नयी दिल्ली: Consideration of setting up of agricultural schools for training of farmers सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें उत्पादक से उद्मी के रुप में परिवर्तित करने और इसके लिए उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के लिए ग्रामीण कृषि स्कूलों की स्थपना पर विचार कर रही है। संसद में कल पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि किसानों को उत्पादक से उद्मी के रूप में परिवर्तित करने के लिए उन्हें आधारभूत शिक्षा और प्रशिक्षण देना जरुरी है। इस संदर्भ में व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के लिए ग्रामीण कृषि स्कूलों की स्थापना के विकल्प पर विचार किया जा सकता है। समीक्षा में कहा गया है कि पशु पालन डेयरी और मत्स्य पालन धीरे-धीरे रोजगार के महत्वपूर्ण स्रोत बनते जा रहे हैं। इन क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय करने तथा उत्पाद की मार्केटिंग के पर्याप्त प्रावधान किये जाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह से कृषि पर आधारित है और इसके विकास के बिना देश के समेकित विकास के सपने को साकार नहीं किया जा सकता है। देश की लगभग आधी आबादी कृषि और इससे जुड़े कार्यों में शामिल है। कृषि क्षेत्र के विकास का सबसे अधिक दूरगामी असर निम्न आय वर्ग के लोगों पर होता है। समीक्षा में कहा गया है कि हम कृषि को ग्रामीण आजीविका के जिस दृष्टिकोण से देखते हैं, उसमें आमूल-चूल परिवर्तन कर कृषि को एक आधुनिक व्यवसायिक उद्यम के रुप में देखने की जरूरत है। इस संदर्भ में कृषि में उत्पादन और उसके बाद की स्थिति पर ध्यान देना जरुरी है। सिंचित क्षेत्र में वृद्धि, संकर और उच्च पैदावार वाली बीजों का उपयोग, फसलों के बीजों को बदलने का अनुपात और बीजों की जांच सुविधा की कमी का असर उत्पादन पर होता है। सरकार उप्तादन के बाद गांव स्तर पर फसलों की खरीद केन्द्र, उत्पादन और प्रसंस्करण के बीच जुड़ाव, ग्रामीण आजारों का विकास, फसलों की बिक्री का बेहतर विकल्प, माल ढुलाई की व्यवस्था आदि उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। इससे उत्पादन बाद फसलों की हानि को रोका जा सकेगा। एक अनुमान के अनुसर फसलों की कटाई के बाद विभिन्न कारणों से अनाज और दालों चार से छह प्रतिशत, सब्जियों में सात से बारह प्रतिशत तथा फलों में छह से 18 प्रतिशत का नुकसान होता है।