20 वर्षों में उत्तराखंड ने छुए विकास के नये सोपान

-राम प्रताप मिश्र ‘साकेती’, देहरादून।

 

9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का निर्माण हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयासों से उत्तराखंड की संरचना हुई और 9 नवंबर को आधी रात के आसपास पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में नित्यानंद स्वामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नित्यानंद स्वामी 29 अक्टूबर 2001 तक मुख्यमंत्री रहे, उसके बाद 30 अक्टूबर 2001 के बाद अस्थायी सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में भगत सिंह कोश्यारी ने शपथ ली जो एक मार्च तक मात्र 123 दिन मुख्यमंत्री रहे। आगामी विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें भाजपा हार गई कांग्रेस सरकार बनी। कांग्रेस के मुखिया नारायण दत्त तिवारी दो मार्च 2002 को शपथ ली तथा 7 मार्च 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा की वापसी हुई। लेफ्टि. जनरल (सेनि.) भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया। 8 मार्च 2007 को श्री खंडूरी मुख्यमंत्री बने और पहले कार्यकाल में 23 जून 2009 तक मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 24 जून 2009 को सत्ता संभाली जो 10 सितम्बर 2011 तक मुख्यमंत्री रहे। डॉ. निशंक के बाद एक बार फिर भुवन चंद्र खंडूरी को लाया गया। श्री खंडूरी 11 सितम्बर 2011 से 13 मार्च 2012 तक मुख्यमंत्री रहे। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2012 में हुए, जिसमें एक सीट से कांग्रेस आगे रही और उसने सरकार बनाई। कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में विजय बहुगुणा ने 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक तथा हरीश रावत ने एक फरवरी 2014 से 27 मार्च 2016 तक शासन किया। राजनीतिक अस्थिरता के कारण 27 मार्च से 21 अप्रैल 2016 तक राष्ट्रपति शासन रहा। हरीश रावत 21 अप्रैल से 22 अप्रैल तक दुबारा मुख्यमंत्री बने। पुन: राष्ट्रपति शासन 22 अप्रैल से 11 मई तक रहा। 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017 तक हरीश रावत मुख्यमंत्री पद रहे। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर जोरदार वापसी की। 70 विधानसभा सीटों में से 57 विधानसभा सीटें जीतकर भाजपा सत्ता में काबिज हुई, कांग्रेस महज 11 सीटों पर सिमट कर रह गई। 18 मार्च 2017 को वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा की कमान संभाली और वर्तमान में प्रदेश के विकास को नई गति दे रहे हैं।

