यह हुई न विश्व गुरु वाली बात!

राजेंद्र शर्मा. व्यंग्य

मोदी जी को ट्रम्प के शपथ ग्रहण का न्योता नहीं मिलने पर ताने मारने वाले अब बोलें, क्या कहेंगे? शपथ ग्रहण में नहीं थे, तब तो हर तरफ मोदी जी ही मोदी जी थे। ट्रम्प की चाल में मोदी, ट्रम्प की जुबान पर मोदी, ट्रम्प के हर काम में मोदी। यही तो होती है विश्व गुरु वाली बात।

अगर मोदी जी वहां पहुंच भी जाते, तब तो कैपिटल हिल पर मोदी जी के सिवा और कोई नजर ही नहीं आता। यार की शादी में भी मोदी जी ही दूल्हा नजर आते, यह क्या ठीक होता? सो मोदी जी ने खुद ही ट्रम्प को समझा लिया कि उनको न्यौता नहीं भेजा जाए। न न्यौता आएगा और न उन्हें सशरीर यार के बड़े दिन पर पहुंचकर, उससे रौशनी चुराने से इंकार करना पड़ेगा। तभी तो मोदी जी को न्योता नहीं मिला, मोदी जी को यानी विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता को। दुश्मन चीन के शी जिन पिंग तक को न्यौता मिल गया। हालांकि, वह न्योता मिलने के बाद भी नहीं पहुंचे। पहले ही मना कर दिया और अपने किसी सहायक को भेज दिया। अर्जेंटीना के मिलेई को, इटली की मेलोनी को, पेरू के पेना को और भी न जाने किन-किन कुर्सीधारियों को न्यौता मिल गया और सब सशरीर पहुंचे भी। बस मोदी जी को ही न्योता नहीं मिला।

और तो और, अपने मुकेश भाई और नीता भाभी को भी न्योता मिल गया और उन्हें बाकायदा दूल्हे के साथ फोटो खिंचाने और फोटो दिखाकर खरबपति क्लब के अपने प्रतिद्वंद्वियों को खिझाने का मौका भी मिल गया। यह दूसरी बात है कि उनके प्रतिद्वंद्वियों ने भी कानों-कान और सोशल मीडिया में इसकी खबर फैलाकर अपनी खीझ उतार ही ली कि उनका न्योता, न्योता नहीं, सर्कस के शो का टिकट था — पैसा फेंको और तमाशा देखो! और करोड़ों का टिकट खरीदकर, इतना महंगा शो देखने कौन जाए, जबकि मोदी जी की कृपा से अपने यहां इससे ज्यादा चमक-दमक वाले शो देखने को मिल जाते हैं!

स्वदेशी और स्वावलंबन की इस पुकार में लीड वॉइस अडानी जी की थी। उस पर राजभक्ति का तड़का और — जिस तमाशे में भारत के प्रधानमंत्री तक को नहीं बुलाया गया, उसे टिकट खरीदकर देखने जाना तो देशभक्ति का काम नहीं है। पर अंबानी भी कहां हार मानने वाले थे। चुपके से सुर्रा छोड़ दिया — अडानी भाई को घुसकर तमाशा देखने का तो खूब शौक है, पर अमरीका में घुसकर तमाशा देखने में जरा जोखिम था। सौर ऊर्जा वाले मामले में स्वदेशी रिश्वत खिलाने के लिए, परदेश में गिरफ्तारी का जोखिम ; सो रपट पड़े तो हर-हर मोदी।

पर ये अडानी-अंबानी भी क्या जानें मोदी जी के डबल-डबल रोल। जब मोदी जी शरीर से आमंत्रित नहीं थे, तो मोदी जी ही ट्रम्प की नयी पारी के उद्घाटन में सबसे ज्यादा आमंत्रित थे। सबसे ज्यादा क्या, अकेले आमंत्रित थे, इकलौते अशरीरी आमंत्रित। प्लीज इसे भुतहा मामला मत कर दीजिएगा। ये नॉन-बायोलॉजीकलों की बातें हैं। नॉन-बायोलाजीकलों की बातें, क्या जानें बायोलाजीकल अंबानी-अडानी भी। मोदी जी जब नॉन-बायोलाजीकल रूप से पहुंचे, तो सिर्फ डीयर फ्रेंड ट्रम्प को दिखाई दिए। बाकी किसी को दिखाई ही नहीं दिए। ट्रम्प की आत्मा यह देखकर और भी प्रसन्न हो गयी कि मोदी जी सिर्फ उसे दिखाई, सुनाई दे रहे थे यानी सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए पहुंचे थे। यानी मौके पर विश्व गुरु वाला ज्ञान और वोह भी डायरेक्टली।

