- त्रिवेंद्र सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति सेकार्यों में तेजी आई
- गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला रहा ऐतिहासिक
रामप्रताप मिश्र ‘साकेती’
जनहित में उठाए गए कदम सरकार की लोकप्रियता के माध्यम बनते हैं।उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने अपने आने के बाद जो महत्वपूर्ण जनहित के काम किए हैं वह वर्षों तक इतिहास का विषय रहेंगे।प्रदेश सरकार ने जीरो टॉलरेंस नीति का जो अनुसरण प्रारंभ किया उससे विकास कार्यों को गति मिलीहै।प्रदेश सरकार लगातार जनहित के कामों को गति देती रही है।केवल 2020 के ही प्रमुख निर्णयों की चर्चा की जाए तो वह इस बात का संकेत देतेहैं कि उत्तराखंड की सरकार ने किस तेजी से जनहित में प्रभावकारी निर्णय लियेहैं।शिक्षा क्षेत्र में बदलाव की जो पहल प्रदेश सरकार ने प्रारंभ की है उसमें मुख्यमंत्री का निर्देश प्रमुखहैं।प्रत्येक विकास खंड में दो.दो अटल उत्कृष्टविद्यालयों के माध्यम से शिक्षा को नई गति देने का कार्य प्रारंभ हुआ है।पहाड़ की राजधानी पहाड़ में होनी चाहिए इसमंत्र को कांग्रेस उत्तराखंड क्रांतिदल तथा अन्य राजनीतिकदलों ने महज नारा बनाकर छोड़ दिया था लेकिन त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर अपनी मान्यता स्पष्टकर दी थी कि केवल भाजपा ही पर्वतीय क्षेत्र की हितैषी है।इतना ही नहीं राजधानी गैरसैंण के क्षेत्रों के ढांचागत विकास के लिए अगले दसवर्षों में 25 हजार करोड़ रूपये खर्च किये जानेका निर्णय लेकर राजधानी गैरसैंण को ढांचागत विकास देने की पहल की है जिसका लाभ आने वाले दिनों में दिखा ईदेगा।गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के साथ.साथ सचिवालय भवन का शिलान्यास किया गया जो इस बातका संकेत है कि जहां गैरसैंण के नाम पर राजनीति कर रहे थें वहीं वर्त मान सरकार गैरसैंण को अवस्थापना सुविधा से सुदृढ़कर क्षेत्र का वास्तविक स्वरूप निखार रही है जो एक राजधानी के लिए आवश्यक है।नौनवंबर 2000 को 27वें राज्य के रूप में बने उत्तराखंड की राजधानी का मामला वर्षों से गर्म मुद्दा रहाहै।पिछली सरकार ने राजधानी के नाम पर काफी सियासत कीए लेकिन 20 साल तक इस मुद्दे को राजनीतिक दलों ने फुटबाल बनारखा था।गैरसैंणस त्रमेंग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा से विपक्षी दलों पर घड़ों पानी पड़गया और एक मुद्दा उन के हाथ से चला गया।
उत्तराखंड के विश्वप्रसिद्ध चार धाम देश ही नहीं सभी हिन्दू मतावलंबियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहे हैं।वैसे भी उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा का क्षेत्र रहा है जहां ढांचागत व्यवस्थाओं का अभाव रहा है।चारधाम की व्यवस्थाएं कैसे चाकचौबंद हों यह सभी सरकारों के लिए चिंता और चिंतन का विषय रहा है लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने इन चार धामों की व्यवस्थाओं को और सुदृढ़ करने के लिए चारधाम देवस्था नम बोर्ड का गठन कर बद्रीकेदार, गंगोत्री, यमुनोत्री तथा इन से जुड़े अन्य धार्मिक स्थलों के विकास के लिए एक नया आयाम गढ़ाहै।यह बात जरूर है कि हक.हकूकधारी अपनी व्यवस्थाओं के लिए इस व्यवस्था का प्रत्यक्षरूप से विरोध कर रहे हैं लेकि नदेवस्थानमबोर्ड की व्यवस्थाओं और सुविधाओं के माध्यम चारधाम में ढांचागत विकास होगा तथा व्यवस्थाएं और सुदृढ़ होगी जिसका लाभ अंततोगत्वाहक.हकूकधारियों को ही मिलनाहै।इस दूरगामी व्यवस्था का परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक होगा।लाखों की संख्या में श्रद्धालु, पर्यटक आएंगे जिन के आने का लाभ उत्तराखंड को तो होगा ही चारधामों से जुड़े हर वर्ग के लोग इन पर्यटकों के आने से लाभा न्वित होंगे।