नाजुक मोड़ पर किसान आंदोलन!

अनुशासनहीन ट्रैक्टर रैली ने ऐतिहासिक आंदोलन में लगाया दाग
जिस गिरोह ने निशान साहिब का झंडा लहराया, वो भी हुए बेनकाब

 स्पेशल स्टोरी

 वीरेंद्र सेंगर

नई दिल्ली: आखिर वही हो गया जिसकी आशंका की जा रही थी। अनुशासनहीन ट्रैक्टर रैली ने दो महीने से चल रहे ऐतिहासिक आंदोलन में दाग लगा दिया। इस अभूतपूर्व आंदोलन में सौ से ज्यादा किसान अपनी कुर्बानी दे चुके हैं। एक युवा किसान की मौत 26 जनवरी को बेलगाम ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई। इस दौरान कुछ अराजक तत्वों ने लाल किले में शर्मनाक कृत्य किये। ये सर्वथा निंदनीय है। वहां पर तिरंगा के पास में निशान साहिब का झंडा लहरा दिया गया। ये घोर आपराधिक कृत्य है। जिस उन्मादी गिरोह ने ये कांड किये उनके चेहरे छिपे नहीं रहे। इस कांड के प्रमुख दीप संधू और लक्खा सिधाना कुकृत्य करते देखे गये हैं। दीप ने मौके से फेसबुक लाइव करने का भी दुस्साहस किया था। ये चेहरे भाजपा के ह्अपने रहे हैं। सरकार के बड़ों के साथ इनके फोटो भी वायरल हुए हैं।