ट्रम्प ने गले लगाकर कहा, एक तो फ्रैंड ऊपर से नॉन-बायोलाजीकल, तुम तो मुझ में ही समा जाओ। नॉन-बायोलाजीकल जी ने कहा : तथास्तु।

फिर क्या था, ट्रम्प ने धड़ाक से अमरीका का स्वर्ण काल शुरू होने का एलान कर दिया। भीतर से आवाज आयी, जो सिर्फ ट्रम्प के कानों के लिए थी — बहुत सही जा रहे हो ! हमारा यही रास्ता है। ट्रम्प के हौसले और बढ़ गए। उसने एक और एलान किया — अमरीका की पतन यात्रा आज से खत्म होती है और उत्थान की चढ़ाई शुरू होती है। भीतर से और आवाज आयी — बहुत अच्छे! ट्रम्प ने कहा, अमरीका को फिर से महान बनाना है। सारी दुनिया से फिर से अमरीका का लोहा मनवाना है। अमरीका को सारी दुनिया के सिर पर बैठाना है। सारी दुनिया को अमरीका से डरना सिखाना है। अमरीका को सबसे महान बनाना है। अमरीका को सबसे धनवान बनाना है। अमरीका को यह बनाना है, अमरीका को वह बनाना है। अमरीका को चीन की टक्कर का देश बनाना है। भीतर से आवाज आयी, बाकी सब सही, चीन वाली बात कहने के लिए नहीं थी। ट्रम्प के मुंह से बरबस निकल गया – सॉरी। फिर झट से जोड़ दिया — चीन को भी रास्ते पर लाना है।

नाच-गाने और एलन मस्क के छोटे से ब्रेक के बाद, ट्रम्प फिर चालू हो गया। मैं आज से एलान करता हूं कि अब तक जो मैक्सिको की खाड़ी हुआ करती थी, उसका नाम बदलकर अब अमरीका की खाड़ी कर दिया गया है। और यह तो शुरूआत है। आगे भी हम और बहुत सी जगहों के नाम बदलेंगे। बहुत सी जगहों के नये नाम में अमरीका जोड़ देंगे। ऐसे ही तो अमरीका का विस्तार होगा और अमरीका फिर से महान बनेगा। फिर अपनी शर्ट के अंदर झांककर धीमे से फुसफुसाया, नाम बदलकर महानता पाने के इस आइडिया के लिए मैं अपने फ्रेंड फ्रॉम इंडिया का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं! फिर लगा अमरीका को फिर से महान बनाने के अपने प्रोग्राम के और पन्ने पढ़ने। मैक्सिको वाले रास्ते पर आ जाएं, वर्ना मैक्सिको की खाड़ी के साथ, मैक्सिको को भी अमरीका में मिला लूंगा। पनामा नहर से हमें अब कोई परेशानी नहीं हो, वर्ना पनामा नहर का नियंत्रण में अपने हाथ में ले लूंगा। पर्दे के पीछे से चीन को इस नहर पर नियंत्रण हासिल नहीं करने दूंगा। मैं डेन्मार्क से ग्रीन लैंड्स खरीद लूंगा। मैं मंगल ग्रह पर अंतरिक्ष यात्री भेजकर, वहां अमरीका का झंडा फहरा दूंगा। मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमरीका को अलग कर लूंगा। मैं पर्यावरण पर पेरिस समझौते से नाता तोड़ लूंगा। मैं चार साल में अमरीका को फिर से महान बनाकर रहूंगा।

