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आलेख

कोसल में विचारों की कमी है

आलेख : जवरीमल्ल पारख, संक्षिप्तिकरण : संजय पराते हिंदी कवि श्रीकांत वर्मा के कविता संग्रह 'मगध' में एक कविता संकलित है, ‘कोसल में विचारों की कमी है’। इस कविता की अंतिम दो पंक्तियां हैं : कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता/कोसल में विचारों की कमी है!’ यदि कोसल को हम भारत का लोकतंत्र समझें तो उस पर यह…
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मोदी का फेवीकोल जोड़ राग : हताशा का चरम, पाखंड की पराकाष्ठा

आलेख : बादल सरोज यूं तो मोदी हर रोज अपनी चुनावी सभाओं में कुछ न कुछ ऐसी लम्बी फेंकते ही रहते हैं, जिसे लपेटने में उनकी ही आई टी सैल के पसीने छूट जाते हैं। मगर 8 मई को तो जैसे वे सभी को चौंकाने और अचरज में डालने के मूड में थे। एक आमसभा में बोलते हुए नरेन्द्र मोदी ने अचानक वे दो नाम ले दिए,…
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देश को डुबा और खुद तैर

व्यंग्य : विष्णु नागर मान लीजिए श्रीमान, इस बार जनता आपसे कहे कि आप कुछ महीने बाद 74 के होकर 75 वें वर्ष में प्रवेश करने वाले हैं, अब आपकी उम्र आराम करने की है, सेवा करने की नहीं, सेवा करवाने की है, तो क्या आप यह बात मान लेंगे? वैसे भी आपने पिछले दस वर्षों में एक भी दिन आराम नहीं किया है।…
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सारे धान पंसेरी के भाव मत तौलिये!

बादल सरोज 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस था। पर कुछ गुणी और सुधी मित्रों की ऐसी टिप्पणियाँ दिखीं, जिनमें इन दिनों की पत्रकारिता का मखौल उड़ाते-उड़ाते पत्रकारों का भी उपहास जैसा किया गया लगा। यह एक तो जर्मन कहावत "दास काइंड मिट डेम बडे ऑस्चुटेन" (बच्चे को नहलाकर बाहर निकालें, नहाने के पानी…
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अब एक चुनाव, एक उम्मीदवार!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा मोदी जी ने क्या कुछ गलत कहा था? राहुल गांधी अमेठी से भागे हैं कि नहीं। अमेठी से भागकर बगल में रायबरेली में गए हैं, पर भागे तो हैं। भागने के लिए दूर जाना जरूरी थोड़े ही है, बगल में भी भागकर जाया जा सकता है। और माना कि राहुल रायबरेली से लड़ेंगे, पर अमेठी में लड़ने से…
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पोलिंग बूथों पर इतना सन्नाटा क्यों है?

बादल सरोज अभी नौतपा शुरू नहीं हुआ है – तब तक तो लू भी चलना शुरू नहीं हुई थी, मगर इसके बाद भी इतनी उच्च तीव्रता की घन गरज के साथ हुए लोकसभा चुनावों के मध्यप्रदेश में अब तक हुए पहले दोनों चरणों में मतदाताओं का रुख चौंकाने वाला रहा है। पहले चरण में 2019 की तुलना में 7.32 प्रतिशत कम मतदान हुआ।…
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इस संविधान के प्रति संघ-भाजपा को इतनी नफरत क्यों है?

आलेख : सुभाष गाताडे, अनुवाद : संजय पराते वाजपेयी सरकार ने संविधान को बदलने की कोशिश की थी, लेकिन 2004 के चुनाव में हार गई। हमें सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि हिंदू वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा फिर से इसी तरह का राग अलापा जा रहा है। भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य बनाएं और भारत के सभी लोगों को…
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मुंह में अम्बेडकर, बगल में मनु का त्रिशूल

बादल सरोज सामान्यतः होता यह है कि जब चुनाव चल रहे होते हैं, तब गुंडे–जिन्हें न जाने क्यों इन दिनों बाहुबली कहा जाता है–भी शराफत की भाव भंगिमा में दिखाने की हरचंद कोशिश करते हैं। लोककथाओं में लिखा है कि जंगल में भी हमेशा-हमेशा के लिए शाकाहारी हो जाने की भेड़िया गारंटी दिए जाने के उदाहरण पाए…
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राम राज्य की स्थापना के लिए संकल्प से सिद्धि की ओर जाना होगा : बी के शिवानी

बोली शिवानी-'परमात्मा से आत्मा का मिलन ही है राजयोग हरिद्वार में पहली बार सार्वजनिक कार्यक्रम में बोली शिवानी शिवानी को सुनने के लिए उमड़ा जनसैलाब डाॅ.श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट प्रसिद्ध आध्यात्मिक संस्था प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्‍वविद्यालय की अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक वक्ता और…
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पिक्चर तो अभी बाक़ी है, दोस्त!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा हम तो पहले ही कह रहे थे, ये इंडिया वाले क्या खाकर मोदी जी का मुकाबला करेंगे। कहां मोदी जी की छप्पन इंच की छाती और कहां इनका इनका चिड़िया के बराबर का दिल; जोर की धमकी भी नहीं झेल पाएंगे। देख लीजिए, मोदी जी ने बांसवाड़ा से शुरू कर के जरा सा अपना जलवा दिखाया नहीं, ये लगे…
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