- असम में विधानसभा चुनाव से पूर्व इस चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा
- हिमंत और मोहिलारी आमने-सामने, पुराने सहयोगी बीपीएफ से किया किनारा
इन दिनों बोडोलैंड टेरीटोरियल रीजन (बीटीआर) चुनाव को लेकर प्रचार अभियान तेज है। बीटीआर चुनाव प्रचार अभियान के तहत मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों की ओर से बाइक रैली, परिवर्तन पदयात्रा और सामूहिक जनसभाओं का आयोजन किया जा रहा है। इसमें राज्य के वित्त एवं स्वास्थ्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा और बीटीसी के पूर्व प्रमुख हग्रामा मोहिलारी आमने-सामने हैं। राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व बीटीआर चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा है, परंतु इस चुनाव से ऐसा लगता है कि यह चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत आलोचना के आधार पर लड़ा जा रहा है। यदि पिछले पंद्रह दिनों के अभियान को देंखे तो पूरे अभियान में डॉ हिमंत विश्वशर्मा हग्रामा को लेकर अनाप-शनाप बक रहे हैं तो हग्रामा भी हिमंत को राजनीतिक रूप से कथित जलील करने का कोई अवसर गंवाना नहीं चाहते हैं।
इस अभियान को देखते हुए जानकारों का मानना है कि अगले विधानसभा चुनाव से भी ज्वलंत मुद्दे और भ्रष्टाचार के मुद्दे गायब रहेंगे, विकास के मुद्दे दूर-दूर तक नहीं दिखेंगे और भावनात्मक मुद्दे हावी रहेंगे। कारण कि जिस तरह से राज्य की नियुक्तियों में घोटाले जारी हैं, वह निहायत चिंता का विषय है। ऐसे में राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भ्रष्टाचार, प्रदूषण, असमिया अस्मिता, विभिन्न मदों में जारी सिंडिकेट और कोयले की कालाबाजारी के मुद्दे पर राज्य सरकार को घेर सकती है, परंतु राज्य के शिक्षा एवं स्वास्थ्यमंत्री इस चुनावी अभियान को सांप्रदायिकता के आधार पर लड़ने की तैयारी में हैं। भाजपा अगले चुनाव के लिए लव जिहाद जैसे अनावश्यक मुद्दों पर फोकस करना चाहती है। कारण कि पार्टी ने 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव और 2016 के विधानसभा चुनाव में जितने वादे किए थे, उन पर अमल नहीं किए।
उल्लेखनीय है कि गोगोई सरकार के पतन का प्रमुख कारण कथित रूप से गृह विभाग से लेकर पान तक की खरीद-फरोख्त तक में सिंडिकेट का होना था, परंतु लग रहा कि वर्तमान राज्य सरकार विगत सरकार से सबक नहीं लेना चाहती। आज कोयला, गोरू, बालू-पत्थर, मछली, सब्जी सहित अन्य क्षेत्रों में सिंडिकेट का बाजार गर्म है। कोयला सिंडिकेट के संबंध में भाजपा के कई विधायक भी सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता की बातें अपना असर खो देती हैं। मोदी और सोनोवाल दोनों क्रमश: प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनने से पहले बड़े नदी बांध को न बनने देने, राज्य के छह समुदायों के जनजातिकरण, बड़ी संख्या में युवक-युवतियों को रोजगार देने, बांग्लादेशियों को राज्य से बाहर करने, बांग्लादेश को राज्य की मिट्टी नहीं देने, चाय मजदूरों को प्रतिदिन 351 रुपए मजदूरी देने जैसे वादे किए, परंतु इनका अब तक समाधान नहीं हुआ और कुछ फैसले वादे के विपरीत किए गए। फिलहाल, चाय उद्योग, उसके संचालक और कर्मचारी कठिन दौर से गुजर रहे हैं, परंतु केंद्र सरकार और टी बोर्ड उनकी समस्या के समाधान में विफल है।
दूसरी ओर, कहा जा रहा कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए)-2020 में बदलाव कर कुछ अधिसूचनाएं जारी की गई हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि भले ही इससे राज्य में कुछ उद्योग-धंधे लग जाएं, परंतु राज्य की वन संपदा और जैविक परिस्थितियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसका विपक्ष विरोध कर रहा है? क्या राज्य सरकार राज्यवासियों के लिए इसे चिंता का विषय नहीं मानती? यदि ऐसा नहीं है तो वह अब तक अपना विरोध केंद्र सरकार के सामने क्यों नहीं रखती? सवाल है कि क्या उपरोक्त उल्लेखित मुद्दों पर अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा या कोई भावनात्मक मुद्दे को सामने लाकर चुनावी धारा बदल दी जाएगी, क्योंकि अब तक यहीं होता आया है। इसके लिए सिर्फ भाजपा ही नहीं, बल्कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें भी ऐसा करने के लिए जिम्मेदार हैं। मालूम हो कि इस चुनाव में पहली बार भाजपा पूरे जोर-शोर के साथ लगी है। दूसरी ओर, भाजपा के इस अभियान से स्थानीय पार्टियों की नींद उड़ गई है, जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पा रही है। बताते चलें कि बीपीएफ 2016 से भाजपा नीत असम सरकार में भागीदार है परंतु भाजपा ने घोषणा की है कि वह 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीपीएफ को अपने गठबंधन में शामिल नहीं करेगी। भाजपा की घोषणा के वाबजूद बीपीएफ अब भी सरकार में बरकरार है। सरकार में भागीदार होते हुए भी बीटीआर चुनाव भाजपा और बीपीएफ अलग-अलग लड़ रहे हैं। ऐसे में बीटीआर चुनाव काफी महत्वपूर्ण बन गया है।
उल्लेखनीय है कि 40 सदस्यीय बीटीआर के लिए दो चरणों में सात दिसबंर और 10 दिसंबर को मतदान होगा तथा 12 दिसंबर को मतगणना की जाएगी। परिषद के चुनाव में कुल 72 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमाएंगे। कोविड-19 महामारी के चलते असम निर्वाचन आयोग ने 20 मार्च को बीटीसी चुनाव टाल दिया था। बीटीआर चुनाव में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ), भारतीय जनता पार्टी, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल), गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी), कांग्रेस, एआईयूडीएफ और निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्रचार अभियान तेज कर दिए हैं। -अनिरूद्ध यादव, गुवाहाटी