ट्रम्प को अभी और भी एलान सूझ रहे थे, पर फ्रेंड मोदी ने विदाई मांग ली। उन्हें उनकी बायोलॉजीकल वाली भूमिका पुकार रही थी। ट्रम्प ने भी पूर्ण विराम लगा दिया — इतना ही आज तक, बाकी आगे तक। अब की बायोलॉजीकल बनकर मोदी जी जाएंगे, तभी ट्रम्प जी अमरीका को फिर से महान बनाने के अगले कदम उठाएंगे।
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*2. धर्म का धर्म और धंधे का धंधा*

हम तो पहले ही कह रहे थे कि धर्म है बहुत फायदे का धंधा। बहुत फायदे का यानी सचमुच बहुत ही फायदे का। अब कुंभ को ही ले लीजिए। योगी जी और उनके संगी-संगातियों ने लाखों करोड़ का हिसाब बताकर, कुंभ के खर्चे का सवाल उठाने वालों के मुंह बंद कर दिए हैं। वैसे कुंभ-वुंभ के खर्चों पर सवाल उठाने वाले अब ज्यादा नहीं बचे हैं। ज्यादातर के मुंह तो पहले ही बंद किए जा चुके हैं : मीडिया वालों के विज्ञापन के पैसों से भरकर और बाकी विरोधियों के गला दबाकर। जो इक्का-दुक्का बचे हैं, उन्हें अर्बन नक्सल कहकर ही निपटाया जा सकता था। पर योगी जी भी योगी जी ठहरे, लिया और पटक दिया लाखों करोड़ रुपए की कमाई का और लाखों लोगों के रोजगार का हिसाब आलोचकों के सिर पर। तुक नहीं भी बैठे, तब भी विरोधी बोझ से तो मर ही जाएंगे। अब बताइए, कहां कुछ सात-दस हजार करोड़ रुपए का खर्चा और कहां लाखों करोड़ की कमाई। लाखों नौकरियां ऊपर से। और आध्यात्म का आध्यात्म। कुंभ तो सचमुच फायदे का कुंभ निकला और वह भी छोटी-मोटी मटकी नहीं, बड़ा वाला मटका।

अब प्लीज कोई ये मत कहने लगना कि कुंभ भी आखिरकार है तो मेला ही और मेलों-ठेलों में तो हमेशा कमाई होती ही है। कुंभ कोई साधारण मेला नहीं है। कुंभ और मेलों जैसा मेला नहीं है। कुंभ हमारे आध्यात्म की प्रदर्शनी है। कुंभ हमारी आस्था का विस्फोट है। कुंभ बना-बनाया वर्ल्ड रिकार्ड है। कुंभ वह है, जो दुनिया में और कहीं न हुआ है और न कभी होगा। कुंभ हमारे विश्व गुरु होने की सनद है। कुंभ इतना कुछ है, फिर भी ऊपर से कमाई भी है। बल्कि कुंभ की कमाई से हमें तो एक आइडिया आ रहा है। जब एक कुंभ से लाखों करोड़ रुपए की कमाई हो रही है, तो कुंभ की संख्या बढ़ाने के जरिए इस कमाई को कई गुना करने पर सरकार ध्यान दे। माना कि पूर्ण कुंभ बारह साल में होता है, मगर कुंभ तो हर तीन साल में होता है। यानी और नहीं तो कम से कम, कुंभ हर साल तो कराया ही जा सकता है। योगी जी के राज में वैसे भी यूपी में रामराज्य आया हुआ है। ऐसे में कुंभों की संख्या बढ़ने का कम से कम भक्त बुरा नहीं मानेंगे। रही बात इंतजामों की, तो योगी जी का राज इन्हीं सब के इंतजामों के लिए तो है। योगी जी कोई लोगों की रोजी-रोटी जैसी इहलौकिक चीजों का इंतजाम करने के लिए मुख्यमंत्री थोड़े ही बने हैं। वह जैसे दीवाली पर एक साथ दिए जलवाने का वर्ल्ड रिकार्ड बनवाने के लिए मुख्यमंत्री बने हैं, वैसे ही कुंभ हर साल कराने जैसी नयी हिंदू परंपरा चलाने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम होना चाहिए। हम तो कहते हैं कि धीरे-धीरे यूपी का नाम बदलकर वैसे ही कुंभ प्रदेश किया जा सकता है, जैसे इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयाग राज किया जा चुका है। और आगे चलकर भारत उर्फ इंडिया का नाम भी बदलकर कुंभ देश रखा जा सकता है, एकदम पाक-साफ और पराधीनता की ध्वनियों से पूर्णत: मुक्त। खैर, वह बाद की बात है, फिलहाल तो योगी जी कुंभ बढ़ाएं और देश की गिरती जीडीपी को मजबूती से सहारा लगाएं।
जब इतने कुंभ होंगे, इतनी कमाई होगी, इतना जीडीपी बढ़ेगा, तो जाहिर है कि निर्मला ताई का जीएसटी भी ताबड़तोड़ बढ़ेगा। दुकानों तो दुकानों पर, लोगों के मेले में आने से लेकर, नदी में नहाने तक पर, जीएसटी लगाया जाएगा। यानी धर्म का धर्म और धंधे का धंधा। यही सनातन सत्य है।
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*3. असली वाली आजादी!*

