- सरकारी खर्च पर मदरसे नहीं चलाने का फैसला
- धार्मिक शिक्षा पर खर्च नहीं, आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा
अनिरुद्ध यादव
गुवाहाटी: असम विधान सभा चुनाव होने में अभी छह महीने से ज्यादा का समय ही बाकी है। 2021 में असम विधान सभा पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए राज्य की सत्ताधारी भाजपा, मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी), अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (एआईयूडीएफ) और वाम दल ने कवायद शुरू कर दी है। इसी कड़ी में कांग्रेस, एआईयूडीएफ और वाम दलों के बीच बनने वाले संभावित गठबंधन के कारण भाजपा को अपनी जीती हुई 20 सीटें हारने का अंदेशा है। ऐसे में इस कमी को पूरी करने के लिए भाजपा अपनी नीतियों के तहत कथित सांप्रदायिक राजनीति का कार्ड खेल रही है। भाजपा ने इस चुनाव को ‘65 बनाम 35’ की लड़ाई बताकर मतदाताओं को धर्म के नाम पर बांटने की राजनीति शुरू कर दी है। यदि इन दिनों मुख्यमंत्री और हिमंत विश्वशर्मा के भाषणों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि भाजपा इस चुनाव में सांप्रदायिकता के आधार पर दिसपुर को दखल करना चाहती है। असम में सरकारी मदरसे को बंद किये जा चुके हैं और सभाओं में कथित लव जिहाद के मुद्दे उठाये जा रहे हैं।
असम सरकार नवंबर से सरकारी मदरसे बंद करने जा रही है। 9 अक्तबूर को शिक्षा विभाग की ओर से जारी एक नोटिस में यह स्पष्ट हो चुका है। सरकार ने मदरसा शिक्षकों को साधारण शिक्षा के साथ शामिल करने का फैसला किया। मदरसों में ठेके पर कार्यरत 148 शिक्षकों को माध्यमिक शिक्षा विभाग में शामिल किया जाएगा। इस सिलसिले में शिक्षा विभाग ने माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक से औपचारिक प्रस्ताव मांगा है। सरकारी खर्च पर मदरसों में धार्मिक शिक्षा देने की कोई व्यवस्था नहीं रहेगी। निजी तौर पर अगर कोई मदरसा खोलना चाहेगा तो सरकार को कोई एतराज नहीं है। मदरसे बंद करने के बाद सामान्य माध्यमिक शिक्षा के तहत 148 मदरसा संविदात्मक शिक्षकों को अन्य स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा। शिक्षकों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने स्थानांतरण वाले सामान्य विद्यालयों के बारे में एक औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत करें। उल्लेखनीय है कि सरकार राज्य में मदरसों पर सालाना 3-4 करोड़ रुपए खर्च करती है। सरकार ने धार्मिक शिक्षा पर सार्वजनिक धन खर्च नहीं करने के नीतिगत निर्णय के तहत उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों को सुदृढ़ करने का निर्णय लिया है।
मालूम हो कि इससे पहले वित्तमंत्री डा. हिमंत विश्वशर्मा ने कहा था कि यदि छात्र को धार्मिक ग्रंथ प्रदान किए जाएंगे तो गीता या बाइबल का अध्ययन करने के लिए विभिन्न समूहों से मांग उठ सकती है। हालांकि, अगर लोग अपने स्वयं के खर्च पर अपने धार्मिक अध्ययन संस्थान खोल सकते हैं।
डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने कहा कि असम सरकार केवल धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देगी। सरकार धार्मिक तर्ज पर चलने वाले किसी भी शैक्षणिक संस्थानों को संरक्षण नहीं देगी। सरकार निजी मदरसा में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। शिक्षा मंत्री ने पहले घोषणा की थी कि मदरसा बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा।संस्कृत के बारे में शर्मा ने कहा कि संस्कृत सभी आधुनिक भाषाओं की जननी है। असम सरकार ने सभी संस्कृत संस्थानों को कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत और प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय (नलबाड़ी में) के तहत लाने का फैसला किया है।