सत्यनारायण मिश्र। इंफाल
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के बीच नई सरकार के गठन को लेकर सियासी सरगर्मियां चरम पर हैं।
भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी विधायकों ने लोकप्रिय सरकार बनाने की कवायद तेज कर दी है, लेकिन ग्वाल्ताबी घटना और मेइतेई-कुकी-जो समुदायों के बीच तनाव ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है।
केंद्र सरकार और भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता शांति स्थापना है, जिसके चलते निकट भविष्य में सरकार गठन की संभावना कम नजर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक कई भाजपा विधायक बीरेन सिंह के अलावा किसी और को नेता बनाने की सलाह दे रहे हैं, ताकि सभी कुकी-जो विधायकों का समर्थन पक्का हो सके।
ग्वाल्ताबी घटना: जनाक्रोश का केंद्र
20 मई 2025 को ग्वाल्ताबी में मणिपुर स्टेट ट्रांसपोर्ट (एमएसटी) की बस, जिसमें पत्रकार और सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय (डीआईपीआर) के कर्मचारी सवार थे, को 4th महार रेजिमेंट ने रोक लिया।
सुरक्षा बलों ने कथित तौर पर बस के विंडस्क्रीन पर लिखे “मणिपुर स्टेट ट्रांसपोर्ट” बैनर को हटाने का आदेश दिया। इस घटना ने मणिपुर में व्यापक विरोध प्रदर्शन को हवा दी। कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी (सीओसीओएमआई) और अन्य नागरिक संगठनों ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से माफी मांगने और मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, और सुरक्षा सलाहकार के इस्तीफे या स्थानांतरण की मांग की है।
यह घटना मणिपुर की पहले से अशांत स्थिति को और भड़काने वाली साबित हुई है।
भाजपा की सक्रियता: सरकार गठन का दावा
28 मई 2025 को भाजपा विधायक थोक्चोम राधेश्याम के नेतृत्व में 10 विधायकों (8 भाजपा, 1 नेशनल पीपुल्स पार्टी-एनपीपी, 1 निर्दलीय) ने इंफाल के राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार गठन का दावा पेश किया।
राधेश्याम ने दावा किया कि उनके पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 44 विधायकों का समर्थन है, जो बहुमत (31) से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा, “कांग्रेस को छोड़कर, हमारे पास 44 विधायकों का समर्थन है। विधानसभा अध्यक्ष सत्यब्रत ने इन विधायकों से मुलाकात की है।”
निर्दलीय विधायक सपम निशिकांत ने कहा, “एनडीए विधायक मणिपुर के हित में लोकप्रिय सरकार चाहते हैं। इसके लिए हमें जनता का समर्थन चाहिए।” उन्होंने बताया कि 22 विधायकों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र राज्यपाल को सौंपा गया, जो पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया गया था।
30 मई को, 23 भाजपा विधायकों ने पूर्व मंत्री थोंगम बिस्वजीत के इंफाल पूर्व स्थित आधिकारिक आवास पर बैठक की। इस बैठक में मणिपुर में शांति और स्थिरता बहाल करने पर चर्चा हुई। विधायकों ने बयान जारी कर कहा, “हम व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को त्यागकर राज्य और इसके लोगों के हित में एकजुटता के साथ काम करेंगे।”
कुकी-जो विधायकों की अनुपस्थिति: सबसे बड़ी चुनौती
60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में भाजपा के पास 37 विधायक हैं, जिनमें सात कुकी-जो समुदाय से हैं। ये सभी विधायक मई 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से इंफाल नहीं आए हैं। इसके अलावा, दो कुकी पीपुल्स अलायंस (केपीए) और एक निर्दलीय विधायक, जो पहले भाजपा के सहयोगी थे, भी इस प्रक्रिया से दूरी बनाए हुए हैं। 30 मई की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, विधानसभा अध्यक्ष थोक्चोम सत्यब्रत और भाजपा विधायक आर.के. ईमो (बीरेन के दामाद) शामिल नहीं थे।
शांति की राह: संवाद मंच का प्रस्ताव
भाजपा विधायकों ने मेइतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच विश्वास बहाली के लिए एक तटस्थ संवाद मंच की स्थापना का समर्थन किया। उन्होंने राज्यपाल और केंद्र से एक “शांति दूत” या प्रख्यात व्यक्तियों के पैनल की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा। हालांकि, ग्वाल्ताबी घटना की निंदा न करने के उनके रुख ने विवाद को और बढ़ाया। इसके बजाय, उन्होंने सरकार से मीडिया और नागरिक संगठनों के साथ संवाद करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति शासन और केंद्र की रणनीति
मणिपुर में 13 फरवरी 2025 से राष्ट्रपति शासन लागू है, जब पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस्तीफा दिया था। विधानसभा निलंबित अवस्था में है। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व कुकी-जो विधायकों, खासकर सात भाजपा विधायकों, को शामिल किए बिना सरकार गठन के पक्ष में नहीं है। केंद्र का मानना है कि बिना व्यापक सहमति के सरकार गठन शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है।
क्या है मणिपुर का संकट?
मई 2023 से शुरू हुई मेइतेई-कुकी-जो हिंसा में 250 से अधिक लोग मारे गए हैं और 60,000 से अधिक विस्थापित हुए हैं। मेइतेई समुदाय क्षेत्रीय अखंडता पर जोर देता है, जबकि कुकी-जो समुदाय पहाड़ी जिलों में अलग प्रशासन की मांग करता है। ग्वाल्ताबी घटना ने इस तनाव को और गहरा किया है।
आगे की राह
भाजपा और सहयोगियों के पास 44 विधायकों का समर्थन होने का दावा है, लेकिन कुकी-जो विधायकों की अनुपस्थिति और सामाजिक तनाव सरकार गठन में बड़ी बाधा हैं। जानकारों का मानना है कि जब तक सभी समुदायों के बीच समावेशी चर्चा और विश्वास बहाली नहीं होती, तब तक राष्ट्रपति शासन हटने और नई सरकार के गठन की संभावना कम है। कुल मिलाकर मणिपुर में शांति और स्थिरता की राह अभी लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रतीत हो रही है।