भागवत जी बोले हैं, तो सही ही होगा कि आजादी तो पिछले साल ही मिली थी, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद। बाकी समझदार को इशारा ही काफी है। आजादी की सालगिरह आ रही है। क्यों न इसी सालगिरह से भारत का नया स्वतंत्रता दिवस घोषित कर दिया जाए। कब तक हम झूठ-मूठ का स्वतंत्रता दिवस मनाते रहेंगे। कब तक 15 अगस्त वाला स्वतंत्रता दिवस ढोते रहेंगे। वह वाला स्वतंत्रता दिवस तो वैसे भी पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के ऐन बाद में पड़ता है। यानी यहां भी हिंदुओं का अपमान।
माना कि आजादी और स्वतंत्रता दिवस का मामला काफी कन्फ्यूजनात्मक हो रखा है। इतने साल हमें बताया गया कि भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली। बीच में शोर मचा कि इमर्जेंसी हटी और आजादी आयी। पर बाद मेें ये बात भी आयी-गयी हो गयी। फिर एक दिन कंगना जी ने एलान कर दिया कि आजादी तो 2014 में आयी थी, मोदी जी के गद्दी पर आने के बाद। और अब भागवत जी कह रहे हैं कि आजादी तो पिछली जनवरी में आयी थी, मोदी जी के राम मंदिर का उद्घाटन करने के बाद। चलो पहले वाली नेहरू-गांधी वाली आजादी तो मान लिया कि नकली थी, उसकी लड़ाई भी नकली थी। पर 2014 से 2024 के बीच में जो था, वह क्या था? आजादी या गुलामी। अगर आजादी 2024 की जनवरी में ही आयी थी, तब तो कन्हैया, उमर खालिद वगैरह ही सही थे। जब आजादी आयी ही नहीं थी, तो आजादी लेकर रहने के नारे गलत कैसे हो सकते थे। वो बेचारे तो उस आजादी के लिए लड़ रहे थे, जिसके लिए भागवत जी इंतजार कर रहे थे।

वैसे इसमें इतने ज्यादा कन्फ्यूजन वाली बात भी नहीं है। 2014 में आजादी मिली हो तो और 2024 में मिली हो तो, इस माने में एक ही बात है कि इससे नेहरू जी का पत्ता तो कट जाएगा ; स्वतंत्र देश के प्रधानमंत्री का नंबर वन, मोदी जी के नाम पर लिख जाएगा। रही बात कई स्वतंत्रता दिवसों की, तो स्वतंत्रता दिवस तो जितने ज्यादा हों, उतना ही अच्छा। बाकी दिन तो मोदी जी का डंडा चलेगा। वैसे भी जब हमारे यहां अलग-अलग राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत हो सकते हैं, जब इंडिया और भारत दो-दो नाम हो सकते हैं, तो क्या दो स्वतंत्रता दिवस नहीं हो सकते हैं — असली और गैर-असली!

*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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