नहीं लड़ेंगे 2020 का चुनाव

  • उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर उठापटक प्रारंभ

राम प्रताप मिश्र ‘साकेती

देहरादून : उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर उठापटक प्रारंभ हो गई है। कांग्रेस से आये मंत्री बने कई नेता गाहे-बगाहे अपनी नाराजगी प्रकट कर चुके हैं। सत्ता और संगठन दोनों से इन नेताओं का उतना सामीप्य नहीं है जितना होना चाहिए फिर भी भाजपा में आने के बाद भी इन नेताओं ने अपनी अलग पहचान बनाए रखी है।  चर्चाओं के बाद डॉ. हरक सिंह ने प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लंबी मुलाकत की और कई संदर्भों में उनसे चर्चा की।

पिछले दिनों विभिन्न कारणों से उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से शासन द्वारा श्रम मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत को हटा दिया है, जिसके कारण उनकी भौहें तन गई है। अब उन्होंने यह घोषणा कर दी है कि वह 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, हालांकि इसका कारण उन्होंने व्यक्तिगत बताया है लेकिन जानने वाले सब कुछ जान लेते हैं। वैसे भी डॉ. हरक सिंह रावत के तमाम सहयोगी इन दिनों आप से जुड़ रहे हैं जिसके कारण डॉ. हरक सिंह रावत का आप की ओर जुड़ाव ही एक कारण हो सकता है। डॉ. हरक सिंह रावत के सहयोगी एवं दून मंडी समिति के पूर्व अध्यक्ष रविन्द्र सिंह आनन्द ने आम आदमी पार्टी का दामन थामा। यही डॉ. हरक सिंह रावत के अन्य सहयोगी वीरेन्द्र सिंह चौहान ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली है और कुछ और वरिष्ठ सहयोगी भी आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेने वाले हैं, ऐसे में डॉ. हरक सिंह रावत को लेकर भी तमाम तरह की चर्चा है।

2002 में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे डा. हरक सिंह रावत 2007 में भाजपा की सरकार में नेता प्रतिपक्ष रहे और 2012 में कांग्रेस सरकार आने पर पुन: मंत्री बने। 2017 में भाजपा की सरकार आने में श्रम एवं वन मंत्री है। 2002 की सरकार में डॉ. हरक सिंह रावत को बीच में ही त्यागपत्र देना पड़ा था। वर्ष 2012 कांग्रेस सरकार में भी उन्हें बगावत करनी पड़ी और उन्होंने 2016 में इसी बगावत के कारण मंत्री पद गवां दिया। 2020 की शुरूआत भी ऐसी ही लग रही है कि डॉ. हरक सिंह कभी भी पार्टी को नमस्ते कह सकते हैं। डॉ. हरक सिंह जिस विभाग के मंत्री है उसी विभाग के तहत उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण् बोर्ड की अध्यक्षता उन्होंने मंत्री बनते ही ग्रहण कर ली थी। उसके पहले इस पद पर सचिव अध्यक्ष हुआ करते थे। श्रम विभाग के अध्यक्ष के रूप में डॉ. हरक सिंह रावत ने अपनी सहयोगी दमयंती रावत को बोर्ड का सचिव बना दिया।

डॉ. हरक सिंह कहा कि वह व्यक्तिगत फैसला कर चुके हैं कि वह 2022 का चुनाव नहीं लड़ेंगे। इतना ही नहीं हरक सिंह ने यह जानकारी दी कि उन्होंने अपने इस निर्णय की जानकारी भारतीय जनता पार्टी हाईकमान तथा महामंत्री संगठन अजेय कुमार को लिखित रूप से भेज दी है। डॉ. हरक सिंह ने कहा है कि कई बार अपने फैसलों से पार्टी और प्रदेश हित में पीछे भी हटना पड़ता है। पार्टी हाईकमान के कहने पर निर्णय बदलने पड़ते हैं।

डा. हरक सिंह रावत के राजनीति सफर की चर्चा की जाए तो डॉ. रावत 1989 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में उत्तर प्रदेश विभानसभा का चुनाव लड़े थे लेकिन जीत नहीं दर्ज कर पाए। उससे पहले छात्र जीवन में ही वह राजनीति से जुड़ गए थे। 1991 के विधानसभा चुनाव में पौड़ी विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक बने। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने डा. हरक सिंह रावत को पर्यटन राज्यमंत्री का दायित्व सौंपा। यह संयोग है कि हरक सिंह रावत उस समय उत्तर प्रदेश सरकार में सबसे युवा मंत्री थे। 1993 में विधानसभा पौड़ी से चुनाव लड़े और जीते। तीन वर्ष बाद 1996 में मतभेदों के कारण उन्होंने भाजपा को नमस्त कह दिया और बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए।

बसपा के टिकट पर 1998 में हरक सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल सीट से लोकसभा चुनाव में उतरे लेकिन जनाधार न होने के कारण जीत नहीं पाए। इसके बाद उन्होंने बसपा छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में हरक सिंह रावत लैंसडौन से चुनाव मैदान में उतरे और जीते।

2007 के चुनाव में दुबारा लैंसडौन विधानसभा से चुनाव जीते लेकिन सरकार भाजपा की बनी और वह नेता प्रतिपक्ष बने। पूरे पांच साल नेता प्रतिपक्ष रहने के बाद 2012 के चुनाव में डॉ. हरक सिंह ने तत्कालीन भाजपा के दिग्गज नेता अपने साढू़ मातबर सिंह कंडारी को रूद्रप्रयाग से हराया और विजय बहुगुणा तथा हरीश रावत सरकार में मंत्री रहे। डॉ. हरक सिंह रावत ने 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ विधायकों के साथ बजट सत्र में पार्टी से विद्रोह किया। बाद में यह सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गए।  भाजपा में शामिल होने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में पुन: जीत दर्ज। इस बार भाजपा ने 57 सीटों के भारी बहुमत से जीत हासिल की और कांग्रेस मात्र 11 विधायकों के आंकड़े पर सिमट गई।

 

 

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