सुदेश ईष्टवाल
देहरादून: उत्तराखंड से राज्यसभा के तीन सदस्य हैं, जिनमें कांग्रेस के राजबब्बर का कार्यकाल 25 नवंबर 2020 को समाप्त हो रहा है। राजबब्बर 14 मार्च 2015 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उत्तराखंड की इस मात्र एक राज्यसभा सीट के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ओर से भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके नरेश बंसल को उम्मीदवार बनाया गया है। एक मात्र नामांकन होने के कारण श्री बंसल की जीत सुनिश्चित है और वह राज्यसभा में राजबब्बर का स्थान लेंगे। इससे पहले कांग्रेस के महेन्द्र सिंह महरा के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी ने युवा नेता एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी को राज्यसभा भेजा। अब राजबब्बर के स्थान पर नरेश बंसल राज्यसभा जा रहे हैं, जबकि कांग्रेस के प्रदीप टम्टा का कार्यकाल 4 जुलाई 2022 को समाप्त होगा, उनकी जगह कौन राज्यसभा में जाएगा यह अगली आने वाली सरकार द्वारा तय किया जाएगा। फिलहाल उत्तराखंड में नरेश बंसल के प्रत्याशी बनाने पर भाजपा खेमे में हर्ष है। वहीं कुछ लोग इस चयन को भी पहाड़ गैर पहाड़ के चश्मे से देख रहे हैं, जो उनकी मानसिकता का प्रतीक है।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेश बंसल वर्तमान में उत्तराखंड कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त बीस सूत्रीय कार्यक्रम एवं क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं। नरेश बंसल को यह उपलब्धि महज यूं ही नहीं मिल गई, इसके पीछे बंसल की लंबी सेवाएं हैं जो उन्होंने पार्टी के लिए की है। गत 50 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयं सेवक के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे बंसल ने वे मात्र आठ साल की उम्र में स्वयं सेवक बन गए थे। उनका सामाजिक व राजनैतिक जीवन लंबा रहा है। उन्होंने संघ के साथ-साथ उत्तरकाशी के विनाशकारी भूकंप के कार्यकाल में संघ के वरिष्ठतम पदाधिकारी एवं डीबीएस के भूगोल विभाग के प्रमुख डॉ. नित्यानंद के साथ मिलकर उत्तरांचल दैवी आपदा पीड़ित समिति के नाम पर वर्षों तक पर्वतांचल की सेवा की है। इस विनाशकारी भूकंप के बाद सरकार से भी पहले सेवा कार्य करने वालों में नरेश बंसल और उनके सहयोगी रहे हैं जिनमें प्रेम बड़ाकोटी जैसे नाम शामिल है। डॉ. नित्यानंद के नेतृत्व में प्रभावित क्षेत्रों के पुनरूत्थान के लिए वर्षों तक सेवा कार्य के साथ-साथ उन्होंने संघ कार्य के लिए ही यूको बैंक की सेवा से त्यागपत्र दिया था, बाद में इन्हें भाजपा से जोड़ा गया। नरेश बंसल के कुशल नेतृत्व व बेहतर सांगठनिक कौशल के कारण पार्टी में उनकी छवि हरफनमौला की रही है। इसी कार्यशैली से भाजपा हाईकमान ने राज्यसभा सीट के लिए उन्हें उम्मीदवार घोषित किया। फरवरी 1977 में सिंचाई विभाग में कार्य करने के साथ-साथ संघ के संपर्क में रहने के कारण सेवा समाप्ति का नोटिस मिला। जुलाई 1977 में बंसल ने सिंचाई विभाग की नौकरी छोड़ दी और बाद में उनकी नियुक्ति यूको बैंक में हुई।
मूलत: समाजसेवी परिवार से आने वाले नरेश बंसल का जन्म देहरादून में हुआ। वे आठ वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ कर स्वयं सेवक बने। प्राइमरी शिक्षा देहरादून नगर पालिका के स्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा भी देहरादून में ही हुई। 14 वर्ष की आयु में उन्होंने संघ का प्राथमिक शिक्षा वर्ग किया। बाद में संघ के तृतीय वर्ष का शिक्षण नागपुर में लिया। उन्होंने डीएवी कालेज देहरादून से एमकॉम की शिक्षा भी प्राप्त की।
नरेश बंसल ने प्रतिबंधित रामनवमी की शोभायात्रा संघर्षों के बाद प्रारंभ की।1989 में श्रीराम शिला पूजन समिति का नगर संयोजक का दायित्व निभाया। श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन के समय गठित उत्तराखंड संवाद समिति के कोषाध्यक्ष रहे। 1972 में विद्यार्थी परिषद के जिला संयोजक का दायित्व निभाया। नरेश बंसल 1980 से 1986 तक हिंदू जागरण मंच के नगर अध्यक्ष रहे।
बंसल ने चार नवंबर 2002 से 2009 तक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में प्रदेश संगठन महामंत्री के दायित्व का निर्वहन किया। 2009 से 2012 तक तत्कालीन प्रदेश भाजपा सरकार में अध्यक्ष आवास एवं विकास परिषद का दायित्व मिला।2009 से 2012 तक भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति के स्थायी आमंत्रित सदस्य रहे। 2012 में विधानसभा चुनाव में प्रदेश चुनाव अभियान समिति के सचिव का दायित्व मिला। नरेश बंसल ने 2012 में केंद्र के आदेश पर राज्यसभा के लिए नामांकन किया, लेकिन बाद में नाम वापस लिया। 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के स्टार प्रचार की सूची शामिल रहे। 2012 से 2019 तक प्रदेश महामंत्री रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष का दायित्व संभाला। अब बंसल को राज्यसभा भेजकर पार्टी ने उनकी सेवाओं का प्रतिफल उन्हें दिया है जो एक समर्पित कार्यकर्ता तथा कुशल सांगठनिक नेता को दिया जाना चाहिए था।