सोते से जगाने वाला कलमकार है श्रीगोपाल नारसन!

डॉ. सविता वर्मा गज़ल
 सन 1942 के भारत छोड़ो जन आंदोलन के अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के भांजे श्रीगोपाल नारसन जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण महापरिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में देशभर के 2 करोड़ सेनानी परिवारों की आवाज बनकर उन्हें उपेक्षा के दंश से बाहर निकालकर सम्मान दिलाने के अभियान में जुटे है, वही विक्रमशीला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति के रूप में हिंदी के पैरोकार बनकर उभर रहे है। उत्तर भारत मे ही नही अपितु सुदूर दक्षिण भारत तक कलम के जादूगर श्रीगोपाल नारसन को पढ़ा जाता है।उनके द्वारा हर रोज़  परोसा जा रहा साहित्य चर्चाओं में है।आध्यात्मिक सक्रियता के साथ ही उनके द्वारा हरदिन लिखी जा रही प्रेरक कविता लोगो के मन पर गहरी छाप छोड़ती है।हिंदी की अंतरराष्ट्रीय पुरातन संस्था विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर बिहार ने हिंदी साहित्य में विशेष सेवा,सारस्वत साधना व कलात्मक सोच के लिए  श्रीगोपाल नारसन को पिछले वर्ष रामधारी सिंह दिनकर सम्मान  से विभूषित किया तो न्यायमूर्ती राजेश टण्डन व न्यायमूर्ति यू सी ध्यानी ने उन्हें मानवाधिकार संरक्षण रत्न सम्मान 2023 से विभूषित किया था। साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन की  विभिन्न साहित्यिक विधाओ में अभी तक 22 पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं।जिनमे ‘नया विकास’,’मीडिया को फांसी दो’,’खामोश हुआ जंगल’, ‘प्रवास’,’तिनका तिनका संघर्ष,’ ‘पदचिन्ह’, चैक पोस्ट ,श्रीमद्भागवत गीता शिव परमात्मा उवाच,दादी जानकी, आबू तीर्थ महान ,विविधताओं का शहर रुड़की, ईश्वरीय गुलदस्ता आदि शामिल है। उनके साहित्यिक योगदान पर भी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है,जिनमे ‘श्रीगोपाल नारसन और उनका साहित्य’ व ‘श्रीगोपाल नारसन का आध्यात्मिक चिंतन’ शामिल है।श्रीगोपाल नारसन के शब्दकोश में “खाली समय’ है ही  नहीं ,क्योंकि वे कभी खाली   रहते ही नही है।बड़े सवेरे 4 बजे उठकर रात्रि 11 बजे तक की उनकी दैनिक दिनचर्या में कभी कोई खाली समय नही होता। पीड़ित उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए वकालत के क्षेत्र में राज्य स्तर पर सक्रिय श्रीगोपाल नारसन, ब्रह्माकुमारीज संस्था के माध्यम से आध्यात्मिक सेवा कार्य भी करते है। वे समय का सदुपयोग कर साहित्य सृजन करके अपने जीवन को सार्थक बना रहे हैं।उन्होंने जीवन से जुड़े अनेक विषयों पर काव्य की रचना की है। तभी तो उन्हें डॉ आंबेडकर फैलोशिप सम्मान,  विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ का सर्वोच्च ‘भारत गौरव ‘सम्मान ,भारत नेपाल साहित्यिक मैत्री सम्मान ,मानसश्री आदि सम्मान  मिल चुके है।