उत्तराखंड 20 साल पूरे कर 21 वें साल में प्रवेश कर कर गया। 20 सालों में राज्य निर्माण के उद्देश्यों के सापेक्ष पर्वतांचल ने क्या खोया और क्या पाया यह चर्चा आम है। जहां विकासवादी सोच के लोग इस नये नवेले प्रदेश के विकास से संतुष्ट है वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो हताशा और निराशा के वातावरण में जी रहा है। यह वर्ग वही वर्ग है जिसने उत्तराखंड के लिए खूब होहल्ला मचाया लेकिन उत्तराखंड निर्माण के बाद राजनीतिक गहमागहमी में पूरी तरह पिछड़ गया और आज हाशिये पर है। अब राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण अलग-अलग टुकड़ों में बंट गए है। इन 20 सालों में पिछली सरकारों के दौरान उन लोगों को विशेष महत्व मिला जो भाई-भतीजावाद अथवा घोटालों के मामले में सिद्धहस्त थे। पहली बार ऐसी सरकार आयी है जिसने मुख्यमंत्री कार्यालय में घोटाले बाजों को जगह नहीं लेने दी है। 900 करोड़ के प्रारंभिक वार्षिक बजट से उत्तराखंड का कार्य प्रारंभ हुआ था। आज लगभग 50 हजार करोड़ के आसपास यह बजट है, जो इस बात का संकेत है कि विकास तो निश्चित हुआ है। उत्तराखंड विधानसभा ने वर्ष 2020-21 के लिए 43,866 करोड़ 11 लाख 89 हजार रुपए का बजट बिना चर्चा के पारित किया। कोरोना संकट के बावजूद राज्य विधानसभा में 43866 करोड 11 लाख 89 हजार रुपए का बजट सदन ने पारित किया गया।  2020 में आर्थिक सुस्ती के बावजूद आर्थिक विकास दर मात्र .07 प्रतिशत ही कम हुई। केंद्रीय करों में राज्य को 23662 करोड़ मिलने हैं। 82.72 प्रतिशत बैंक खातों को आधार से जोड़ा गया है। 12 प्रतिशत राजस्व विकास दर रही है। जीएसटी से राज्य को 16 प्रतिशत का फायदा हुआ है। पेट्रोल डीजल से 3.79 प्रतिशत आय घटी है। कुल राजस्व में 18 प्रतिशत से ज्यादा अकेले आबकारी की भागेदारी है। 95 प्रतिशत राशन कार्ड आधार से लिंक हुए। कृषि भूमि कम हुई उत्पादकता मामूली बढ़ी है। नमामि गंगे में 387 करोड़ रुपये जारी हुए हैं। एक लाख 11 हजार 221 लोगों को रोजगार मिला है। 37 हजार 894 करोड़ का पूंजी निवेश हुआ है। सड़कों का विस्तार हुआ है। मार्च 2018 तक प्रति लाख लोगों पर 428 किमी. हुई। 16 हजार राजस्व गांव में से 12 हजार सड़कों से जुड़े। 14 हजार 452 राजकीय विद्यालयों में 4 लाख 67 हजार 122 छात्र हैं। चार हजार 726 निजी स्कूलों में पांच लाख 67 हजार 247 छात्र अध्ययनरत हैं। आयुष्मान के 38 लाख गोल्डन कार्ड बने हैं। 5050 शौचालय निर्माणाधीन हैं। कोरोना काल के कारण प्रदेश सरकार के राजस्व में भी घटोतरी हुई। उसके बावजूद प्रदेश सरकार पूरी तरह आर्थिक रूप से मजबूत है। पर्यटन में सरकार को केंद्र से खासी मदद मिलती रही है। इस सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए एडवेंचर टूरिज्म विभाग खोलने की तैयारी में है। इससे जुड़ी नई योजनाएं त्रिवेंद्र सिंह रावत के बजट में हैं। दूसरी तरफ कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए राज्य सरकार ने राहत कोष शुरू किया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जनता से इस राहत कोष में सहयोग करने की अपील की है। सीएम त्रिवेंद्र ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट में इस खाता संख्या को जारी किया है। उन्होंने लिखा है कि कोरोना के इस कठिन दौर में मिलकर इससे लड़े और मदद के लिए आगे आएं। इस संबंध में अकाउंट नंबर और आईएफएस कोड जारी करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें कोई भी अपना योगदान कर सकता है। सीएम ने कहा कि हम मिलकर इस संकट से लड़ सकते हैं और इसे हरा सकते हैं। राहत कोष में जमा पैसे से कोरोना से लड़ने के लिए उपकरण व अन्य सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी। राज्य आय का अनुमान मुख्य रूप से वित्तीय वर्ष में राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल के भीतर वर्ष में उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं का सकल मूल्य होता है। इसका आकलन आधार वर्ष के आधार पर बनाया जाता है। प्रति व्यक्ति आय को संदर्भित वर्ष के प्रचलित भाव पर सकल घरेलू उत्पाद को वर्ष की अनुमानित जनसंख्या से विभाजित कर निकाला जाता है। इसी तरह आर्थिक विकास दर भी निकाली जाती है। अर्थ एवं संख्या निदेशालय द्वारा विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में उपलब्ध नवीन आंकड़ों, राज्य सरकार के कृषि निदेशालय द्वारा उपलब्ध कराए गए कृषि के आंकड़े, बजट विश्लेषण, निगमित व अनिगमित क्षेत्रों व निजी क्षेत्रों में उपलब्ध नवीन आंकड़ों के आधार पर राज्य की आय का प्रथम अनुमान जारी किया गया है। आंकड़ों के अनुसार राज्य की अर्थव्यवस्था के आकार में 10.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।  राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 214993 करोड़ अनुमानित है। इसी तरह प्रति व्यक्ति सालाना अनुमानित आय वर्ष 2017-18 में 1,74,622 रुपये थी, जो अब बढ़कर 1,90,284 रुपये हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय 1,25,397 रुपये अनुमानित की गई है। राज्य में अनुमानित आर्थिक विकास दर 2017-18 में 6.82 से बढ़कर 7.03 हो गई है। राष्ट्रीय स्तर में यह औसत उत्तराखंड से अधिक यानी 7.2 प्रतिशत है। राज्य के लिए सड़कों पर संघर्ष करने वाले लोग राज्य में दबाव समूह तक नहीं बन सकें। उत्तराखंड देश का अकेला राज्य है जहां मूल निवासियों का कोई दबाव समूह नहीं हैं। परिणाम दिल्ली से नियंत्रित राजनीति ने धीरे-धीरे असर दिखाना शुरू कर दिया। राज्य के वास्तवित सवाल हाशिए पर चले गए। दून में इन पर आवाज उठाने वाले बहुत कम हैं। जो हैं उन्हें लोगों ने कभी विधानसभा नहीं पहुंचाया। सड़कों पर हुंकार भरने वालों को व्यवस्था ने सुविधाओं और राहतों का मोहताज बना दिया। सरकारों ने राज्य आंदोलनकारी चिह्नीकरण की ऐसी अजीब शुरूआत की जिसने स्वत:स्फूर्त आंदोलन को ही कठघरे में खड़ा कर दिया।  नौ नवंबर 2000 से पहले की स्थिति पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि यह राज्य कैसे निजी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बनकर रह गया। आज स्थिति यह है कि यह कहने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है कि इस भला तो उत्तर प्रदेश ही था। वहां की सरकारों का पर्वतीय क्षेत्रों के प्रति जो भी रवैया रहता रहा हो। मगर, सरकारी मशीनरी उत्तराखंड जैसे निष्ठुर कतई नहीं थी। देहरादून स्थित सचिवालय में अधिकारियों में न तो सुदूर क्षेत्रों का दर्द दिखता है और न ही राज्य की पीड़ा ही झलकती है। उत्तराखंड क्रांति दल के मुख्यालय कचहरी रोड पर पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष एपी जुयाल ने गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमने 20 वर्षों में काफी कुछ प्राप्त किया है लेकिन काफी कुछ प्राप्त करना बाकी रह गया है।            

विकास यात्रा में 21 वर्ष ज्यादा नहीं : त्रिवेंद्र

नवसृजित राज्य उत्तराखंड अब युवा अवस्था की ओर अग्रसर है। उत्तराखंड जिसकी स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी। अब अपनी स्थापना का 21 वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इस संदर्भ में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्थापना दिवस के अवसर पर पुलिस लाइन में परेड की सलामी ली। समारोह में राज्यपाल की गरिमामय उपस्थिति से समारोह और गौरवान्वित हुआ। अपने संबोधन में राज्यपाल श्रीमती बेबीरानी मौर्य तथा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंंह रावत ने अपने संबोधन में योजनाओं का खाका रखा तथा कहा कि कर्तव्य का निवर्हन करते हुए लगभग 1600 पुलिस अधिकारी और कर्मचारी कोविड 19 से संक्रमित हुए लेकिन इसके बाद भी हमारी पुलिस, डाक्टर, नर्से और सभी कर्मचारी अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं।  मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि राज्य निर्माण के बाद अन्य राज्यों की तुलना में राज्य की विकास की गति तीव्र हुई है। उन्होंने कहा, “किसी राज्य की विकास यात्रा में 21 वर्ष का समय बहुत लंबा नहीं होता लेकिन चीजों का जायजा लेने या यह निर्णय लेने के लिए कि हम सही दिशा में जा रहे हैं या नहीं, यह यह बहुत छोटा वक्त भी नहीं है । श्री रावत ने कहा, “प्रदेश में 30,000 स्वयं सहायता समूह हैं जिनमें से 18,000 सक्रिय हैं । हम इन समूहों और ग्रामीण ग्रोथ सेंटरों के जरिए महिलाओं को पांच लाख रुपये तक के ब्याज—मुक्त ऋण दे रहे हैं । महिला उद्यमी प्रेमा भंडारी का उदाहरण देते हुए रावत ने कहा कि केवल 500 रू से उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की थी और आज वह 30,000 रुपये से लेकर 40,000 रुपये प्रतिमाह तक की आय अर्जित कर रही हैं । जनता से प्रेमा से प्रेरणा लेने का आग्रह करते हुए मुख्यमंत्री रावत ने कोविड-19 के कारण घर लौटे लोगों के लिए राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और सौर स्वरोजगार योजना के बारे में भी जानकारी दी।

विकास तो हुआ लेकिन अपेक्षित नहीं: सुरेन्द्र कुमार

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुरेन्द्र कुमार मानते हैं कि इन 20 वर्षों में बहुत काम हुआ है। नौ सौ करोड़ के बजट से प्रारंभ होकर आज वार्षिक बजट लगभग 50 हजार करोड़ के आसपास पहुंच गया है जो अपने आप में विकास की गाथा कहता है। चमचमाती सड़कें इस बात की गवाही है कि विकास तो हुआ है लेकिन यह भी सच है कि पर्वतीय क्षेत्रों के सुदूरवर्ती गांव तक विकास की अपेक्षित पहुंच नहीं

