रुड़की। रुड़की की साहित्यिक संस्था नवसृजन द्वारा देश के सुविख्यात साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की स्मृति में भावभीनी काव्यांजलि कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस कार्यक्रम में रुड़की के जाने-माने साहित्यकारों व कवियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
डॉ. शालिनी जोशी पंत की अध्यक्षता व पंकज त्यागी असीम के संचालन में मुख्य अतिथि उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा निदेशक डॉ. आनंद भारद्वाज ,विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक श्रीमती साधना त्यागी, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति डॉ. श्रीगोपाल नारसन ,संस्था महासचिव किसलय क्रांतिकारी एवं डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा जी के सुपुत्र शैलेंद्र शर्मा ने मंचासीन होकर दीपप्रज्जवल कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया तथा माॅं सरस्वती स्वर्गीय डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ जी के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की । कार्यक्रम के आरम्भ में अनिल वर्मा अमरोहवी द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई, इसके बाद डाॅ. श्रीगोपाल नारसन ने योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए बताया कि उनका जन्म 26 जून 1941 को कनखल के एक साधारण पुरोहित परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन-काल में शिक्षा एवं साहित्य के उत्कृष्टतम शिखरों को छुआ। वह बी .एस. एम. पीजी डिग्री कॉलेज रुड़की व उपाधि महाविद्यालय पीलीभीत के प्राचार्य रहे, वर्धा अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति द्वारा नामित कार्यकारिणी के सदस्य होने के साथ ही संघ लोक सेवा आयोग में परीक्षक के रूप में रहे, उन्होंने विभिन्न विषयों पर लगभग 50 पुस्तकें लिखी, उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 50 शोधार्थियों को पी.एच.डी. कराई तथा 22 शोधार्थियों को डी-लिट् की उपाधि दिलवाई। उत्कृष्ट साहित्यिक सेवा के लिए उन्हें 21 हजार रुपये से लेकर पांच लाख रुपये की नकद धनराशि वाले अनेक राष्ट्रीय सम्मानों से पुरस्कृत किया गया। वह एन.बी.टी. के ट्रस्टी भी रहे। इस अवसर पर डॉ. श्रीगोपाल नारसन ने अपनी रचना “जमीन से जुड़कर उन्होंने नभ छुआ/ ग़मों को सहकर भी हॅंस कर जिया” सुनाई जिसे श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया। वरिष्ठ कवि सुरेन्द्र कुमार सैनी ने अपनी रचना “एक अरुण ने नभ में उग कर सारा जग दमकाया है /एक अरुण ने धरती पर शिक्षा का दीप जलाया है” सुनाई तो सुप्रसिद्ध गीतकार पंकज गर्ग ने जब अपना गीत “मैं गीतों से तुमको जरा छू रहा हूॅं /मैं प्यासा हूॅं सावन से मिलने चला हूॅं” सुनाया जो की डॉ. अरुण जी को बेहद पसंद था तो सदन कुछ देर के लिए भावुक हो गया। इसी क्रम में डॉ. आनंद भारद्वाज ने अपनी रचना “आपका जाना अखरा जैसे उपवन में पतझर आया” को भी लोगों ने काफी सराहा। जाने- माने ग़ज़लकार पंकज त्यागी ‘असीम’ ने अपनी रचना “मायूस कर ज़मीन को अम्बर अरुण गए/ रुड़की अदब की रौनकें लेकर अरुण गए” सुनाई तो वरिष्ठ साहित्यकार सुबोध पुंडीर ‘सरित्’ ने अपनी रचना “स्वयं ही भारती के आगमन के शुभ शगुन हुए/ अरुण हुए, अरुण हुए, अरुण हुए ,अरुण हुए” प्रस्तुत की। डॉ. शालिनी जोशी पंत ने अपनी रचना “बाहों के घेरे में सबको थामे हुए/ बन के पीपल खड़े तुम हमारे लिए” का वाचन किया तो डॉ. घनश्याम बादल ने अपनी रचना ” डांट ,सीख, नसीहत के साथ/ प्लीज, प्लीज, लौट आओ ना पिता”को सुनाया। डॉ. अरुण की सुपुत्री श्रीमती कामना ने जब अपनी रचना “अरुण गर अस्त होता है तो अरुणोदय भी होता है” सुनाई तो सब भावविभोर हो गए। डॉ. अरुण के सुपुत्र शैलेंद्र शर्मा ने भावुक होकर अपने पिताज के संस्मरणों को साझा किया । कार्यक्रम में उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डॉ पी. के. गर्ग, उत्तराखंड के टॉयलेट मैन रमेश भटेजा , नवीन शरण निश्चल, विकास त्यागी, शिवकुमार कुंजा बहादुरपुर, अरविंद शर्मा, अनिल अमरोहवी एवं श्याम कुमार त्यागी आदि ने भी डाॅ अरुण को अपनी भावांजलि अर्पित की। अपने खराब स्वास्थ्य के कारण रुड़की के वयोवृद्ध कवि नरेश राजवंशी स्वयं तो उपस्थित नहीं हुए लेकिन उन्होंने श्रद्धांजलि स्वरुप अपनी एक रचना “जाते हो तो जाओ अरुण जी/ याद ना ले जा पाओगे” लिखकर भेजी थी जिसका वाचन पंकज त्यागी ‘असीम’ ने किया। संस्था महासचिव किसलय क्रांतिकारी ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद अदा किया तथा डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ के साथ अपनी कुछ स्मृतियों को साझा किया। उन्होंने इस अवसर पर अहमदाबाद में हुए विमान दुर्घटना में मृतक सभी दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना की। कार्यक्रम के अंत में नवसृजन साहित्यिक संस्था की अध्यक्ष डॉ. शालिनी जोशी पंत तथा अन्य सदस्यों ने कार्यक्रम में पधारे डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ के सभी परिवारिक सदस्यों को बुके तथा पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया।