अल्पसंख्यकों को साधने की कवायद

Exercise to help minorities

  • पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटरों की रही है निर्णायक भूमिका
  • 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बंट सकते हैं इनके वोट

    सार्थक दास गुप्ता

कोलकाता: पश्चिम बंगाल( West Bengal) में मुस्लिम वोटर शुरू से निर्णायक रहे हैं। वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर किसका दामन थामेंगे, यह बता पाना मुश्किल है। लेकिन जिस तरह से पश्चिम बंगाल की सियासत में उथल-पुथल जारी है, उससे यह बात समझा जा सकता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट निश्चित रूप से बंटने की स्थिति में हैं। दरअसल, आगामी चुनाव में असादुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसिलमीन (एआईएमआईएम) की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। वैसे पश्चिम बंगाल में मुस्लिम धर्मगुरु तोहा सिद्दीकी की मुस्लिम वोटरों में पकड़ शुरू से ही काफी अच्छी रही है। इसका परिणाम बीते विधानसभा चुनाव में देखने को भी मिला है।
राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि तोहा सिद्दीकी के फरमान की वजह से ही मुस्लिम वोटर तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में आये जिससे ममता बनर्जी की पार्टी को लाभ पहुंचा और वे मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन इस बार का समीकरण कुछ अलग ही दिख रहा है। इस बार तोहा सिद्दीकी का भतीजा अब्बास उद्दीन सिद्दीकी भी काफी सक्रिय है। उसने एलान भी कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह मुस्लिम वर्चस्व वाले क्षेत्रों में निर्दलीय उम्मीदवारों को उतारेगा। जानकार यह मानकर चल रहे हैं कि भले ही अब्बास उद्दीन सिद्दीकी का प्रभाव वोटरों पर नहीं है लेकिन उसके द्वारा चुनाव मैदान में उतारे गए प्रत्याशी कुछ तो वोट काटेंगे ही और किस पार्टी को नुक्सान पहुंचाएंगे, यह बात भी आसानी से समझा जा सकता है। बिहार विधानसभा चुनाव में असादुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीती हैं जिससे उसके हौसले बुलंद हैं। निश्चित रूप से ओवैसी पश्चिम बंगाल में अपना उम्मीदवार उतारेंगे। ऐसी स्थिति में मुस्लिम वोट निश्चित रूप से बंटेंगे। इसका खमियाजा तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को ही भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस या फिर अन्य वामपंथी पार्टियों का काफी बुरा हाल है। ये पार्टियां अब भी काफी कमजोर स्थिति में हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा के शीर्ष नेताओं को पता है कि मुस्लिम वोट उनके उम्मीदवारों को नहीं मिलने वाला है। मुस्लिम वोट आपस में बंटेगा तो इसका फायदा भाजपा को ही होगा। सबसे ज्यादा नुकसान तृणमूल कांग्रेस को ही होना है।
तृणमूल कांग्रेस को सत्ता के करीब लाने में मुस्लिम वोटरों की भूमिका काफी अहम रही है। राजनीति के जानकारों की मानें तो तोहा सिद्दीकी के भतीजे अब्बास उद्दीन सिद्दीकी के पीछे भाजपा का ही हाथ है। भाजपा चाह रही है कि हर हाल में मुस्लिम वोट बंटे। तभी भाजपा को फायदा पहुंच सकता है। वैसे भी बिहार से सटे पश्चिम बंगाल के विधानसभा क्षेत्रों में असादुद्दीन ओवैसी के लोगों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। बहरहाल, इस बार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव काफी रोचक स्थिति में होने की संभावना है। पश्चिम बंगाल की खुफिया एजेंसियों के पास भी पुख्ता रिपोर्ट है। एजेंसियां भी मान रही हैं कि अब्बास उद्दीन सिद्दीकी, तोहा सिद्दीकी और असादुद्दीन ओवैसी की भूमिका इस विधानसभा चुनाव में खास होगी। कुल 294 सीटों वाली विधानसभा में 30 फीसद मुस्लिम वोटर हैं जो दो दर्जन से ज्यादा सीटों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि ओवैसी का मकसद चुनाव में जीतना नहीं है, केवल वोट काटना है, ताकि भाजपा को फायदा मिल सके। चौधरी का साफ कहना है कि ओवैसी और भाजपा दोनों का मकसद धर्म के आधार पर लोगों को बांटना है और इस दिशा में ही खेल शुरू हो गया है। अधीर रंजन चौधरी का यहां तक कहना है कि इस पूरे खेल में भाजपा की महत्वपूर्ण भूमिका है। बस इसे समझने की आवश्यकता है।
वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में गड़बड़ी कराना चाहती है। इसलिए वह तरह तरह के एजेंडे पर काम कर रही है। भाजपा को सोनार बांग्ला से कोई मतलब नहीं है। भाजपा केवल अपना फायदा देखना चाह रही है। लेकिन पश्चिम बंगाल की जनता काफी होशियार है। वह भाजपा के झांसे में आने वाली नहीं है।

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