सुरेन्द्र कुमार

हो पाई है। कांग्रेस प्रवक्ता मानते हैं कि जिन सरोकारों को लेकर उत्तराखंड राज्य की अवधारणा की गई थी और जिनको लेकर उत्तराखंड राज्य बना था वह पूर्ण नहीं हुए है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुरेन्द्र कुमार मानते हैं कि उत्तराखंड राज्य में प्रति व्यक्ति आय काफी बढ़ी है लेकिन पहाड़ और मैदान की खाई भी बढ़ी है। महिलाओं के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किए गए हैं, उनके सिर से बोझा आज भी नहीं हटा है, जो उचित नहीं है। उत्तराखंड का आंदोलन मातृ शक्ति ने चलाया लेकिन वही हाशिये पर है। कांग्रेस के प्रवक्ता का कहना है कि विकास को केवल एक ही पैमाने से नहीं आंका जाना चाहिए, विकास हुआ है पर और विकास की जरूरत है। विषमताएं आज भी बनी हुई है जिन्हें और कम किया जाना चाहिए था, जो नहीं हो रहा है। श्री सुरेन्द्र कुमार मानते हैं कि सरकार ने अपेक्षित प्रयास नहीं किया है, अन्यथा उत्तराखंड के विकास को और अधिक चार चांद लग जाते।

समस्याएं जस की तस: बीडी रतूड़ी

बीडी रतूड़ी

यूकेडी के संरक्षक बीडी रतूड़ी का कहना है कि अलग राज्य बने हुए 20 साल हो चुके हैं, लेकिन अब भी समस्याएं जस की तस हंै। श्री रतूड़ी के अनुसार पर्वतीय जिले मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीते दो दशक में नौ सौ से अधिक गांव वीरान हो चुके हैं। 3600 स्कूल बंद हो चुके हैं। सरकार अब पर्वतीय क्षेत्रों में पॉलीटेक्निक व आइटीआई भी बंद करने जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रोजाना कई लोग दम तोड़ रहे हैं। रतूड़ी ने कहा कि रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के लिए पृथक राज्य की मांग की गई थी, पर स्थिति यह है कि राज्य का युवा रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। कर्मचारियों का उत्पीड़न हो रहा है। महिलाओं पर अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।

सपनों को खोया, निराशा को पाया: हरबीर सिंह कुशवाहा

हरबीर सिंह कुशवाहा

समाजवादी नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निकटस्थ रहे आयकर-बिक्रीकर के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं चिंतक हरबीर सिंह कुशवाहा का सीधा मानना है कि इन 20 वर्षों में हमने सपनों को खोया है, निराशा का पाया है। समाजवादी नेता हरबीर सिंह कुशवाहा का कहना है कि जिन लोगों ने उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष किया वह लोग राजनीति के मुख्यधारा में नहीं हैं, जिसके कारण उनके सपनों को मूर्तरूप नहीं मिल पाया। प्रदेश का विकास जिस ढंग से होना चाहिए था पूर्ववर्ती सरकारों में वह ‘विजन’ नहीं था जिसके कारण उत्तराखंड आज भी अन्य प्रदेशों की तुलना में फिसड्डी है। सरकारें बनी, चली और समाप्त हो गई लेकिन उनका आशय सरकार बनाने से था, उत्तराखंड के यथार्थ विकास से नहीं, चाहे भाजपा की सरकार रहीं हो चाहे कांग्रेस की। इन दोनों दलों ने बातें ज्यादा की, उतना काम नहीं हुआ। उत्तराखंड वन सम्पदा, जल सम्पदा, औद्यानिकी, पर्यटन जैसी सम्पदाओं का कोष है, लेकिन इनका वैज्ञानिक दोहन, संवर्द्धन व संरक्षण जिस ढंग से होना चाहिए था नहीं हुआ। इतना ही नहीं वनों को स्थानीय लोगों से जोड़ा जाना चाहिए था वह अब तक नहीं हो पाया है। स्थानीय लोगों के शामिल न होने से उद्यान, फल, सब्जियां अपेक्षित स्थान नहीं पा सके। चारधाम यात्रा के संदर्भ में भी यही स्थिति है। सरकारें तीर्थाटन और पर्यटन का वास्तविक अर्थ नहीं समझ पायी। तीर्थाटन और पर्यटन में बहुत अंतर है। युवा सैनिक पेंशन लेकर उत्तराखंड आता है, उसे औद्यानिकी, वानिकी तथा अन्य व्यवस्थाओं में प्रशिक्षित कर आर्थिक रूप से पुष्ट बनाया जाता, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। जड़ी बूटियों पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा सका। बाबा रामदेव ने भी जड़ी बूटियों का दोहन किया, उन पर शोध नहीं किया। फलों में भी यही स्थिति आज हिमाचली सेब ने कश्मीर के सेब को मात दी है लेकिन उत्तराखंड का सेब किसी गिनती में नहीं आता जो केवल सरकारों की नीतियों का परिणाम है।

-राम प्रताप मिश्र ‘साकेती’

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