राजेंद्र शर्मा , व्यंग्य
इन सेकुलर वालों के चक्कर में भारत वर्ष का बहुत कबाड़ा हुआ है। बताइए, जो कुछ संत-महंतों, पंडे-पुजारियों के लिए बांए हाथ का खेल था, उनसे नहीं कराने के चक्कर में देश का इतना सारा टैम बर्बाद कर दिया गया कि पूछो ही मत। अब पाकिस्तान ने कश्मीर का जो हिस्सा दबा रखा है यानी पीओके, उसी का किस्सा ले लीजिए। पहली गलती तो नेहरू जी की, पीओके को पाकिस्तान के पास छोड़ दिया। दूसरी गलती उनके बाद वालों की, पीओके को वापस लेने के लिए कुछ किया ही नहीं। बस वक्त बर्बाद किया। उल्टे भारत के हिस्से वाले कश्मीर को भी पाकिस्तान में मिलाने का शोर मचाने वालों के हौसले बढ़ जाने दिए। और आखिरी छोटी-सी गलती मोदीशाही की भी, जो दस साल में बहुत कुछ किया, बस एक सबसे कारगर उपाय को छोडक़र। कड़ी मेहनत से कश्मीरियों को ज्यादा से ज्यादा पराया और जम्मू वालों को अपना बनाया ; जम्मू-कश्मीर के टुकड़े किए और एक्स्ट्रा 2एबी की तरह, उसमें से लद्दाख निकाल दिया ; जम्मू-कश्मीर को राज्य से डिमोशन कर के केंद्र-शासित प्रदेश बना दिया ; कश्मीर को खुली जेल बना दिया, वगैरह। पर मिला क्या? असेंबली में काफी तादाद में कमल के फूल तक नहीं खिल सके। खैर, अब जब उपाय किया जा रहा है, मोदीशाही की भी समझ में आ ही गया होगा कि उनसे कहां चूक हो गयी।
बस स्वामी रामभद्राचार्य को पीओके का मामला आउटसोर्स करने की जरूरत थी। सरकार ने स्वामी जी को काम आउटसोर्स कर दिया है, तो बस अब पीओके मुक्त हुआ समझना चाहिए। इस बार के कुंभ में ही स्वामी जी यह पुण्य कार्य कर डालेंगे। पीओके की मुक्ति के लिए एक महायज्ञ ही तो करना है। 251 हवन कुुंडों के महायज्ञ में इधर पूर्णाहुति पड़ी और उधर पीओके की पूर्ण-मुक्ति हुई। कम-से-कम अब, जब स्वामी रामभद्राचार्य के पीओके मुक्ति प्लान का एलान हो गया है, विरोधियों को योगी जी की हंसी उड़ाने से बाज आना चाहिए, जिन्होंने आम चुनाव के टैम पर भविष्यवाणी की थी कि मोदी जी के तीसरे बार दिल्ली की गद्दी पर आने की देर है, छ: महीने में पीओके भारत में आ जाएगा। छ: महीने में न सही, आठ महीने में सही, पीओके भारत में आ तो रहा है। मोदीशाही से न सही, रामभद्राचार्यशाही से सही, मकसद तो पीओके को मुक्त कराना है। वैसे भी योगी जी ने सिर्फ छ: महीने में पीओके के भारत में आ जाने की भविष्यवाणी की थी, उन्होंने कब कहा था कि मोदी जी खुद ही पीओके को भारत में लाएंगे, किसी रामभद्राचार्य को अपनी ओर से इस काम पर नहीं लगाएंगे।
रही बात छ: महीने गुजर जाने के बाद भी पीओके अभी दूर होने की, तो जब सरकारों के काम में सालों, बल्कि दस-बीस साल तक के डिले हो सकते हैं, तो संत-महंतों के काम में भी दो-चार महीने का डिले तो हो सकता है। फिर अभी कुंभ शुरू ही कहां हुआ है। कुंभ शुरू हो जाए, फिर देखिएगा, रामभद्राचार्यों के जल्वे। हम तो कहेंगे कि इसे डिले कहना ही छिद्रान्वेषण है। वर्ना देखना तो यह चाहिए कि जो काम छियत्तर साल में नहीं हुआ और सेकुलर तरीकों से आगे भी पूरा होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे, रामभद्राचार्य जी गारंटी से करा रहे हैैं और वह भी एकदम सस्ते में। दो सौ इक्यावन हवन कुंडों के यज्ञ का खर्चा ही कितना बैठेगा? और अगर किसी तरह से इस बार महायज्ञ पूर्णकाम नहीं भी हुआ, तो अगले पूर्णकुंभ में सही, बारह साल ही तो दूर है। जहां छियत्तर साल इंतजार किया है, बारह साल और सही। कम से कम सरकार यह तो कह सकती है उसने प्रयास किए हैं।
मस्क से अंबानी मिलें, कर-कर लंबे हाथ!
