विजयवाडा: आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में एक ऐसा गांव है जिसमें अधिकांश परिवारों के लोग सेना में हैं। मिलेट्री गांव के नाम से मशहूर बावाजीपालेम गांव को पेयजल की सुविधा नहीं होने के बावजूद वहां की महिलाओं ने अपनी देशभक्ति का परिचय दिया है । गुंटूर जिले के रेपल्ले के निकट निजामपटनम के बगल में पेड़ों के बीच बसा बावाजीपालेम गांव में करीब पांच सौ परिवार रहते हैं और सभी मुस्लिम हैं। पिछले 9 दशक से बावाजीपालेम के अधिकांश लोग सेना में काम कर रहे हैं यहां के हर परिवार में औसतन दो लोग सेना में हैं।गांव की एक महिला मेहरुन्नीसा की यह बात सही लगती है कि उनके गांव में प्रवेश करने के दौरान देशभक्ति से भरी हवा लोगों का स्वागत करती है। सेना में सूबेदार मेजर रहकर रिटायर हो चुके शेख सिलार उस महिला के पति हैं। वे पांच भाई हैं और सभी सेना में काम कर चुके हैं,जबकि उनमें से एक सूबेदार मोहम्मद याकूब युद्ध में शहीद भी हुए हैं।मेहरुन्नीसा ने बताया कि उसके देवर याकूब को बेटे नहीं है और तीन बेटियां हैं और उन तीनों की शादी सेना में काम करने वालों के साथ ही हुई है। मेरा बेटा अब्दुल हफीज सेना में 16 साल तक काम कर चुका है। सेना में भर्ती होने का सिलसिला दूसरे विश्वयुद्ध का हिस्सा रह चुके हमारे ससुुर शेख मस्तान से चली आ रही है। पूरी दुनिया में जब युद्ध का माहौल बना हुआ था तब सरकार ने लोगों से सेना में भर्ती होने का आह्वान किया था। देखते ही देखते अपने बच्चों को सेना में भेजने के लिए किसी भी माता-पिता का मन हिचकिचाता है। परंतु तभी बावाजीपालेम की साहसी महिलाओं ने अपने बच्चों के माथों पर तिलक लगाकर उन्हें सेना में भेजा और तभी से यह परंपरा यहां चली आ रही है।नौ सेना, वायुसेना और थलसेना में सिपाही से लेकर विभिन्न पदों पर बावाजीपालेम के युवकों ने अपने साहस का परिचय दिया है। तीनों सेनाओं में इस गांव का नाम काफी मशहूर है। दूसरे विश्वयुद्ध, भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान के युद्ध में भाग लेने वाली भारतीय सेनाओं में इस गांव के युवक शामिल रहे। खून जमने वाली ठंड में और हाथों की उंगलियां सिकुड़े वाली बर्फिले इलाकों में हाथों में हथियार लिए दुश्मन सेना को देश की सीमा में घुसने से रोकने के लिए डटे रहते हैं।गांव की एक और महिला शेख खुर्शिद बीबी ने बताया कि बावाजीपालेम गांव से प्रेरित आस-पास के भट्टीप्रोलु, पल्लेकोन, कैतेपल्ली, कट्टवा, मट्लापूड़ी, मिलेट्री कॉलोनी, दर्वेसुपालेम, कोमरवालु गांवों के युवक बड़ी संख्या में सेना में भर्ती हुए। दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल योद्धाओं की संख्या निजामपट्टणम में ही 200 से ज्यादा है।