पूरी रैली के दौरान कई जगह दिखा अराजकता का तांडव

इस सच्चाई से किसान नेता मुंह नहीं मोड़ सकते। अच्छी बात है कि आंदोलन के प्रमुख नेताओं ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर ली है। किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा, हम गड़बड़ी की नैतिक जिम्मेदारी लेते हं। लाल किले के कुकृत्य की निंदा करते हैं, लेकिन लापरवाही दिल्ली पुलिस की भी रही है। रैली बड़ी नियोजित साजिश का शिकार हुई। इससे आंदोलन को क्षति हुई है। हम आगे सतर्क रहेंगे।
किसान यूनियन के चर्चित नेता राकेश टिकैत का आरोप है, अब सरकार का दलाल मीडिया छिटपुट हिंसा के नाम पर पूरे आंदोलन को बदनाम कर रहा है। वह जानबूझ कर उस शख्स की चर्चा नहीं कर रहा है, जो लाल किला कांड का प्रमुख सरगना है। उसके खिलाफ जिंदा सबूत हैं, चूंकि वो भाजपा और प्रधानमंत्री का घोर समर्थक निकला। उसकी तस्वीरें हैं। ऐसे में मीडिया सच्चाई बताने से डर रहा है। हिंसा के नाम पर आंदोलन खत्म करने और दमन करने की तैयारी है, लेकिन इससे आंदोलन खत्म नहीं होगा। सरकार को ये हथकंडे महंगे पड़ेंगे। मैं चेतावनी देता हूं। शाहजहांपुर बार्डर पर जमे योगेंद्र यादव को भी आशंका है कि सरकार अब हिंसा के नाम पर निर्दोष किसानों पर दमन चक्र चलाएगी। 27 जनवरी को दोपहर तक दो सौ से ज्यादा किसानों को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। पुलिस ने एक दिन में ही दो दर्जन से ज्यादा आपराधिक मामले विभिन्न धाराओं में दर्ज कर लिए थे। आशंका है कि इन मामलों की आंच प्रमुख किसान नेताओं तक पहुंचने वाली है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस को कड़े कदम उठाने के खुले निर्देश दे दिए हैं। 26 जनवरी की शाम से ही भक्त मीडिया चिल्लाकर बताता आया है। और फिर इसके परिणाम भी कुछ घंटों में ही दिखने लगे थे।
दरअसल, अब अहम सवाल यह खड़ा हो गया है कि देशव्यापी हो चले किसान आंदोलन का भविष्य क्या रहेगा? आंदोलनकारी 40 से ज्यादा संगठनों का संयुक्त किसान मोर्चा भी इसी को लेकर चिंतित है। 27 जनवरी से लगातार मोर्चे के नेता इस मामले में विचार मंथन करते आए हैं। उनके सामने बड़ी अग्निपरीक्षा की घड़ी है। वे चर्चा करते रहे कि इस बड़े झटके के बाद कैसे फिर से आंदोलन को पटरी पर लाएं?
इस आंदोलन के एक वरिष्ठ नेता हैं दर्शन पाल अनौपचारिक चर्चा के दौरान वे बोले, जब मुकाबला इतनी मजबूत और निष्ठुर सरकारी तंत्र से है, तो आंदोलन को तोड़ने की साजिशें होनी तय है। दुर्भाग्य से सरकार के साथ प्रमुख मीडिया भी गोदी बन गया है। इसके चलते छिटपुट हिंसा को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया। टीवी एंकर आंदोलनकारियों को आतंकी बता रहे हैं। जबकि 99 प्रतिशत आंदोलनकारी शांतिपूर्ण नजरिए के रहे। लाल किला कांड में उन्हें सरकारी तंत्र की साजिश लगती है।वे कहते हैं, दीप संधू और लक्खा सिधाना के साथ करीब तीन सौ लोग थे। उनके उपद्रवी और आपराधिक चरित हम जानते थे। ये भी कि ये भाजपा के एजेंट हं। ऐसे में ये किसान संयुक्त मोर्चा की समन्वय समिति का हिस्सा नहीं थे। सिंघू बार्डर पर इनका डेरा भी अलग था। हैरानी की बात ये है कि ये वहां पुलिस बैरीकेड्स की दूसरी तरफ थे। यानी दिल्ली की सीमा में थे। सवाल तो ये है कि कैसे इन्हें पुलिस ने दिल्ली की तरफ ठहरने दिया? जबकि बाकि आंदोलनकारी सिंघू बार्डर में हरियाणा की सीमा में बैठे थे। इससे हमें इनकी आंदोलन निष्ठा पर शुरू से शक था। बीच-बीच में दीप संधू हमारी बैठकों में आया तो हमने उसे हटाया था। ये लगातार भड़काऊ नारे लगाता था। इसने 25 जनवरी को एक वीडियो जारी किया था। किसानों से कहा गया था कि उनके साथ के लोग रिंग रोड से लाल किले तक जाएंगे। ये बात पुलिस को भी पता थी। फिर भी उसके खिलाफ समय रहते कार्रवाई नहीं हुई। इसमें भी सरकारी तंत्र की कोई मिलीभगत हो सकती है। उस गुट के साथ करीब बीस ट्रैक्टर भी थे। इन्होंने ह्यसुपारीह्य लेकर आंदोलन को बदनाम किया है। 24 घंटें के अंदर हमने ये तथ्य और पुख्ता कर लिए हैं। हमारे इरादे पक्के और नेक हैं।