प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में अन्य क्षेत्रों की तुलना में किसानों के लिए विशेष प्रयास कियाहै।जहां प्रदेश सरकार किसानों को तीन लाख तथा महिला सहायता समूहको पांच लाख तक का ऋण बिना ब्याज दे रहीहै, वहीं किसानों के लिए विशेष प्रयास किया गया है।जहां केन्द्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री किसान निधि के अंतर्गत 9 करोड़ किसान परिवारों को 18 हजार करोड़ की राशि उन के खातों में स्थानान्तरित कर रही है,वहीं उत्तराखंड के किसानों को इस का भर पूर लाभ मिला है।प्रदेश सरकार ने व्यवस्था की है कि शहद उत्पादन तथा उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए पांच सौ करोड़ की राशि का प्राव धान किया है।इस राशि से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।इसी तरह किसानों के समग्र विकास के लिए सरकार निरंतर प्रयास कर रही है।गन्ना किसानों को शत प्रतिशत भुगतान करा दिया है।इसमें सरकारी चीनी मिलें व सहकारी चीनी मिलें दोनों शामिल है।निजी चीनी मिलों को भी गन्ना किसानों के शत प्रतिशत भुगतान के लिए प्रेरित किया गयाहै।इस के पीछे प्रदेश सरकार विशेष कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का किसान प्रेम ही है।
बेरोजगारी तथा स्वरोजगार प्रारंभ से ही हर सरकार के लिए विशेष संवेदनशील मुद्दा रहा है।प्रदेश में वनों की भारी संख्या है।उत्तराखंड के कुल क्षेत्रफल 53 हजार 483 वर्ग किलोमीटर में से 38 हजारवर्ग किलो मीटर केवल वन्य क्षेत्र है।अब तक इन वन क्षेत्रों की व्यवस्था के लिए वन विभाग के पास मानव संसाधन की कमीथी।त्रिवेंद्र सरकार ने 10 हजार वनरक्षकों की भर्ती का निर्णय लेकर युवाओं को रोजगार देने के लिए एक प्रभाव कारी माध्यम अपना या है, जिसके माध्यम से 10 हजार परिवार और दस हजार युवा लाभान्वित होंगे। 2020 कई मायनों में प्रभावकारी निर्णयों वाला वर्ष रहा है।इस वर्ष के प्रमुख निर्णयों को यदि शब्दों में बांधा जाए तो काफी लंबी श्रृंखला बनेगी लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जन भावनाओं का सम्मान करते हुए स्वरोजगार योजना के माध्यम से प्रदेश के युवाओं को स्वावलंबी बनाने की जो महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है उसका लाभ पूरे प्रदेश को मिलेगा।
उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश है।यहां की नदियां लगातार पूरे देश को अभिसीं चित करती है।इन नदियों में गंगा की सहायक नदियां भगीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी तो हैं ही, पिंडारी, टौंस, यमुना, काली, नयार, भिलंगना, सरयू, रामगंगा जैसी नीदियां प्रदेश के साथ.साथ अन्य क्षेत्रों की भीप्या सबुझाती है।टिहरी बांध परियोजना के माध्यम से ऊर्जा का अक्षय स्रोत उत्तराखंड मेंहै, लेकिन इसके साथ ही साथ प्रदेश सरकार विशेष मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का जोर है कि सूरजकी अक्षयऊर्जा के माध्यम से सौर ऊर्जा को स्वरोजगार का माध्यम बनाया जाए।इस के तहत सोलर फार्मिंग से ले कर स्वरोजगार का ढांचा बनाया गया है इस से हजारों परिवारों को लाभान्वित होने का अवसर मिला है।कोरोना काल में हजारों प्रवासी वापस लौटेए जिन्हें स्वरोजगार उपलब्ध कराने के साथ.साथ सोलर ऊर्जा के माध्यम से भी लाभ पहुंचाया जारहा है।प्रदेश में सौर ऊर्जानीति के तहत अबतक 272 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं स्थापित की जा चुकी है। 203 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं 253 स्थायीनिवासियों को आवंटित की गई है जिनका कार्य प्रगति परहै।