पं. ओमप्रकाश चतुर्वेदी, बनारस
भगवान आदि शंकराचार्य विरचित-विश्व साहित्य के अमूल्य एवं दिव्यतम ग्रन्थ ‘सौंदर्य लहरी’ में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर नवरात्र का परिचय इस प्रकार देते हैं- ‘नवशक्ति भिः संयुक्तम् नवरात्रंतदुच्यते। एकैवदेव देवेशि नवधा परितिष्ठता’’।। अर्थात् नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदि शक्ति की नौ कलाएं (विभूतियां) नव दुर्गा कहलाती हैं।
नवरात्र को आद्या शक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। सवंत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र होते हैं। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं। इन चार नवरात्रों में दो गुप्त और दो प्रकट, चैत्र का नवरात्र वासन्तिक और आश्विन का नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। वासन्तिक नवरात्र के अंत में रामनवमी आती है और शारदीय नवरात्र के अंत में दुर्गा महानवमी, इसलिए इन्हें क्रमशः राम नवरात्र तथा देवी नवरात्र भी कहते हैं।
नौ तिथियों के नौ स्वरूप
नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बेहद शुभ माना जाता है, जो पूजा उपासना में अभीष्ट सिद्धि देने वाला माना जाता है। प्रतिपदा को शैलपुत्री, द्वितीया को ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चंद्रघंटा, चतुर्थी कुष्मांडा, पंचमी-स्कंदमाता, षष्ठी-कात्यायनी, सप्तमी-कालरात्रि, अष्टमी -महागौरी और नौमी को मां सिद्धिदात्री की होगी पूजा।
दो नवरात्र एक ही वाहन पर
हर साल नवरात्रि पर देवी अलग-अलग वाहन से धरती पर आती हैं। नवरात्रि की शुरुआत शनिवार के दिन से हो रही है। ऐसे में मां दुर्गा के आगमन का वाहन घोड़ा है। जब देवी का आगमन घोड़े पर होता है तब पड़ोसी देशों से युद्ध, गृह युद्ध, आंधी-तूफान और राजनीतिक उथल-पुथल जैसी गतिविधियां बढ़ने की आशंका रहती है। नवरात्रि का आखिरी दिन रविवार होने से देवी भैंसे पर सवार होकर जाएंगी। इसे देश में रोग और शोक बढ़ने का संकेत माना जाता है।
इस बार शनिवार से नवरात्र आरंभ
17 अक्टूबर दिन शनिवार को आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है इस दिन से शारदीय नवरात्र का आरंभ होने जा रहा है। जो 25 अक्टूबर दिन रविवार को समाप्त हो जाएगा। यही वजह है कि इस बार नवरात्र में 8 दिनों की पूजा और 9वें दिन वसर्जन हो जाएगा। अबकी बार पुरुषोत्तम मास की वजह से पितृपक्ष और शारदीय नवरात्र के बीच में एक महीने का अंतराल आ गया है।
तभी पूरी होती है दुर्गापूजा
कन्या पूजन के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने हमें स्त्री वर्ग के सम्मान की ही शिक्षा दी है। नवरात्र में देवी भक्तों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे आजीवन बच्चियों और महिलाओं को सम्मान देंगे और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेंगे। तभी सही मायनों में नवरात्र की शक्ति पूजा संपन्न होगी।