इस रैली में कुल कितने ट्रैक्टर भाग लेने आए थे? इनका सही-सही आकलन करना मुश्किल है। सूत्रों के अनुसार, 25 जनवरी से रात में दिल्ली पुलिस ने टिकरी, सिंघू और गाजीपुर बार्डर में एक-एक लाख ट्रैक्टरों का अनुमान लगाया था। इस आशय की एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी थी। जाहिर है कि पुलिस के अनुसार वास्तविकता के करीब मानें तो लाखों प्रदर्शनकारी थे। ऐसे में इन्हें संभालना बड़ी चुनौती थी। ऐसे में केवल किसान नेताओं के भरोसे बैठना कहां कि अकलमंदी थी? तय रूटों को लेकर भी 26 जनवरी की सुबह तक स्थिति एकदम साफ नहीं थी। तय रूटों पर भी पुलिस के बैरीकेड लगे रहे। आंदोलनकारी किसान समय से पहले भी चल पड़े, इससे टकराव की स्थिति बढ़ती गयी। आंदोलन चैतरफा था, जो कि नेतृत्व के नियत्रंण से बाहर होता गया, सच्चाई यही है।इस बीच गोदी मीडिया ने छिटपुट हिंसा को भी बढ़ा-चढ़ाकर बताना शुरू किया। अंदाज ये रहा कि मानो आंदोलनकारियों ने दिल्ली में हमला बोल दिया हो। इससे अफवाहें भी बढ़ीं। इसमें कुछ भूमिका सोशल मीडिया की भी रही। तमाम ऐसे किसान थे जो भीड़ में दिल्ली के अंदर घुस तो गये थे, लेकिन उन्हें वापसी का रास्ता पता नहीं था। इससे भी घंटों अफरा-तफरी रही। कई जगह आंदोलनकारी भी आक्रमक देखे गये, लेकिन ज्यादातर अपना बचाव करते ही दिखे।
पुलिस के मुताबिक, करीब सौ पुलिस वालों को चोटें आयी हैं। यह दुखद है। यह पक्का तथ्य है, सैकड़ों किसान भी घायल हुए हैं। वे शिकार भी बने हैं। ये भी उतना ही दुखद है। पुलिस ने जांच शुरू की है। तमाम तथ्य सामने आ सकते हैं। बशर्ते जांच निस्पक्ष हो? जांच भी विश्वास के दायरे में रहने वाली है।पीड़ादायक पक्ष ये रहा कि कई गंभीर घायल किसान गाजीपुर धरनास्थल पर 26 जनवरी को रात में पहुंचे थे। लेकिन कानूनी फंदे के डर से वे लापता होते गये। धरना स्थल पर 27 जनवरी को डर का साया दिखा। तमाम आंदोलनकारियों को आशंका थी कि हिंसा के नाम पर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। ऐसे में आंदोलन दबाया जा सकता है। ये आशंका नेताओं के चेहरे पर भी दिखी।
राकेश टिकैत खासे दुखी नजर आए। उन्हें भी उकसाने वाले कथित भाषणों के लिए मीडिया गिद्धों की तरह हरकतें करता नजर आया। कई सवालों की बौछार थी कि आपकी रैली में ह्यझंडा-डंडाह्य लाने की बात कही थी। ये हिंसा को उकसाने वाली बात थी। टिकैत सफाई देते रहे कि वे गंवई भाषा बोलते हैं। डंडे का मतलब, झंडे के डंडों से था। इसमें भड़काऊ क्या था? फिर रह-रहकर वही सवाल। टिकैत चिढ़ रहे थे। मीडिया की तोपची बालाएं उन्हें और उकसाती रहीं। अंतत: टिकैत बोले, अगर वे दोषी साबित हो तो सरकार उन्हें फांसी पर चढ़ा दें लेकिन ये आंदोलन चलेगा जब तक सरकार तीनों कानून वापस नहीं लेती।टिकैत मीडिया के सामने आंदोलन और तेज करने का दम भरते तो नजर आए, लेकिन ऑफ रिकार्ड में उन्होंने माना कि सरकार ने दमन चक्र में आंदोलन को फिलहाल फंसा दिया है। अब इंतजार है कि सरकार किन-किन नेताओं पर हाथ डालती है? किसान यूनियन में टिकैत के एक सिपाहसालार चैधरी सुखबीर सबसे गुस्से में नजर आए। वे प्रमुख भक्त टीवी चैनलों का नाम लेकर भड़ास निकालते रहे। उन्होंने सवालों की बौछार कर दी। कहा, यदि किसान उग्रवादी होते तो हजारों कारें जल जातीं, बसें जल जातीं , कई लोग मारे गये होते, ऐसा कुछ नहीं हुआ। नेता लगातार शांति की अपील करते रहे। स्थिति नियंत्रण से बाहर हुई तो आयोजकों के साथ पुलिस की लापरवाही भी रही। हमारे किसान नेताओं ने माफी मांग ली और क्या चाहती है सरकार? यदि हिंसा के नाम पर आंदोलन को दबाया गया तो भाजपा के खिलाफ गांव-गांव तक गुस्से की चिंगारी जाएगी। इससे पहले किसानों के साथ दमन चक्र का नापाक खेल न खेला जाए। यदि हमारे नेता टिकैत को जेल भेजा गया तो ये काम सरकार का बहुत घाटे का सौदा होगा, हम चेता रहे हैं।
किसान मोर्चे की समन्वय समिति में 27 जनवरी को अगली रणनीति पर घंटों विचार मंथन चला। पहले एक फरवरी को संसद तक पैदल मार्च की योजना थी। अब ट्रैक्टर रैली के फंदे के बाद क्या? इसको लेकर फैसला होना है। नेतृत्व दिल्ली पुलिस की व्यापक कार्रवाई का इंतजार कर रही है। फिलहाल तय है कि दिल्ली के सभी मोर्चों पर पहले की तरह आंदोलन चलाया जाए, लेकिन अब चुनौतियां तो बहुत हैं।

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