सुगौली, पूर्वी चंपारण : विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर है। ऐसे में हमेशा से हॉट सीट रहने वाला सुगौली इस बार भी कम नहीं है। सभी छोटे-बड़े दल अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिये हैं। जो चुनावी समर में जोर आजमाइश के लिए लगे हुए हैं। वहीं निर्दलीय प्रत्याशियों के चेहरे अभी सामने आने बाकी हैं।
लेकिन जीत का सहारा किसके सर पर बंधेगा यह समय की बात है। फिलवक्त राजद प्रत्याशी ई. शशिभूषण सिंह की चर्चा जोरों पर है।
बड़े दलों ने चुनावी विश्लेषकों के कयासों पर पानी फेरते हुए नये कलेवर में पुराने चेहरों को चुनावी मैदान में चुनौती पेश करने के लिए उतार दिया है। जिससे सुगौली विधानसभा का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है।
यहां बताते चलें कि सुगौली विधानसभा को भाजपा के टिकट पर 2005 से लगातार तीन बार फतह करने वाले वर्तमान विधायक रामचंद्र सहनी अब एनडीए के घटक दल वीआईपी के नाव पर सवार हैं। वहीं राजद ने ई.शशि भूषण सिंह को चुनावी समर में चुनौती पेश करने के लिए उतार दिया है। रालोसपा ने संत सिंह कुशवाहा को अपना प्रत्याशी बनाया है तो सुगौली विधानसभा से भाजपा के विजय प्रसाद गुप्ता बागी बनकर लोजपा के टिकट से चुनावी मैदान में जोर आजमाइश के लिए उतर चुके हैं।
हालांकि अन्य दल और निर्दलीय भी इस बार अपना भाग्य आजमाने को मैदान में उतरेंगे लेकिन वर्ष 2005 से सुगौली विधानसभा की लड़ाई परंपरागत रूप से राजद और भाजपा के बीच ही रही है। जातिय समिकरण भी इन्हीं दो दलों के पक्ष में हमेशा से गोलबंद होते रहें हैं। लेकिन इस बार सुगौली विधानसभा सीट पर लगातार पंद्रह वर्षों से कब्जा जमाये भाजपा के वर्तमान विधायक रामचंद्र का पार्टी के भीतर ही काफी विरोध झेलना पडा, भाजपा के ही स्थानीय कार्यकर्ता उनके विरोध में मुखर हो गये जिससे पार्टी ने उनका टिकट काट दिया, अंततः डैमेज कंट्रोल करते हुए एनडीए गठबंधन से उन्हें उम्मीदवार बनाया गया।
भाजपा के वोट बैंक में सेंध का जुगाड़
ई.शशी भूषण सिंह को टिकट थमा कर जातिय समीकरण में जबरदस्त हेर-फेर कर दिया है। जिससे लगता है कि सीधे भाजपा के प्रत्याशी नहीं देने से इसके परंपरागत वोट बैंक में राजद सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही है। यहां बता दें कि इस बार राजद ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए इस सीट पर सवर्ण प्रत्याशी उतारकर इस सीट को अपने पाले में करने की फिराक में है। राजद से टिकट मिलने के कारण राजद का मुस्लिम-यादव वोट तो उनके साथ रहेगा ही भाजपा का सीधे उम्मीदवार नहीं होने से भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की संभावना जताई जा रही है। राजद ने स्थानीय मुद्दों बाढ़,भ्रष्टाचार, अनुमंडल, डिग्री कालेज,शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी मुद्दों को भी चुनावी घोषणापत्र मे शामिल कर अन्य दलों के राह को मुश्किल बना दिया है। वहीं विधानसभा के कद्दावर नेता रहे पूर्व राज्यमंत्री विजय प्रसाद गुप्ता भी हाल ही में भाजपा छोड़ लोजपा के प्रत्याशी बनें हैं। जिनका वैश्य वोट पर बेहतर पकड़ है। दूसरी तरफ रालोसपा से आये संत सिंह कुशवाहा भी विधानसभा चुनाव में चुनौती देने के लिए रात दिन एक किये हुए हैं।
चुनावी चक्कलस के विश्लेषकों की मानें तो इस विधानसभा चुनाव में भी विकास का मुद्दे पर जातिय समिकरण भारी पड़ने वाला है। सबके बाद जीत हार जिसकी भी हो मतदाता भी अबकी बार दलों के चाल-चरित्र तथा प्रत्याशीयों के गुलाटी मारने के करतब को बड़े खामोशी से देख रही है। मतदाताओं की खामोशी और लोकतंत्र के महापर्व में सिद्धांतों और आदर्शों की होली जलाने वालों को सबक सीखा दे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।