 वे हर सुबह  परमात्मा से जुड़े प्रेरणादायक व परोपकार की भावना से ओतप्रोत  आध्यात्मिक सन्देश मौलिकता के साथ भेजते है ।इसी प्रतिदिन की कविता की आहट से लोग सोते से जागते है। देवभूमि उत्तराखंड की अभियंता नगरी रुड़की में रह रहे श्रीगोपाल नारसन हरीश रावत सरकार के समय मुख्यमंत्री के प्रवक्ता रहे है।उनकी गिनती वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में होती हैं।उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कांग्रेस प्रकोष्ठ द्वारा तीन दशक पूर्व संचालित किए गए चरित्र निर्माण शिविरों में सक्रिय भूमिका निभाई थी, साथ ही राजकीय महाविद्यालय देवबंद के छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।सादगी,विन्रमता, धैर्य,ईमानदारी, कर्मठता, अपनत्व की भावना  के धनी श्रीगोपाल नारसन अनेक शिक्षण संस्थानों से जुड़े है।
 वे उपभोक्ता राज्य आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में विगत 35 वर्षों से उपभोक्ता जनजागरूकता के क्षेत्र में अपनी राष्ट्र व्यापी भूमिका निभा रहे है। उपभोक्ता कानून की गहन जानकारी रखने के कारण उनका उपभोक्ता कानून पर एक नियमित कॉलम दैनिक ट्रिब्यून में छपता है, साथ ही आकाशवाणी व अन्य प्रिंट मीडिया के साथ ही  जगह-जगह जाकर ‘जागो ग्राहक जागो ‘की अलख जगाना उनकी नियमित कार्य शैली का हिस्सा बन गया है ।उन्हें अनेक शिक्षण संस्थान  अपने यहां अतिथि प्रवक्ता के रूप में  आमंत्रित करते हैं, ताकि  कानून की जानकारी स्कूल कॉलेज के छात्र व छात्राओं  को आसानी से मिल सके। विधिक सेवा प्राधिकारण के शिविरो में  भी उनकी उपस्थिति उपभोक्ता कानून विशेषज्ञ के रूप में होती हैं।
एक  बेबाक वक्ता के रूप में टीवी चैनलों पर बहस करते हुए भी वे
 बहुत संयमित, मर्यादित व साफ गोई से अपनी बात को रखते हैं।कानफोड़ू टीवी डिबेट को वे अच्छा नही मानते।दूसरे का सम्मान करते हुए अपनी बात मजबूती से रखना उन्हें अच्छी तरह आता है।देश विदेश की अनेक पत्र और पत्रिकाओं में उनके लेख आए दिन प्रकाशित होते रहते हैं।  उन्हें
“अंतर्राष्ट्रीय सिद्धार्थ साहित्य कला” सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश द्वारा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी  प्रदान किया गया हैं।
खेलों के क्षेत्र में भी उन्हें बचपन से ही रुचि रही है तथा  विद्यार्थी जीवन से ही वे एक अच्छे खिलाड़ी रहे है। श्रीगोपाल नारसन ने पांच किमी पैदल चाल में राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक प्राप्त किया हुआ है।दौड़ व तैराकी में भी इनकी भागेदारी रही हैं। उत्तराखंड व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में  एक सक्रिय समाज सेवी के रूप में उनकी अच्छी खासी पहचान है।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मीडिया विंग के आजीवन सदस्य के रूप में वे रूहानियत की राह पर भी उतने ही सक्रिय नज़र आते है,जितने आमजन के चेहरे पर मुस्कान लाने की मुहिम में वे जुटे है।तभी तो जिस प्रकार साहित्य से आध्यत्मिकता व सामाजिकता के  सफर में वे निरन्तर कार्य कर अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुके हैं,उसी प्रकार राजनीति क्षेत्र में भी उनकी पहचान कम नही है।उत्तराखंड में तिवारी शासनकाल में वे बीस सूत्रीय कार्यक्रम के राज्य सदस्य रहे है और श्रेष्ठतम अवदान के लिए उन्हें मुख्यमंत्री ने सरकारी स्तर पर सम्मानित भी किया था।वे उत्तराखंड के वन गुर्जरों की समस्याओं व उनके पुनर्वास पर भी काम कर चुके है।उनके जीवन का मूल मंत्र है ,” संघर्ष ही जीवन है चैन मात्र कल्पना।”
डॉ सविता वर्मा ‘ग़ज़ल’

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