईसा पूर्व बौद्ध ग्रंथों में भी इसका वर्णन मिलता है, साथ ही यूनानी दूतों ने जो मगध शासकों के काल में लगभग 400 ईसा पूर्व भी इस तरह के सामाजिक संसर्ग की चर्चा करते हैं। 600 ईस्वी में चीनी यात्री भी अपने लेखों में वर्णन करते हैं, और इसके सामाजिक प्रभाव को भी लिखते हैं। 1820 का कुंभ हरिद्वार में जिसमें कुछ अप्रिय घटना भी हुई, परंतु फिर भी अपनी महत्ता के लिए जाना जाता है। आधुनिक समय में आते आते आंकड़ों की दृष्टि से हरिद्वार कुंभ की महत्ता और बढ़ जाती है। जब 1998 के कुंभ में लगभग 5 करोड़ लोगों के स्नान का भी संदर्भ मिलता है। कुंभ जो अपनी महत्ता को प्राचीन समय से ही भारतीय मूल्यों के साथ सजे हुए हैं, वह एक विस्तृत राष्ट्रीय एकता को भी परिभाषित करता है जिसमें कुंभ के अवसर पर देश के विभिन्न जाति धर्म के लोग इसमें भागीदारी करते हैं, और वह भागीदारी उनके जीवन मूल्य तथा सामाजिक मूल्यों को मजबूत भी करती है।