ये एंटी-नेशनल न समझे हैं, न समझेंगे मोदी जी के विश्व गुरुत्व की बात। एक न्यौते की चिट्ठी पर अटके हुए हैं, वह भी उस चिट्ठी पर, जो इंतजार के बाद भी नहीं आयी। यहां तक कि अमरीका जाकर पूरी खोज-पड़ताल करके अंजना ओम कश्यप ने इंडिया को बता भी दिया कि डियर फ्रैंड ट्रम्प ने ज्यादा भीड़-भड़क्के का ख्याल कर के मोदी जी को शपथ ग्रहण में नहीं बुलाया था। इतनी भीड़ में मोदी जी की शान में कुछ ऊंच-नीच हो जाती तो? भीड़-भाड़ से अलग, शांति से बाद में मोदी जी अकेले बुलाए जाएंगे या ट्रम्प जी खुद ही मिलने आएंगे, तब दुनिया देखेगी दोनों दोस्तों की कहानी, वह भी बड़े पर्दे पर। पर तब तक इन एंटी-नेशनलों के तानों के तीर जो मोदी जी का सीना छलनी करते रहेंगे, उसका क्या? डियर फ्रेंड, तुझको ऐसा नहीं करना चाहिए था। झूठे ही सही, मना करवाने को ही सही, कम से कम न्यौता तो भेजते। ऐसे तो दोस्ती से दुनिया का विश्वास ही उठ जाएगा।
जो हर वक्त मोहब्बत-मोहब्बत की बात करते हैं, पर असल में इसी दोस्ती से नफरत करते हैं, उन्होंने तो कहना भी शुरू कर दिया है कि ट्रम्प ने मोदी जी को नहीं बुलाया, क्योंकि मोदी जी पहुंच जाते तो, हाथ के हाथ उसकी चोरी पकड़ी जाती। ट्रम्प ने मोदी जी की बोली ही चुरा ली। वही देश के स्वर्ण युग का आगमन। वही दसियों साल से चल रहे पतन का रुकना। वही देश को फिर से महान बनाना। वही देश के दुश्मनों को धूल चटाना। वही सारी दुनिया से अपने देश का लोहा मनवाना। वही छप्पन इंच की छाती। वही भीतरी और बाहरी दुश्मनों के कसते घेरे से जंग। वही मंगल ग्रह पर झंडा फहराने की हूंकार। वही परदेसियों को दुत्कार। वही देश की सीमाएं बढ़ाने की पुकार। और वही एक के बाद एक नाम बदल डालने की यलगार। मोदी जी दोस्ती का ख्याल करते, तब भी रॉयल्टी तो बनती ही थी। रॉयल्टी मांग बैठते तो? आखिर, दोस्ती अपनी जगह, धंधा अपनी जगह!
खैर, मोदी जी ने इसमें भी विश्व गुरु वाला दांव चल दिया। धंधे का मौका देखकर जयशंकर को पीछे रोक लिया, फोटू के टैम पर मुकेश-नीता अंबानी को आगे कर दिया। देश को नया विदेश मंत्री मिल गया — अब मस्क से अंबानी मिलें, कर-कर लंबे हाथ!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)