सियासी वादों का क्या!

  • चार साल बाद भी न वादे हुए पूरे, न इरादों में खनक
  • खंडूड़ी का लोकायुक्त, नौकरियों की बहार, सब नदारद

 मौहम्मद शाह नजर 

देहरादून: उर्दू के विख्यात शायर डॉ. नवाज देवबंदी के मशहूर शेर ‘मंजिल पे न पहुंचे, उसे रस्ता नहीं कहते, दो-चार कदम चलने को चलना नहीं कहते, एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना, एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते’। उक्त पंक्तियां इन दिनों कई मामलों में उत्तराखण्ड की सियासत पर चरितार्थ हो रही हैं। राज्य की भाजपा सरकार के कार्यकाल को चार साल का अरसा पूरा होने जा रहा है। इन चार वर्षों में चुनावी वादों-इरादों की झलक आंशिक ही देखने को मिली है। 70 विधायकों वाली विधानसभा में 57 विधायकों के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज होने वाली भाजपा सरकार से जनता को काफी उम्मीदें थीं।

भाजपा ने 2017 के अपने ‘विजन डाक्यूमेंट’ में लोकलुभावन वायदे किए थे। भाजपा ने अपने विजन डाक्यूमेंट 2017 में कहा था कि यदि उत्तराखण्ड में उनकी सरकार आती है तो, ‘रिक्त पड़े सरकारी पदों पर 6 माह में भर्तियां हो जाएंगीं। भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सौ दिन में खंडूड़ी का लोकायुक्त एक्ट लागू किया जाएगा। साल 2019 तक हर गांव में सड़क होगी। मेधावी छात्रों को लैपटॉप और स्मार्टफोन दिए जाएंगे। सेवारत अतिथि, संविदा शिक्षकों और कर्मचारियों को भी उचित वेतन और पेंशन की व्यवस्था की जाएगी। 24 घंटे बिजली-पानी की सप्लाई होगी। विवि को फ्री वाई-फाई की सुविधा से जोड़ा जाएगा। गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही रीजन में अस्पताल और हेल्थ सेंटर खोले जाएंगे। किसानों को आर्गेनिक खेती के लिए खास तौर पर लोन दिए जाएंगे। स्वास्थ्य के तहत सचल चिकित्सा सेवा, टेली मेडिसिन, नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना, बीपीएल के लिए स्वास्थ्य कल्याण कार्ड, ट्रॉमा सेंटर स्थापित करने, पर्यटन और तीर्थाटन के तहत भाजपा ने वीरचंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना का दायरा बढ़ाने, स्थानीय कौशल आधारित हस्तशिल्प, होम स्टे, मेडिकल टूरिज्म, लोक कलाकारों को प्रोत्साहन, पर्यटन गाइड प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करने का वादा किया था’। सरकार का सबसे बड़ा वादा था युवाओं को रोजगार देने का, जिसके लिये ‘विजन डाक्यूमेंट’ में कहा गया था कि खाली पड़े सरकारी पदों पर 6 माह में भर्तियां शुरू कर दी जाएंगीं। सरकार ने वर्ष 2020 को रोजगार वर्ष के रूप में भी मनाने का ऐलान किया, लेकिन रोजगार के रास्ते नहीं खुल पाए।

वर्ष 2016 के बाद से अब तक पीसीएस की परीक्षा कराने का साहस लोक सेवा आयोग और सरकार नहीं कर पाई है। सरकार नौकरी देने के नाम पर अब स्वरोजगार अपनाने पर जोर दे रही है। भाजपा का एक और वादा था, ‘भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सौ दिन में खंडूड़ी का लोकायुक्त एक्ट लागू किया जाएगा’। भाजपा सत्ता में आई, लोकायुक्त बिल सदन में पेश भी किया, लेकिन सियासी शतरंज ऐसी बिछाई के विपक्ष और आम जनमानस चारों खाने चित हो गया।

उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम वर्ष 2011 में पारित किया गया था, इसे राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई थी। सत्ता बदली तो नई सरकार ने इसमें संशोधन किया, जिसमें 180 दिन में लोकायुक्त के गठन के प्रावधान को खत्म कर दिया गया।  इसे भाजपा सरकार ने संशोधन कर एक बार फिर से सदन में पेश किया, विपक्ष की सहमति के बावजूद इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया। विपक्ष लोकायुक्त की मांग करता भी है तो, सरकार की ओर से कहा जाता रहा है कि अब यह बिल विधानसभा की सम्पत्ति है। वैसे सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत कई बार कह चुके हैं कि प्रदेश में अब लोकायुक्त की जरूरत नहीं है, हम भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चला रहे हैं? सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का दावा अपनी जगह, लेकिन उन पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट तक ने मामला दर्ज कर जांच के आदेश दिये हैं। छात्रवृत्ति घोटाला, एनएच-74 घोटाला और कर्मकार कल्याण बोर्ड घोटाले पर भी सरकार की सुस्ती जग जाहिर है।

साल 2019 तक हर गांव में सड़क पहुंचाने का वादा किया गया था।  सरकार महज पीएमजीएसवाई और ऑल वेदर रोड के सहारे अपनी पीठ थपथपा रही है। गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही रीजन में अस्पताल-मेडिकल कॉलेज और हेल्थ सेंटर खोलने का वादा भी अभी परवान नहीं चढ़ पाया है। स्वास्थ्य सुधार का आलम यह है कि खुद मुख्यमंत्री को कोरोना के इलाज के लिए दिल्ली जाना पड़ा।

भाजपा ने घोषणापत्र में गैरसैंण को राजधानी बनाने का जिक्र किया था, इस वादे पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आगे बढ़कर पहल की है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान किया गया है। भाजपा ने राज्य के 57 फीसद से ज्यादा युवा मतदातों को लुभाने के लिए युवा नीति तैयार करने, निशुल्क कोचिंग, उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति, ब्याज रहित शिक्षा ऋण, निशुल्क यात्रा, रिक्त पदों पर पदोन्नति और तैनाती, जल क्रीड़ा और शीतकालीन खेलों, खिलाड़ियों को सुविधाएं, स्वरोजगार और रोजगार के नए अवसर, आधुनिक कौशल विकास केंद्रों की स्थापना करने की घोषणा की थी, लेकिन इन सभी वादों पर सरकार एक दो कदम ही चल पाई है।

भाजपा के विजन डाक्यूमेंट में मदरसों को आधुनिक बनाने, वक्फ बोर्ड को मजबूत करने पर फोकस किया गया था, इन दोनों ही संस्थाओं को अपाहिज बना दिया गया है। न तो मदरसा बोर्ड में बोर्ड का गठन किया गया है और न ही मदरसा शिक्षा परिषद की डिग्रियों को विद्यालय शिक्षा परिषद के समकक्ष माना गया है। भाजपा के विजन डाक्यूमेंट के वादों पर गौर किया जाए तो, अब तक यह वादे चुनावी वादे ही नजर आते हैं। सियासी जुमलों से बाहर निकल कर जमीनी काम करने के लिए अब भी सरकार के पास एक साल का समय है।

 

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