विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी सरगर्मियां तेज

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी सरगर्मियां तेज है। माना जा रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के ही बीच रहने वाला है। दोनों ही पार्टियां काफी आक्रमक ढंग से लोगों को साधने की कोशिश में है।

पश्चिम बंगाल : अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी सरगर्मियां तेज है। माना जा रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के ही बीच रहने वाला है। दोनों ही पार्टियां काफी आक्रमक ढंग से लोगों को साधने की कोशिश में है। इस बीच समय-समय पर दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की भी खबर आती है। ताजा मामला सिलीगुड़ी का है जहां पर बीजेपी कार्यकर्ता और पुलिस के बीच झड़प की खबरें आई है। झड़प में बीजेपी का एक कार्यकर्ता मारा गया है। यह झड़प तब हुई जब भाजपा तृणमूल के दुर्व्यवहार के विरोध में उत्तर बंगाल सचिवालय तक एक रैली निकाल रही थी। भाजपा बंगाल चुनाव को लेकर काफी उत्साहित है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे जिस तरीके से नतीजे प्राप्त हुए उससे उत्साहित भाजपा को इस बात की उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में वह ममता सरकार को कड़ी चुनौती देने में सक्षम रहेगी।

2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा ने 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस जीत से उत्साहित भगवा पार्टी को इस बार लगता है कि वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती है और ममता बनर्जी की सरकार को खत्म कर सकती है। भाजपा के इस मनोबल का कारण यह भी है कि ममता बनर्जी इस बार तीसरी बार सत्ता में काबिज होने के लिए चुनाव लड़ेंगी। ऐसे में उनके खिलाफ anti-incumbency भी रहेगा। इस वजह से भाजपा को फायदा हो सकता है। भाजपा यह भी मानती है कि जिस तरीके से तृणमूल के भीतर भी अशांति है उससे टीएमसी के कार्यकर्ताओं पर मानसिक असर तो जरूर पड़ेगा। ममता बनर्जी कैबिनेट से शुभेंदु अधिकारी का अलग होना टीएमसी के लिए बड़ा झटका है। अधिकारी पश्चिम मिदनापुर, बांकुरा, पुरुलिया और झाड़ग्राम के कम से कम 40 विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। ऐसे में अगर अधिकारी को भाजपा अपने पाले में कर लेती है तो कम से कम वह पार्टी के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया साबित हो सकते हैं।

पश्चिम बंगाल में वाम दल और कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है ऐसे में भाजपा खुद को उभारने में लगी हुई है। उधर असदुद्दीन ओवैसी द्वारा पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद तृणमूल कांग्रेस की परेशानी बढ़ सकती है। दरअसल माना जा रहा है कि अगर ओवैसी की पार्टी पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ती है तो टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लग सकता है। हाल में ही हमने देखा कि बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम सफल रहा जिसके कारण महागठबंधन को नुकसान का सामना करना पड़ा। पश्चिम बंगाल में 75 से 80 सीटों पर मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। ऐसे में ओवैसी के चुनावी मैदान में उतरने के निर्णय से ममता जरूर चिंतित होंगी। ममता लगातार कोशिश कर रही है कि अगले चुनाव को भाजपा के फेक राष्ट्रवाद बनाम बंगाली अस्मिता के बीच लड़ा जाए। खैर, यह तो निश्चित ही माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले हैं पश्चिम बंगाल चुनाव काफी दिलचस्प रहने वाला है।

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