कांग्रेस के खिलाफ भाजपाका “मास्टरप्लान”

  • 2023 तक प्रदेश से कमलनाथ और कांग्रेस का सफाया करने की तैयारी
  • विधायकों का दो दिवसीय प्रशिक्षण 13 फरवरी से शिविर पचमढ़ी में

 राकेश प्रजापति 

Last assembly elections in Madhya Pradesh मध्यप्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में मिली हार की कसक भाजपा को अब भी खटक रही है। हार से सबक लेते हुए प्रदेश भाजपा अभी से आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है और ऐसी रणनीति बना रही है, जिससे कि 2023 तक प्रदेश से कमलनाथ और कांग्रेस का समूल सफाया किया जा सके? भाजपाई सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ऐसी रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए विधायकों का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर पचमढ़ी में आगामी 13 और 14 फरवरी को आयोजित कर रही है। यही नहीं, पार्टी में इसके लिए कई तरह के नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं। सबसे पहले कमलनाथ को उनके जिले से ही उखाड़ फेंकने की रणनीति के तहत उनके करीबियों को किसी भी कीमत पर तोड़ना? इसकी बानगी पिछले दिनों सौंसर के कांग्रेस विधायक विजय चैरे के बड़े भाई अजय चैरे को ज्योतिरादित्य सिंधिया के माध्यम से भाजपा में शामिल किया गया!
जानकार बताते हैं कि जिले के 3 से 4 विधायक आने वाले समय में भाजपा में शामिल होने को बेताब हैं और कभी भी भाजपा में शामिल हो सकते है, परन्तु उन्हें अभी रोका गया है ताकि ठीक वक्त में इनसे कांग्रेसी बगावती झंडा बुलंद किया जा सके और कमलनाथ और उनकी पार्टी को संभलने का मौका न मिल सके? भाजपा ने कमलनाथ को छिंदवाड़ा से उखाड़ फेंकने के लिए फ्री हेंड ज्योतिरादित्य सिंधिया को दे दिया है। इसी रणनीति के तहत ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने हनुमान गोविन्द सिंग राजपूत के हाथ से गणतंत्र दिवस के अवसर पर छिंदवाड़ा में ध्वजारोहण करवाया ताकि उनकी सक्रियता बनी रहे और कांग्रेस के अंदरखाने में सेंध लगाई जा सके?

आदिवासी वोट बैंक पर भी भाजपा की नजर

सूत्र के मुताबिक, शीघ्र ज्योतिरादित्य सिंधिया संगठन और सत्ता पर दबाव बना कर छिंदवाड़ा में सौंसर के कांग्रेस विधायक विजय चैरे के बड़े भाई अजय चैरे को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से दे सकते हैं, ताकि कांग्रेसी विधायक के भाई को भाई से अधिक पावरफुल बनाकर कांग्रेसी खेमे में भगदड़ मचाई जा सके और पावर गेम के चलते रेत माफिया को पुनस्र्थापित कर कमलनाथ के पूंजी महल को पूंजी के माध्यम से आसानी से ढहाया जा सके। दूसरी तरफ, आदिवासी वोट बैंक पर भी भाजपा की नजर है। आदिवासी अंचलों के विधायकों को भी फंसने के काम पर पार्टी प्राथमिकता से तवज्जो दे रही है। खासकर, अमरवाड़ा, जुन्नारदेव और अजय चैरे के माध्यम से पांडुर्ना में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को साधा जा सके? वहीं, कमलनाथ के किले में अनेकों विभीषण पल रहे हैं जो कांग्रेस पार्टी की अर्थी उठाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं! कमलनाथ के वर्षों की मेहनत को पलीता तो कमलनाथ के (नौकर) निजी स्टाफ लगा ही रहे हैं? लगातार पुराने कांग्रेसियों और स्थानीय मीडिया का अपमान कांग्रेस के शव को जलाने का माध्यम तो होगा ही और फोकट में भाजपाई इसकी आंच तापेंगे?

भाजपा की राह और आसान हो गई है?

भाजपा सोशल मीडिया के महत्व को देखते हुए उसके लिए रणनीति के साथ पार्टी ने दो से तीन अनुभवी नेताओं और स्थानीय पत्रकारों को शामिल कर संपादन मंडल बनाने का निर्णय लिया है। इसके अलावा अब संगठन पूरी तरह से सत्ता और संगठन को मजबूत और बेहतर तालमेल बनाने पर जोर दे रही है। इसके साथ ही, अब भाजपा बीते आम चुनाव में मिली हार के कारणों में सामने आए अनुसूचित जाति, जनजाति वोट बैंक पर अपनी कमजोर होती पकड़ को और मजबूती देने पर भी काम करने का फैसला कर चुकी है। भाजपा को बीते चुनाव में जयस की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के लिए भी योजना तैयार की जा रही है। जिसमे गोंगपा को नरम चारे की तरह उपयोग कर विजय श्री प्राप्त की जा सके? इस योजना पर अमल भी होने लगा है! दादा हीरासिंग मरकाम के देवलोक गमन के साथ ही गोंगपा में राजनीतिक समझ के आकाल से गुजर रही गोंगपा में मौका परस्त नेता ही बचे हैं जो आदिवासियों के जज्बातों को चंद चांदी के सिक्कों के सामने सुध खो बैठते हैं। ऐसे में भाजपा की राह और आसान हो गई है? इसकी बानगी पिछले लोकसभा और विधानसभा गोंगपा प्रत्याशियों ने कांग्रेस के समर्थन में पार्टी से बगावत कर चुनावों से हट गये थे?
खैर, नगरीय निकाय चुनाव फिलहाल भाजपा के लिए पहला पड़ाव होगा लेकिन उसका लक्ष्य आगामी विधानसभा चुनाव ही माना जा रहा है। प्रदेश पर पार्टी अलाकमान की भी खास नजर है, इसकी वजह से केन्द्र द्वारा अपने आधा दर्जन पदाधिकारियों को भी अब तक तैनात किया जा चुका है। दरअसल, इस पूरी कवायद के पीछे एक बड़ी वजह विपक्ष की भूमिका निभाने वाले भाजपा के टिकट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों के निर्वाचित विधायक भले ही अब भाजपाई हो चुके हैं, लेकिन उनके मूल भाजपाई नेताओं के साथ समन्वय की समझ जरूरी है। भाजपा संगठन इस बार किसी भी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। इसके लिए अभी से कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक को पार्टी द्वारा तैयार की गई रणनीति के लिए भी मानसिक रूप से तैयार किया जा रहा है। पार्टी यह प्रयोग निकाय चुनाव में करने जा रही है, जिसके परिणामों के आधार पर ही विधानसभा चुनाव में लागू किया जाएगा।
मध्यप्रदेश में पीढ़ी परिवर्तन के दौर में बदलती भाजपा का बड़ा लक्ष्य मिशन 2023 की ओर पार्टी आगे बढ़ रही है। विधानसभा चुनाव हालांकि दूर है लेकिन 15 महीने के सियासी आकाल के बाद सत्ता में वापसी करने वाली भाजपा ने संगठन को मजबूत और परिणाममूलक बनाने के लिए खाद-पानी देने की कवायद जारी है। इससे यह तो तय है कि इस बार भाजपा मध्यप्रदेश में पहले ही विधानसभा के आगामी चुनाव को लेकर जाना चाहती है।

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